
इंसान आज हर चीज़ के बारे में जानकारी रखता है, सिवाय एक के। वो है रूहों की दुनिया। यह दुनिया आज भी रहस्य की परतों के पीछे छिपी है। कभी कभार हमें इस दुनिया की एक झलक मिल जाती है, जब कोई रूह किसी इंसान से टकरा जाती है। ऐसा ही कुछ हुआ डॉक्टर राघव के साथ। पढ़िए horror story in hindi दवा।
Horror Story In Hindi - दवा

डॉक्टर राघव हैं कर्तव्य परायण
क्या करूं काका, डाॅक्टर साहब हंसते हुए अपने डाॅक्टरी बैग में सामान डालते हुए बोले , मेरे मरीज़ मुझे छोड़ेगे तो ही तो जाऊंगा।
काका ने रोका डॉक्टर राघव को
जाना तो होगा ही काका। घर पर शीला और मुनिया इंतजार करते होंगे। ऊपर से खराब मौसम की वजह से फोन भी काम नहीं कर रहा। यह कह कर वो अपना बैग उठाकर तेजी से बाहर निकल गए।

मधु काका ने दीवार पर टंगी छतरी उतारी और उसे खोलकर डॉक्टर बाबू के पीछे-पीछे लपके और उन पर छतरी करते हुए एम्बेसडर गाड़ी तक छोड़ने गए।
कौन है डॉक्टर राघव ?
डॉक्टर राघव विदेश से डॉक्टरी की पढ़ाई कर के आए थे। शहर में एक अच्छा खासा बड़ा दवाखाना खोला हुआ था, लेकिन हफ्ते में दो दिन गांव का दौरा भी जरूर करते थे। गांव के मुखिया जी ने अपनी हवेली का पिछला हिस्सा डॉक्टर राघव को दे दिया था और अपना एक पुराना हवेली का सेवक भी दिया था, जो कि मधु काका ही थे।
देश में स्वतन्त्रता संग्राम अपने चरम पर था। प्रत्यक्ष रूप में डॉक्टर राघव का इस सब से कोई लेना-देना नहीं था। लेकिन अंदर की बात यह थी कि वे चोरी-छिपे उन स्वतंत्रता सेनानियों का इलाज भी करते थे, जो घायल हो जाते थे।
तूफानी अंधेरी रात
डॉक्टर राघव की गाड़ी गांव की कच्ची सड़क पर भरे पानी के साथ संघर्ष करती हुई हिचकोले खाती हुई आगे बढ़ रही थी।

बारिश पूरे ज़ोर पर थी। गाड़ी के वाइपर तेजी से चलते हुए गाड़ी के शीशे को साफ करने की असफल कोशिश कर रहे थे। हैड लाईट की रोशनी इस तूफानी मौसम में रास्ता दिखाने के लिए नाकाफ़ी थी। डॉक्टर राघव अपनी आंखें सिकोड़ कर अंधेरे को चीरती हुई हैडलाइट की रोशनी में रास्ता देख कर बड़ी सावधानी से गाड़ी आगे बढ़ा रहे थे।
थोड़ी ही देर में उन्हें यह महसूस होने लगा कि वास्तव में मधु काका की बात न मान कर उन्होंने एक मूर्खतापूर्ण कार्य ही किया था। बारिश के तेवर उनके अंदाज़े से कहीं अधिक भयानक थे। रह रह कर कड़कती हुई बिजली और घना अंधेरा, तेज़ तूफानी हवा से हिलते हुए पेड़ और इनके बीच रोशनी का एक मात्र साधन केवल गाड़ी की हैडलाइट, ये सब मिलकर वातावरण को और भी अधिक भयानक बना रहे थे।
'ऐसे में अगर गाड़ी बंद पड़ गई तो?' सहसा इस बात को सोच कर कभी न डरने वाले डॉक्टर राघव के माथे पर पसीने की कुछ बूंदें उभर आईं और दिल कुछ तेजी से धड़कने लगा।
अनजान साया
तभी कुछ दूरी पर सड़क के किनारे उन्हें एक साया खड़ा नज़र आया जो हाथ हिलाकर गाड़ी रोकने का इशारा कर रहा था। गाड़ी की गति धीमी होने के कारण गाड़ी धीरे धीरे उस साये की ओर बढ़ रही थी। अब डॉक्टर राघव की आंखें सड़क से हटकर उस साये पर टिकी थी। एक पल को ऐसा लगा कि वहां कोई नहीं है, लेकिन फिर वह दोबारा नज़र आया।

धीरे धीरे गाड़ी उसके बिल्कुल पास पहुंच गई और डॉक्टर राघव ने यन्त्रवत ब्रेक लगा दी।
दिमाग कह रहा था कि गाड़ी नहीं रोकनी चाहिए थी, परंतु जैसे उनका अपने आप पर नियंत्रण नहीं था। अब वह साया धीरे धीरे चलता हुआ ड्राइविंग सीट वाली खिड़की पर आ कर खड़ा हो गया। डॉक्टर राघव की नज़र उस साये पर टिकी थी और उनके हाथ ने मशीन की तरह आगे बढ़ कर खिड़की का शीशा नीचे कर दिया।
क्या चाहता था वो?
वह एक वृद्ध व्यक्ति था। चेहरा एकदम सपाट। घुंघराले बाल बेतरतीबी से बिखरे हुए थे। आंखें बिना किसी अभिव्यक्ति के थी। डॉक्टर राघव ने प्रश्नसूचक दृष्टि से उसे देखा तो वह एकदम सपाट स्वर में बोला 'मेरी पत्नी बहुत बीमार है, चलिए मेरे साथ।' उसके स्वर में विनती नहीं बल्कि एक आदेश था। फिर वह अप्रत्याशित रूप से ड्राइविंग सीट के साथ वाली सीट के दरवाज़े पर खड़ा दिखाई। वह कब वहां से हट कर उस ओर जा पहुंचा, पता ही नहीं चला। डॉक्टर राघव ने मशीन की तरह हाथ बढ़ा कर दरवाज़ा खोल दिया।
वह आदमी साथ वाली सीट पर आकर बैठ गया। हैरानी वाली बात यह थी कि इतनी भंयकर बारिश के बावजूद वह भीगा हुआ नहीं था। डॉक्टर राघव के दिमाग में बहुत से प्रश्न घूम रहे थे लेकिन उन्होंने कुछ नहीं पूछा और बस गाड़ी चला दी।
कुछ ही दूर आगे जाकर उस आदमी ने गाड़ी रुकवा दी। अब वह आदमी गाड़ी से उतर कर बोला 'आओ और अपना झोला भी ले आओ!' बारिश अब तक मामूली बूंदा-बांदी में बदल चुकी थी।
डॉक्टर राघव ने मानी हर बात
डाक्टर राघव हड़बड़ा कर बोले 'झोला ? ओह! मतलब बैग! हां हां लाता हूं।' डाक्टर राघव उसका हर आदेश इस तरह मान रहे थे, मानो वे उसके गुलाम हो। अब वह आदमी बायीं तरफ बनी पगडंडी में घुस गया। डाक्टर राघव ने गाड़ी की पिछली सीट से अपना बैग उठाया और धड़ाम से गाड़ी का दरवाज़ा बन्द किया और उसके पीछे-पीछे लपके।

लगभग बीस कदम चलने के बाद वह पगडंडी एक खुले मैदान में पहुंच गई। मैदान में सामने की तरफ एक लकड़ी का बना हुआ बहुत सुंदर एक मंजिला मकान था जो पूरी तरह रोशनी में नहाया हुआ था। उस आदमी ने तेज़ी से अन्दर घुस कर डाक्टर राघव को रास्ता दिखाया। फिर वह उनको एक कमरे में ले गया, जहां पर पलंग पर एक वृद्ध स्त्री लेटी हुई कराह रही थी। उस आदमी ने महिला की तरफ इशारा करते हुए डाक्टर राघव से रूखे स्वर में कहा ' ये है मेरी पत्नी। बुखार बहुत तेज़ है।'
डॉक्टर राघव ने उस औरत की कलाई पकड़ी तो वाकई वह तप रही थी। फिर उस औरत ने आंखें खोल कर डॉक्टर राघव की ओर देखा और बड़ी ही मुश्किल से सिर्फ इतना ही कह पाई 'मुझे सांस लेने में बहुत तकलीफ़ हो रही है। कोई दवा दे दो बेटा।'
डॉक्टर राघव हुए असहज
अब डॉक्टर राघव नब्ज़ टटोलने लगे तो अचानक से उस आदमी ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। उसकी आवाज़ में कुछ तल्खी थी 'नब्ज़ की जांच मत करो।' ऐसे ही जब डॉक्टर राघव स्टेथेस्कोप से जांच करने लगे तो भी मना कर दिया। वह गुस्से में बोला ' डॉक्टर ! हाल सुन कर ही दवा दो।'
दवा एक तरफ रख कर वह डॉक्टर राघव से बोला ' चलिए ! आपको छोड़ आऊं । ' फिर जिस तरह से वे दोनों आए थे, उसी तरह वापिस गाड़ी तक लौट आए। डॉक्टर राघव जब गाड़ी में बैठे तो वह आदमी भी दूसरी तरफ़ का दरवाज़ा खोल कर साथ बैठ गया। डॉक्टर राघव ने जब उसकी ओर प्रश्नसूचक दृष्टि से देखा तो वह चेतावनी भरे स्वर में बोला 'पुलिया तक तो तुम्हें मैं ही छोड़ कर आऊंगा। वरना मुश्किल में पड़ जाओगे डॉक्टर !'
अगली सुबह
'और आप कल रात घर क्यों नहीं गए? क्या गाड़ी बंद पड़ गई थी? और इस सड़क पर आप क्या कर रहे हैं? आप तो हमेशा दूसरी सड़क से जाते हो।' मधु काका एक के बाद एक सवाल पूछे जा रहे थे और डॉक्टर सुबोध थे कि एकदम बदहवास से बस मधु काका की शक्ल देख रहे थे।

फिर जब मधु काका ने देखा कि डॉक्टर राघव परेशान से चुप हैं तो वह चुप हो गए। डॉक्टर राघव को पानी पिलाया तो वह कुछ सामान्य हुए। फिर डॉक्टर राघव ने मधु काका को पिछली रात की सारी बात बताई।
डॉक्टर राघव की गाड़ी उसी पुलिया के पास खड़ी थी जिसकी दायीं ओर की ढलान से पिछली रात उस आदमी के कहने पर डॉक्टर राघव ने गाड़ी नीचे उतार दी थी। बारिश पूरी तरह रुक चुकी थी और मौसम भी कुछ खुल चुका था।
दोनों थे हैरान
मधु काका चलते हुए उस ढलान के पास आए और हैरानी से बोले 'देखिए! आप कह रहे हैं कि आपने इस ढलान से गाड़ी नीचे उतार दी थी। ऐसा करना तो सीधा मौत को दावत देना है। ये एकदम खड़ी ढलान है। यहां से गाड़ी उतारना तो बिल्कुल असंभव है। गाड़ी यहां पर उतारने की कोशिश भी की तो वो पलट जाएगी।'
फिर कुछ सोच कर वे बोले 'लगता है आप की गाड़ी बंद पड़ गई होगी, फिर आप गाड़ी में ही सो गए और आपने कोई सपना देखा है बस। और कुछ नहीं।'
लेकिन डॉक्टर राघव नहीं माने। फिर दोनों दूर बनी एक पगडंडी के सहारे नीचे ढलान तक पहुंचे। ढलान के एकदम नीचे पहुंच कर डॉक्टर राघव ने ऊपर सड़क की तरफ देखा तो उनके शरीर में एक झुरझुरी दौड़ गई। इतनी खड़ी ऊंचाई से कोई भी कार उतर ही नहीं सकती थी। एकपल को उन्हें अपने ऊपर ही अविश्वास होने लगा कि वे इसी ढलान से गाड़ी उतार कर लाए थे?
तभी उनकी नज़र नीचे सड़क पर गई तो वे अचानक सड़क की तरफ इशारा करके चिल्लाए 'ये देखिए काका, मेरी गाड़ी के पहियों के निशान!' काका हैरानी से देखने लगे जबकि डॉक्टर राघव निशानों का पीछा करते हुए उसी ओर चल पड़े, जिधर पिछली रात वे अपनी गाड़ी से गए थे। काका भी उनके पीछे-पीछे चलने लगे।
सब कुछ है रहस्यमई
कुछ ही देर में वह जगह आ गई जहां पर वे गाड़ी से उतरे थे। वहां रुक कर डॉक्टर राघव ने काका को बताया 'इस तरफ जाने पर आगे एक खुला मैदान है, जहां सामने की ओर एक लकड़ी का शानदार घर बना हुआ है। कल रात मैं उसी घर में गया था।' डाक्टर राघव ने उस घर के अन्दर की कुछ और भी निशानियां काका को बताईं । अब वे दोनों झाड़ियों से घिरी एक पतली पगडंडी से होते हुए उसी खुले मैदान में पहुंच गए।
वहां पहुंच कर डॉक्टर राघव का मुंह खुला का खुला रह गया। वहां पर एक लकड़ी का बना हुआ मकान तो था, लेकिन बहुत पुराना और टूटा फूटा। मकान की हालत देख कर उनके मुंह से बोल नहीं फूट रहा था। काका ने उनको संभाला तो उन्होंने काका को बताया कि पिछली रात यह मकान एकदम नया नकोर था।

मकान वहीं लेकिन हालात अलग
फिर डॉक्टर राघव लगभग दौड़ते हुए उस मकान के उसी कमरे में पहुंच गए। काका भी उनके पीछे-पीछे आए। वहां वहीं पलंग भी था, जिस पर वह बूढ़ी औरत लेटी हुई थी, लेकिन पलंग भी बिल्कुल टूट चुका था।
सबसे बड़ी हैरानी की बात यह कि वहां पलंग पर वही दवा की शीशी पड़ी थी, जो डॉक्टर राघव ने रात को उस बीमार स्त्री के लिए थी। डॉक्टर राघव ने झपटकर वह शीशी उठा ली और पाया कि वह खाली थी। डॉक्टर राघव उत्तेजित हो कर काका से बोले 'देखिए! देखिए काका! यह दवा की शीशी मैं ही रात को देकर गया था। इस शीशी को तो पहचानते हैं न आप? ऐसी ही शीशी न जाने मैंने कितनी ही बार आप ही के हाथ मुखिया जी के लिए भिजवायीं हैं।'
डॉक्टर राघव हुए परेशान
डॉक्टर राघव उस समय बिल्कुल आपे में नहीं थे। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि पिछली रात जो देखा वह सच था या जो अब देख रहे हैं, वह सच है। काका ने उन्हें संभाला और वहां से बाहर निकाल लाए । काका कुछ बोले नहीं, लेकिन जितनी देर काका वहां पर रुके उन्होंने वहां की हर चीज को देख कर परख लिया था। उन्हें वे सब निशानियां भी मिल गई थीं जो डाक्टर राघव ने उन्हें उस मकान के बारे में बताईं थीं। काका एक उम्रदराज़ और अनुभवी इंसान थे। वे समझ चुके थे कि ये सारा मामला इंसानी नहीं है।
अभी वे दोनों मकान से निकल कर कुछ ही दूर चले थे कि उन्हें अपने पीछे तड़ तड़ की आवाज़ आनी शुरू हो गई। दोनों ने पलट कर पीछे देखा तो वह मकान धूं धूं करके जल रहा था और आग की लपटें आसमान छू रही थीं।

डाक्टर राघव बिना कुछ सोचे-समझे पागलों की तरह उस मकान की ओर वापिस दौड़े तो काका ने मज़बूती से उनका हाथ पकड़ कर उन्हें रोक लिया। काका बेचैनी से बोले 'चलिए यहां से डाक्टर बाबू। अब यहां रुकना खतरे से खाली नहीं। हमें यहां नहीं आना चाहिए था। क्या आपको अभी भी समझ नहीं आया के ये किसी इंसान का काम नहीं है। उन रूहों ने पिछली रात तो आप की जान बख्श दी लेकिन अब वो ये संकेत दे रहीं हैं कि वें ये नहीं चाहती कि कोई उनके बारे में जानने की कोशिश करे।' अब काका लगभग घसीटते हुए डाक्टर राघव को वहां से लेकर चल पड़े और सुरक्षित गाड़ी तक लौटा लाए।
कुछ देर गाड़ी में बैठ कर डॉक्टर राघव सामान्य हुए तो काका से बोले 'मेरा दिल कह रहा है कि मैं यह मान लूं कि पिछली रात का वाकया एक सपना था। लेकिन हालात बता रहें हैं कि वह सच था। '
रूहों की दुनिया
तब काका बोले, 'आपको समझ नहीं आ रहा कि वह सब क्या था लेकिन मुझे आ रहा है। जितना हम देखते और समझते हैं, उस सब से परे भी बहुत कुछ है, जो हमारी नज़रों से दूर और समझ से परे है। बेहतर यही होगा कि हम उसमें दखलंदाजी न करें। बस ईश्वर का धन्यवाद कीजिए कि उन्होंने आपकी रक्षा की। चलिए दवाखाना वापिस चलते हैं। बहू को भी फोन करके बताना है कि आप ठीक ठाक हैं।'
डॉक्टर राघव गाड़ी चलाने की हालत में नहीं थे, इस लिए काका उन्हें अपने साथ उस घोड़ा गाड़ी में ले गए, जिस पर वे डॉक्टर राघव को ढूंढने निकले थे।

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