
कहते हैं, शब्द ज़रूरी नहीं होते हर बात कहने के लिए। कभी-कभी एक मुस्कान ही काफी होती है — जो दिल की गहराइयों से निकलती है और सामने वाले के मन को छू जाती है।
मुस्कान कोई दिखावा नहीं, एक एहसास है। जब थकी हुई शाम में कोई दोस्त बिना कहे मुस्करा दे, या जब किसी अजनबी की मुस्कान आपके दिन को रोशन कर दे — तब समझ आता है कि इंसानी जुड़ाव कितने साधारण पलों में छुपा होता है।
ये मुस्कान ही तो है जो हमें उम्मीद देती है, टूटते लम्हों में भी थामे रखती है। कई बार तो खुद से भी लड़ने की हिम्मत मुस्कान से ही मिलती है — चाहे वो किसी अपने की हो, या आईने में खुद से की गई मुलाकात की।
तो मुस्कराइए… क्योंकि ज़िंदगी जितनी भी उलझी हो, मुस्कान हमेशा रास्ता आसान कर सकती है। पढ़िए एक बहुत ही सुन्दर hindi kahani मुस्कान वाला बूढ़ा।
Hindi Kahani मुस्कान वाला बूढ़ा : अंदर की रोशनी
गाँव सूरतपुर के कोने में एक पुराना बरगद का पेड़ था, जिसके नीचे एक बूढ़ा व्यक्ति रोज़ बैठता था। उनकी छोटी सी झोंपड़ी वहीं पास में थी। उनके चेहरे पर हमेशा एक मधुर मुस्कान रहती — न ज्यादा चौड़ी, न दिखावटी, बस एक शांत सी मुस्कान।

गाँव वाले उन्हें बहुत सम्मान देते थे और बाबा मुस्कान कहते थे। बच्चे उन्हें घेर कर कहानियाँ सुनते, महिलाएं उनसे सलाह लेतीं, और थके-मांदे लोग कुछ पल उनके पास बैठकर जैसे अपनी सारी थकान भूल जाते।
कहते हैं उनका इस दुनिया में कोई नहीं था। एक समय उनका भी एक भरा-पूरा परिवार था। परंतु एक प्राकृतिक आपदा में सब खत्म हो गया। फिर वे बाबा इस शांत गांव में आकर बस गए। अब गांव ही उनका परिवार था और गांव के लोग ही उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखते।
फिर एक दिन गाँव में आया एक नौजवान — रतन। अपने किसी रिश्तेदार से मिलने आया था। वही रिश्तेदार उसे बाबा मुस्कान से मिलवाने ले गया। बाबा ने देखा, रतन की आँखों में बेचैनी थी, माथे पर बल और होंठों पर मुस्कान तो जैसे कभी आई ही न हो।
क्या थी रतन की उलझन
रतन एक पढ़ा-लिखा नौजवान था, शहर में नौकरी करता था, लेकिन अब सब छोड़कर कुछ समय के लिए शांति की तलाश में गाँव आया था। उसे शहर की दौड़-भाग, प्रतियोगिता और आत्म-संतोष की कमी ने भीतर तक थका दिया था। वह बाबा मुस्कान के पास जाकर चुपचाप बैठ गया।
कुछ देर बाद रतन ने बाबा से पूछा - आप हमेशा मुस्कुरा कैसे सकते हैं, बाबा? दुनिया में इतना दुःख है, संघर्ष है... क्या ये मुस्कान सिर्फ दिखावा है?
तब बाबा मुस्कान ने शांति से उत्तर दिया - बेटा, मुस्कान दिखावा नहीं, अभ्यास है। जैसे सुबह उठकर हम दांत साफ करते हैं, वैसे ही आत्मा को हल्का करने के लिए मुस्कुराना जरूरी है।

रतन बोला - लेकिन जब अंदर कुछ अच्छा न लगे तो? जब सब कुछ उलझा हो?
बाबा मुस्कान ने धैर्य से समझाते हुए कहा - तभी तो मुस्कान सबसे ज्यादा ज़रूरी है। मुस्कान अंदर के अंधेरे को रोशनी देती है। मुस्कुराने का मतलब यह नहीं कि सब कुछ ठीक है, इसका मतलब है कि तुम ठीक रहना चाहते हो।
कभी होंठों की कोर पर रुक जाती है,
तो कभी आंखों में चमक बन बहक जाती है।
ज़िंदगी की उलझनों में ये मुस्कान ही तो है,
जो थामे रखती है हमें… बिना कुछ कहे।
एक सच्ची मुस्कान, शायद सबसे खूबसूरत तोहफा होती है —
जो आप किसी को दे सकते हैं… और खुद भी पा सकते हैं।
तीन दिन की चुनौती
बाबा मुस्कान ने रतन को एक छोटी सी चुनौती दी। वे बोले - रतन, तीन दिन बस एक अभ्यास कर। हर सुबह उठते ही खुद से कह — मैं संतुष्ट हूँ। फिर चाहे दिन कैसा भी हो, हल्की मुस्कान बनाये रख। देख, क्या बदलता है।पहले दिन रतन ने कोशिश की, लेकिन दोपहर तक ही उसकी भौंहें तनी रहीं। दूसरे दिन उसने ध्यान से खुद को समझाने की कोशिश की — सब कुछ है मेरे पास, क्यों परेशान रहूं? तीसरे दिन अचानक उसे महसूस हुआ कि उसकी साँसें भी धीमी और हल्की हो गई हैं।

भीतर की रोशनी
तीसरे दिन शाम को रतन फिर बाबा मुस्कान के पास पहुँचा। उसके चेहरे पर भी अब एक हल्की मुस्कान थी — बिल्कुल वैसी, जैसी बाबा के चेहरे पर हमेशा रहती है।
रतन हैरानी से बोला - बाबा, ये सच में काम कर गया। बाहर कुछ नहीं बदला, पर अंदर कुछ बदल गया है।
तब बाबा मुस्कान हंसते हुए बोले - बाहर की दुनिया को मुस्कान से जीतना कठिन है, पर भीतर की दुनिया को मुस्कान से जीतना आसान। और जब भीतर जीत गए, तो बाहर हार भी असर नहीं करती।

मुस्कान का प्रसाद
उस दिन के बाद रतन ने हमेशा के लिए गाँव में ही बस जाने का निर्णय लिया। वहां रहकर उसने एक पुस्तकालय शुरू किया, जहाँ वह बच्चों को पढ़ाता और रोज़ किसी एक को मुस्कुराना सिखाता। धीरे-धीरे गाँव की हवा भी बदलने लगी।
समय बीता। बाबा मुस्कान कुछ अस्वस्थ रहने लगे। कुछ और समय बीता और बाबा मुस्कान उसी सौम्य मुस्कान के साथ इस नश्वर संसार को छोड़ गए। बाबा का चला जाना पूरे गांव के लिए एक बहुत बड़ा दुख था। लेकिन यह तो संसार का नियम है, यहां कोई भी हमेशा नहीं रहता।

कहानी का सार
मुस्कुराना किसी समाधान की गारंटी नहीं, पर यह समाधान की ओर पहला कदम है। संतुष्टि बाहर से नहीं आती, यह भीतर से उगती है — एक छोटी सी मुस्कान से।
चुपके से चेहरे पर जो खिल जाती है,
जैसे अंधेरे में रौशनी मिल जाती है।
बिना कुछ कहे सब कुछ कह जाती है,
ये छोटी सी मुस्कान, दिलों को छू जाती है।
© 2025 StoryHindiofficial.in
इस लेख की सभी सामग्री, कहानी और विचार मौलिक और कॉपीराइट के अंतर्गत सुरक्षित हैं। बिना अनुमति इस लेख को पुनः प्रकाशित करना, कॉपी करना या किसी भी रूप में उपयोग करना कानूनन दंडनीय है। कृपया रचनात्मकता की इज्जत करें।