बोले मेरी गुफा - एक समझदार लोमड़ी की चतुराई की कहानी

समझदार लोमड़ी का कहना था कि वह जिस गुफा में रहती है, वह एक जादुई गुफा है और वह बोल भी सकती है। क्या सच में ही लोमड़ी की गुफा एक जादू की गुफा थी, आइए पढ़ते हैं Hindi short stories की एक मजेदार कहानी में।

Hindi short stories बोले मेरी गुफा

एक समझदार लोमड़ी की चतुराई की कहानी

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एक जंगल में एक लोमड़ी रहती थी। जब वह बहुत छोटी ही थी तब वह अपने परिवार से बिछुड़ गई थी। उसके परिवार के सभी सदस्यों को एक शिकारी ने मार दिया था। किसी तरह से उस शिकारी की नजर उस पर नहीं पड़ी और वह बच निकली। तब वह एक छोटी बच्ची ही थी।


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कैसी थी लोमड़ी ?

एक तो प्रकृति ने पहले ही लोमड़ियों को बहुत तेज दिमाग और तीक्ष्ण बुद्धि दी है, इस प्रकार अकेले ही अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए बचपन से ही संघर्ष करते हुए वह अब और भी अधिक चतुर चालाक और समझदार हो गई थी।


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एक बार की बात है जब वह शिकार ढूंढ रही थी तो उसकी नजर एक खरगोश पर पड़ी। घात लगाकर उसने खरगोश पर हमला किया। खरगोश अपनी जान बचाने के लिए भागता फुदकता हुआ फुर्ती से पास की घनी लंबी झाड़ियों में भाग गया। लोमड़ी भी उसके पीछे-पीछे झाड़ियों में घुसी।


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अरे !यह क्या मिला लोमड़ी को ?

झाड़ियों में घुसने पर लोमड़ी को खरगोश तो नहीं मिला। वह किसी तरह से अपनी जान बचाकर भाग चुका था। लेकिन लंबी घनी झाड़ियों के पीछे कुछ दूरी पर लोमड़ी को एक गुफा नजर आई। गुफा का मुंह छोटा होने के कारण दूर से वह केवल एक पहाड़ ही नजर आती थी। पास जाने पर ही गुफा का मुंह नजर आता था। लोमड़ी सावधानी पूर्वक गुफा के बाहर बैठ गई और गंध लेने की कोशिश करने लगी। उसे गुफा के अंदर से किसी भी जानवर की गंध नहीं आई तो वह अंदर चली गई।


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कैसी थी गुफा ?

गुफा में से हवा बहती हुई आ रही थी, क्योंकि वह गुफा आगे जाकर बंद नही थी बल्कि दूसरे छोर पर भी खुली थी। इसलिए गुफा में थोड़ी रोशनी भी थी। दूसरे छोर पर पर भी गुफा के मुहाने पर लंबी-लंबी घास उगी हुई थी, और इस प्रकार उस तरफ से भी गुफा का मुंह छोटा सा था और बाहर से किसी को दिखाई नहीं देता था।


गुफा की हालत बता रही थी कि आज तक उसके अंदर कोई जानवर नहीं आया था। लोमड़ी को वह गुफा बहुत अच्छी और आरामदायक लगी। फिलहाल वह एक पेड़ के तने में बनी एक कोठर में रह रही थी, जो कि काफी छोटी सी थी। लेकिन यह गुफा बहुत खुली, बड़ी और साफ सुथरी थी। लोमड़ी ने उसी गुफा में रहने का निश्चय किया।


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अब लोमड़ी आराम से उसी गुफा में रहने लगी। शिकार मार कर अपनी गुफा में लाती और आराम से खाती। वह इतनी समझदार थी कि कभी भी गुफा में बिल्कुल सामने से न तो घुसती थी और न ही निकलती थी, बल्कि एक कोने से होकर घुसती और निकलती थी ताकि गुफा के मुंह के सामने की झाड़ियां अव्यवस्थित न हो और गुफा का मुंह अन्य किसी जानवर को नजर न आ पाए।

कौन जान गया गुफा के बारे में ?

ऐसे ही एक दिन जब वह अपनी गुफा में लौट रही थी तो शिकार की तलाश में घूमते हुए एक भूखे शेर ने उसको देखा और उसका शिकार करने की मंशा से उसके पीछे आया। लेकिन सहसा लोमड़ी झाड़ियों में घुस गई। शेर भी उसके पीछे-पीछे झाड़ियों में घुसा और उसे भी गुफा का मुंह नजर आ गया। अब वह भी अंदर चला गया लेकिन वहां पर उसको लोमड़ी नहीं मिली क्योंकि संयोग से गुफा में घुसते ही लोमड़ी को गुफा के दूसरे मुंह की तरफ किसी शिकार की आहट मिल गई, तो वह गुफा में घुसते ही दूसरी तरफ से बाहर निकल गई थी।


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गुफा में बिखरी हुई हड्डियों और सड़े हुए मांस के टुकड़ों से शेर ने यह अंदाज़ा तो लगा लिया कि वह लोमड़ी इसी गुफा में रहती है। लेकिन इस समय वह उसके हाथ से निकल चुकी थी और वह भूख से बेहाल था। इस तरह वह वापिस किसी अन्य शिकार की तलाश में गुफा से बाहर आ गया। लेकिन लोमड़ी का ठिकाना अब शेर की नजर में आ चुका था।

शेर बैठा घात लगाए

अगले दिन की बात है शेर फिर से लोमड़ी को मारने की नीयत से उस गुफा में घुसा। लेकिन उस समय भी लोमड़ी उसको वहां नहीं मिली। तब उसने सोचा कि क्यों ना यही बैठ कर लोमड़ी का इंतजार करता हूं, कभी ना कभी तो आएगी और फिर जान से जाएगी। इस तरह वह इस गुफा में रुक गया और लोमड़ी का इंतजार करने लगा।


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लोमड़ी जान गई

जब लोमड़ी गुफा में लौटी तो उसने देखा कि गुफा के सामने की घास काफी जगह से दबी हुई थी। इसका मतलब कोई जानवर सीधा गुफा के अंदर घुसा था। फिर वह थोड़ी सी आगे गई तो उसको शेर के पंजों के निशान गुफा के अंदर जाते हुए भी दिख गए जो कि उसने पहचान लिए। 


अब लोमड़ी अपनी सांस रोक कर वहीं गुफा के बाहर बैठ गई और सोचने लगी - इसका मतलब है शेर को मेरी इस गुफा के बारे में पता चल चुका है। परंतु यह निश्चित नहीं है कि वह अभी भी अंदर ही है कि नहीं।


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लोमड़ी की योजना

तभी उसके दिमाग में एक योजना आईं। वह गुफा की तरफ मुंह करके बोली - ऐ मेरी प्यारी गुफा, मैं आ गई हूं। बाहर बहुत गर्मी है। क्या तुमने अपने आप को ठंडा कर लिया है?


उसकी यह बात शेर ने सुनी तो वह कुछ समझ न पाया। वह अभी समझने की कोशिश ही कर रहा था कि क्या माजरा है, कि तभी लोमड़ी की आवाज फिर से सुनाई दी - मेरी प्यारी जादुई गुफा, मैं तुम्हारी बेटी गर्मी से बेहाल हूं। अपने आप को ठंडा कर लो और मुझे अंदर बुला लो।


जब शेर ने सुना कि यह एक जादुई गुफा है तो उसको कुछ-कुछ समझ में आने लगा। लेकिन अभी वह यह निश्चित नहीं कर पा रहा था कि वह क्या करें?


उधर फिर से लोमड़ी की आवाज आई - मेरी प्यारी जादू की गुफा, रोज तो तुम मेरा स्वागत करके मुझे अंदर बुलाती हो, लेकिन आज चुप क्यों हो? क्या तुमने किसी और को आश्रय दे दिया है या तुम मुझसे नाराज हो?


अब शेर को जितना समझ में आया वह यह था कि यह एक जादू की गुफा है और यह रोज लोमड़ी का स्वागत करके उसे अंदर बुलाती है।


लोमड़ी फिर से बोली - ठीक है मेरी प्यारी जादू की गुफा, अगर तुम मुझसे बात नहीं करना चाहती, मुझे अंदर नहीं बुलाना चाहती, तो मैं यहां से चली जाती हूं।


शेर नहीं समझ पाया लोमड़ी की चाल

अब तो शेर को पक्का यकीन हो गया कि यह गुफा रोज बोल कर स्वागत करके लोमड़ी को अंदर बुलाती है। आज यह शायद उसके यहां होने के कारण नहीं बोल रही। लोमड़ी के चले जाने की बात सुनकर वह हड़बड़ा कर आवाज बदलकर बोला - अरे! मेरी प्यारी बेटी, अंदर आ जाओ और मेरी ठंडक में अपनी गर्मी से राहत पा लो।

लोमड़ी ने बचा ली अपनी जान

बस! यही तो वह समझदार लोमड़ी चाहती थी कि अंदर जो कोई भी जानवर घात लगाए बैठा है, वह अपने मुंह से आवाज निकाले और अपने होने का सबूत दे दे। 


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लोमड़ी ने तुरंत ही शेर की आवाज पहचान ली और बिना एक भी क्षण गंवाए वहां से कूच कर गई। इस प्रकार उसको अपनी प्यारी गुफा छोड़कर जाना पड़ा। फिर वह कभी उस गुफा में नहीं लौटी।

शिक्षा

कोई वस्तु तुम्हारे लिए कितनी ही मूल्यवान, प्रिय और आवश्यक क्यों न  हो, यदि उसके कारण तुम्हारी जान पर बन आई है तो वह तुरंत ही त्याग करने योग्य है।


COMPILED BY - PUJA NANDA
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