धूर्त व्यक्ति ना तो भरोसा करने के लायक होता है और ना ही मित्र बनाने के योग्य होता है। धूर्त व्यक्ति पर भरोसा करने का बहुत बुरा परिणाम निर्दोष गधे को किस तरह भुगतना पड़ा, पढ़े इस Hindi stories चित्रकथा धूर्त लोमड़ी और मूर्ख गधा में।
Hindi stories धूर्त लोमड़ी और मूर्ख गधा
यह कहानी Hindi stories चित्रकथा 'धूर्त लोमड़ी' बहुत ही रोचक और शिक्षाप्रद है। जंगल के राजा शेर को जबरदस्त भूख लगी थी। बूढ़ा हो जाने के कारण अब वह उतना शक्तिमान और फुर्तीला नहीं रहा था।
किसे पकड़ा शेर ने
फिर भी वह शिकार पर निकला। थोड़ी देर बाद उसे एक लोमड़ी नजर आई। शेर ने उस पर हमला किया और लोमड़ी को धर दबोचा।
लोमड़ी अच्छी खासी स्वस्थ थी। शेर के एक समय के भोजन का इंतजाम अच्छा हो गया था। जैसे ही शेर लोमड़ी के शरीर में दांत गड़ाने लगा, लोमड़ी गिड़गिड़ाने लगी, 'नहीं शेर जी, नहीं शेर जी, मुझे मत खाओ।'
शेर हंसते हुए बोला, 'सयानी लोमड़ी, अगर तुझे छोड़ दूंगा तो मैं क्या खाऊंगा?'
'मैं... मैं लाकर दूंगी...आपको आपका भोजन... आप चिंता ना करें... आप यही इंतजार करें... मैं लेकर आऊंगी... आपके लिए आपका शिकार... मुझसे भी मोटा ताजा। फिर आप भरपेट भोजन करना।' लोमड़ी हड़बड़ा कर बोली। वह मन ही मन सोच रही थी कि किसी तरह बस इस समय उसकी जान छूट जाए।

क्या शेर ने मानी लोमड़ी की बात
क्या लोमड़ी देगी धोखा शेर को
फिर वह अपनी जगह से खड़ी हुई और बहुत ही नाटकीय स्वर में हाथ जोड़कर शेर से बोली,' धन्यवाद राजा जी, जो आपने मेरे प्राणों को छोड़ दिया। अब देखना मैं आपके लिए एक बहुत ही बढ़िया शिकार ढूंढ कर जल्दी ही वापस लौटती हूं।'
जब वह चलते-चलते शेर की पहुंच से दूर निकल आई तो उसने एक बार मुड़ कर देखा कि कहीं शेर भी तो पीछे-पीछे नहीं आ रहा। जब उसको दूर-दूर तक शेर कहीं दिखाई नहीं दिया तो उसने सरपट अपने पांव सिर पर रखकर तेज गति से दौड़ना शुरू किया।
फिर वह सोचने लगी, 'मैं भी इसी जंगल में रहती हूं। और वह शेर भी इसी जंगल में ही रहेगा। कभी यूं ही घूमते-फिरते अगर सामना हो गया तो वह मुझे धोखा देने के कारण बिल्कुल भी छोड़ेगा। फिर मैं क्या करूं? क्यों न मैं वास्तव में उसके लिए एक शिकार का बंदोबस्त करूं? इस तरह से मेरी जान पर बना खतरा भी टल जाएगा और उसको शिकार भी मिल जाएगा।' यह सोचकर उसने फैसला किया कि वह शेर के लिए शिकार लेकर जाएगी।
अब किसको फँसाया लोमड़ी ने शेर के लिए
अब वह किसी मोटे ताजे शिकार की तलाश में इधर-उधर घूमने लगी। तभी उसे थोड़ी दूर पर एक गधा घास चरता हुआ नजर आया।
लोमड़ी ने दिखाई अपनी चालाकी
गधे का वक़्त बुरा था
वह यह ना जान पाया कि लोमड़ी तो केवल अपना उल्लू सीधा कर रही है। जब लोमड़ी और गधा शेर के पास पहुंचे तो शेर गधे को पकड़ने के लिए उस पर झपटा।
अब लोमड़ी भी गधे के पीछे-पीछे भागती हुई वहीं पहुंची जहां गधा झाड़ियों में छिपा बैठा कराह रहा था।
लोमड़ी बोली, 'अरे महाराज, आप वहां से भाग क्यों आये?'
गधा गुस्से से और दर्द से कराहते हुए बोला,' तुमने मुझसे झूठ बोला। वो शेर तो मुझे मारना चाहता था। ये देखो, उसने मेरे दोनों कान काट खाए हैं।'
क्या लोमड़ी के जाल में फसेगा गधा फिर से
'अरे नहीं महाराज। ऐसे कैसे हो सकता है।' लोमड़ी बोली 'वो दरअसल आपके कान मुकुट पहने में बाधक थे। यदि आपके कान सिर पर लगे रहते तो आप ठीक से मुकुट ना पहन पाते। इसीलिए शेर को आपके कान काट लेने पड़े। लेकिन अब तो सब ठीक है, तो चलिए जाकर अपना राजपाट संभालिए।'
शेर ने फिर दिखाई ज़ल्दबाज़ी
इस तरह से बहला-फुसला कर लोमड़ी गधे को अपने साथ वापस शेर के पास ले गई। अब शेर ने फिर से अधीरता दिखाते हुए गधे के ऊपर पीछे से हमला किया। अपने ऊपर हमला हुआ जान गधे ने दोनों पिछली लातों से इतनी तेज दुलत्ती मारी कि वह बूढ़ा शेर पछाड़ खाकर दर्द से बिलबिलाता हुआ पीछे हो गया और गधा फिर से अपनी जान बचाकर वहां से भाग गया। लेकिन वहां से भाग जाने से पहले शेर उस पर इतने तो दांत गड़ा ही चुका था कि उस गधे की पूंछ शेर के मुंह में आ गई और उसके शरीर से अलग हो गई।
लेकिन चालाक लोमड़ी उसे कहां छोड़ने वाली थी। वह तो हाथ आया हुआ शिकार था। अगर वह गधे को जाने देती तो उसकी अपनी खुद की जान पर बन आती। इसलिए वह ढूंढती हुई फिर से गधे के पास पहुंची गई और बोली, 'महाराज इससे पहले आप मुझसे कुछ शिकायत करें, मैं स्वयं ही आपसे क्षमा मांगती हूं। दरअसल आपकी जो पूंछ थी, वह सिंहासन पर बैठने में बाधक बन रही थी। इसलिए हमें आपकी पूंछ भी काट देनी पड़ी। परंतु अब सब ठीक हो चुका है। आपकी मरहम पट्टी की भी हमने व्यवस्था कर ली है। चलिए पहले अपनी मरहम पट्टी करवा लीजिए, और उसके बाद अपना ताज पहनिए और अपना सिंहासन संभाल लीजिए।'
क्या गधा अब भी जाएगा महाराज बनने
और इस तरह से चालाक लोमड़ी फिर से बहला- फुसला कर उस मूर्ख गधे को अपने साथ वापस शेर के पास ले गई। पिछले दो अनुभवों से अब शेर भी समझ कर चुका था कि अधीरता से काम नहीं लेना है, बल्कि चालाकी से काम लेना है। उधर दो चोट खाए हुए गधे की हालत अब खराब हो चुकी थी। वह दर्द से तड़प रहा था। इसलिए उसके शरीर में अब उतनी स्फूर्ति भी नहीं बची थी।जब वे दोनों शेर के पास पहुंचे तो लोमड़ी ने शेर को चुप रहने का इशारा किया। और गधे से बोली, 'महाराज, यहां इस चट्टान पर आंखें बंद करके बैठ जाइए। पहले हम आपकी मरहम पट्टी कर देते हैं, फिर आप को सिंहासन तक ले चलेंगे।'
शिक्षा
इस Hindi stories से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें धूर्त व्यक्ति का कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिए, चाहे वह हमारा दोस्त बनकर ही क्यों ना हमारे पास आए।
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