एक अमीर सेठ थे। अजीब बात थी कि कोई उनसे बात नहीं करना चाहता था। घर के सभी सदस्य, नौकर-चाकर हर कोई उनसे बात करने से कतराता था और कोशिश करता था कि उनसे बात किये बिना ही काम चल जाए तो ज्यादा अच्छा है। क्या कारण था, आइये जाने इस Hindi short story में।
Hindi Short Story ऐसी वाणी बोलिए
storyhindioficial.inयह कहानी एक गांव की है जिसमे एक सेठ रहते थे। आर्थिक रूप से संपन्न थे। भरा पूरा परिवार था। खेती-बाड़ी बढ़िया चलती थी।
सेठ जी का अवगुण
क्या करते थे फिर परिवार वाले
परिवार के लोग तो उनकी इस आदत से परेशान थे ही,आसपास तक के लोग भी उनके इस व्यवहार से खुश नहीं थे। जो भी लोग उनके संपर्क में थे, वे उनसे नपी-तुली बात करना ही पसंद करते थे। परंतु फिर भी कभी ना कभी कोई ना कोई ऐसी बात निकल ही आती थी कि उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता था।
कभी-कभी उनके घर वाले उनसे परेशान होकर बोलना तक छोड़ देते। लेकिन एक ही परिवार में रहकर अनबोला पन भी नहीं चल सकता इसलिए यह भी लंबा नहीं चलता था और वह फिर से उनसे बोलना शुरू कर देते थे।इस प्रकार ही समय बीत रहा था। लेकिन सेठ की आदत नहीं बदली न ही उनके स्वभाव में कोई बदलाव आया।
कोई आया गांव के बाहर रहने
एक दिन उनके गांव के बाहर एक साधु महाराज आकर ठहरे। उनके ज्ञान और बुद्धिमत्ता की कीर्ति धीरे-धीरे पूरे गांव में फैल गई। सेठ जी के परिवार ने भी उनके बारे में सुना तो उन्होंने अपनी समस्या को लेकर उनके पास जाने का फैसला किया।
परिवार के लोग गए साधु बाबा की शरण में
अंततः एक दिन सेठ जी के घरवाले उन साधु महाराज के पास गये और अपनी समस्या बताकर बोले- 'महाराज ! हम उनसे अत्यधिक परेशान हो गये हैं, कृपया कोई उपाय बताइये।' तब, साधु ने कुछ सोचकर कहा- 'अगर मैं कहूं कि आप सेठ जी को मेरे पास भेज दीजिएगा, तो मैं जानता हूं कि यह संभव नहीं है। वह कभी भी मेरे पास नहीं आएंगे। लेकिन आप लोग चिंता ना करें। आपकी समस्या का समाधान है मेरे पास। मैं स्वयं ही आपके घर आऊंगा।'
'ठीक है, महाराज' कहकर सेठ जी के घरवाले वापस लौट गये। तब एक दिन साधु महाराज उनके घर पहुंचे। वे अपने साथ एक गिलास में कोई द्रव्य लेकर गये थे। घर आए हुए साधु का सेठ जी ने अच्छे से आदर-सत्कार किया क्योंकि उन्होंने भी कई लोगों से गांव के बाहर ठहरे हुए उन साधु के बारे में सुना था।
साधु बाबा आये सेठ जी से मिलने
साधु महाराज सेठ जी से बोले- 'सेठ जी ! मैं हिमालय पर्वत से आपके लिए यह पदार्थ लाया हूं, यह पदार्थ व्यक्ति को चिरकालिक स्वास्थ्य प्रदान करता है। जरा पीकर देखिये।'
पहले तो सेठ जी ने आनाकानी की, परंतु फिर घरवालों के आग्रह पर मान गये। उन्होंने द्रव्य का गिलास लेकर मुंह से लगाया और उसमें मौजूद द्रव्य को जीभ से चाटा।
ऐसा करते ही उन्होंने सड़ा-सा मुंह बनाकर गिलास होठों से दूर कर लिया और साधु से बोले- 'यह तो अत्यधिक कड़वा है, क्या है यह ?'
साधु बाबा का कटाक्ष
'अरे आपकी जबान जानती है कि कड़वा क्या होता है?' साधु महाराज ने आश्चर्य मिश्रित कटाक्ष के साथ कहा। तब सेठ जी ने फट से जवाब दिया 'निश्चय ही! यह तो हर कोई जानता है। कड़वा स्वाद भला किसे भाता है?'
'नहीं ऐसा नहीं है, अगर हर कोई जानता होता तो इस कड़वे पदार्थ से कहीं अधिक कड़वे शब्द अपने मुंह से नहीं निकालता।' वह एक पल को रुके फिर बोले, 'सेठ जी, याद रखिये, जो आदमी कटु वचन बोलता है, वह दूसरों को दुख पहुंचाने से पहले, अपनी जबान को गंदा करता है।'
सेठ जी को आई अक्ल
सेठ समझ गये थे कि साधु ने जो कुछ कहा है, उन्हें ही समझाने को कहा है। वह फौरन साधु के पैरों में गिर पड़े और बोले, 'साधु महाराज ! आपने मेरी आंखें खोल दी, अब मैं आगे से कभी कटु वचनों का प्रयोग नहीं करूंगा।'
सेठ के मुंह से ऐसे वाक्य सुनकर उनके घरवाले प्रसन्नता से भर उठे। तभी सेठ जी ने साधु से पूछा- 'किंतु, महाराज ! यह पदार्थ जो आप हिमालय से लाये हो वास्तव में यह क्या है ?'
साधु मुस्कुराकर बोले- 'नीम के पत्तों का अर्क।'
शिक्षा
कड़वा वचन बोलने से बढ़कर इस संसार में और कड़वा कुछ नहीं। कुछ कड़वा पी लेने से केवल हमारी जीभ का स्वाद ही कड़वा होता है परंतु कड़वा बोलने से हम सामने वाले की आत्मा और मन को बुरी तरह से आहत कर देते हैं।
इस विषय पर कबीर दास जी ने भी कहा है,
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरण को सीतल करे, आपहुं सीतल होय।
इसका अर्थ है कि कबीर दास जी हमें यह समझाते हैं कि हमेशा ऐसी भाषा बोलनी चाहिए, जो सामने वाले को सुनने में अच्छी लगे और उन्हें सुख की अनुभूति हो और साथ ही खुद को भी आनंद का अनुभव हो।
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