राजा का न्याय - राजा ने दी ऐसी सजा जो बनी वरदान

रतन को हर होने वाली घटना का पूर्वाभास हो जाता था। लेकिन उसका यही गुण उसका दुश्मन बन गया था। क्या उसको कभी वह सम्मान मिल पाया जिसका वह अधिकारी था ? पढ़े एक रोचक Hindi story of रतन, राजा का न्याय

Hindi story of राजा का न्याय

राजा ने दी ऐसी सजा जो बनी वरदान

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यह Hindi story of राजा का न्याय कहानी बहुत पुरानी है। बहुत समय पहले किसी गांव में रतन नाम का एक नवयुवक रहता था। उसके परिवार में उसकी मां और रतन दो ही सदस्य थे। रतन के पास थोड़ी बहुत खेती-बाड़ी के लायक जमीन थी, जिस पर वह खेती करके अपना और अपनी मां का भरण- पोषण करता था।


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रतन को होता था पूर्वाभास 

रतन के साथ एक बहुत अजीब बात थी कि उसके आसपास के लोगों के साथ जब भी कुछ बुरा होना होता था तो रतन को पहले ही स्वप्न में वह दिख जाता था। हालांकि रतन अपनी तरफ से अपना सपना लोगों को बताकर उनको चेतावनी दे देता था, लेकिन उस गांव के लोग रतन की चेतावनी को नकारात्मक रूप से लेते थे।


समझने वाली बात यह है कि वह रतन की चेतावनी को सकारात्मक रूप से लेकर अपना बचाव कर सकते थे, लेकिन वह पहले तो उस पर विश्वास नहीं करते थे, और जब वह बात हो जाती थी तो रतन को मनहूस कहकर दुत्कारते थे।


रतन की मां अक्सर उससे कहती कि तू अपने सपने के बारे में किसी को ना बताया कर। परंतु रतन कहता कि मां मैं तो इस मंशा के साथ बताता हूं कि मेरे सपने को सच मानकर अगर लोग पहले से ही अपना बचाव कर ले तो उनका बुरा नहीं होगा। लेकिन यह लोग उल्टा मुझे ही यह कह कर अपराधी मानते है कि मैं अपशकुनी हूं। मैं सबका बुरा चाहता हूं।

धीरे-धीरे गांव के लोगों में रतन के प्रति असंतोष बढ़ता गया। इस कारण अब रतन उस गांव में रहने में असहज महसूस करता था

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रतन को छोड़ना पड़ा गांव 

तब उसने यह निर्णय लिया कि वह उस राज्य के राजा मलय सिंह के पास जाएगा और राजमहल में ही कोई नौकरी देने की प्रार्थना करेगा।
ऐसा सोचकर वह अपनी मां की आज्ञा लेकर राजा की राजधानी की तरफ चल पड़ा। 


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रतन बना पहरेदार 

संयोग से राजा मलय सिंह के महल में कुछ पहरेदारों के पद खाली थे, इसलिए उसको बिना किसी परेशानी के जल्दी ही नगरकोट के मुख्य द्वार पर पहरेदार की नौकरी भी मिल गई।


काम बहुत जिम्मेदारी का था। उसको रात्रि के समय नगर के मुख्य द्वार पर पहरा देना था। उसके साथ और भी अन्य बहुत सारे पहरेदार थे। इन सभी पहरेदारों के ऊपर पूरे नगर की सुरक्षा की जिम्मेदारी थी। राजा की तरफ से यह चेतावनी दी गई थी कि यदि कोई भी पहरेदार अपने काम में लापरवाही करेगा तो उसको माफी नहीं मिलेगी और उचित दंडात्मक कार्यवाही की जाएगी।

कुछ दिन तक सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा। फिर एक दिन रतन राजा मलय सिंह के दरबार में पहुंचा 


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रतन ने फिर देखा स्वप्न

रतन राजा से बोला कि मैंने रात को स्वप्न में यह देखा है की आपके राज्य के उत्तरी छोर पर जो ऊंची-ऊंची पहाड़ियां हैं, उस तरफ से पड़ोसी दुश्मन राज्य की सेना आप पर हमला करने के इरादे के साथ आगे बढ़ रही है। उसने राजा को यह भी बताया कि यह किस प्रकार से उसके आए सपने में आई हर बात सच हो जाती है।



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राजा ने अपने गुप्तचरों को भेजकर पूरे मामले की जांच करवाई तो रतन की बात को सत्य पाया। शीघ्र ही राजा के पूरे लाव-लश्कर ने उत्तर की पहाड़ियों की तरफ नाकेबंदी कर ली और जब दुश्मन सेना वहां पहुंची तो अप्रत्याशित रूप से उन पर वापसी हमला करके दुश्मन के हमले को नाकाम कर दिया।


इस प्रकार रतन के सपने की बात सच हुई। अब रतन को दरबार में बुलाया गया। 

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रतन को मिला दंड 

राजा ने रतन से कहा, 'जैसा कि तुमने बताया कि तुमने रात में सपना देखा । इसका मतलब है तुम रात को सो गए और तुमने अपने कर्तव्य से लापरवाही की और अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाया। इसलिए तुम राजद्रोह के दोषी हो। तुम्हारा काम के समय सो जाना राजद्रोह है, जिसको कभी भी क्षमा नहीं किया जा सकता। इसलिए तुम्हें मेरी राज्य से निष्कासित किया जाता है।'


रतन भरे मन से इस राज्य को भी छोड़कर निकल पड़ा। चलते चलते-चलते वह यही सोच रहा था कि अब कहां जाऊंगा? 


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राजा ने निभाया अपना कर्तव्य

जब वह राज्य की सीमा पर पहुंचा तो वहां पर उसने पाया कि राजा का एक सैनिक एक घोड़े के साथ तैयार खड़ा था। उसने रतन को राजा का एक पत्र दिया और वह घोड़ा वहीं छोड़कर वहां से चला गया।



 रतन ने जब पत्र खोलकर पढ़ा तो उसमें लिखा था, 'प्रिय सैनिक, तुमने हमारे राज्य की रक्षा करके राज्य के प्रति वफादारी को निभाया है। परंतु तुम्हारा काम पहरेदारी का था जिसको कि तुम सो जाने के कारण निभा नहीं पाए। एक तरफ तो तुमने अपनी वफादारी निभाई तो दूसरी तरफ तुमने अपनी नौकरी से दगा कर दिया। राज्य के नियमों से बंधे होने के कारण मैं तुम्हारी लापरवाही को क्षमा नहीं कर सकता था हालांकि तुमने दुश्मन के हमले की बात बता कर हजारों लोगों की जान बचा ली। परंतु तुम्हें क्षमा देकर मैं किसी अन्य सैनिक के सामने यह उदाहरण नहीं पेश कर सकता कि लापरवाही के बावजूद भी माफी मिल सकती हैं। इस कारण तुम्हारा निष्कासन आवश्यक था। यदि एक व्यक्ति की लापरवाही को नजरअंदाज किया गया तो अन्य बहुत से सैनिक भी लापरवाह हो जाएंगे।'


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'तुम्हारी वफादारी के इनाम स्वरूप यह घोड़ा और तुम्हारे गुजारे लायक कुछ सामान राज्य की तरफ से तुम्हें दिया जाता है। यहां से तुम पूर्व दिशा की तरफ जाओ वहां एक राज्य है समस्तीपुर। उस राज्य के राजा इंद्रसेन मेरे मित्र हैं। तुम इंद्रसेन को मेरा पत्र देना। यह पत्र तुम्हें घोड़े के गले में लटका मिलेगा। वहां पर अवश्य ही तुम्हें अच्छी नौकरी पर रख लिया जाएगा। परंतु याद रखना, राजा को पहले ही यह बात बता देना कि तुम्हें रात्रि में किस प्रकार सच हो जाने वाले सपने आते हैं। इस प्रकार रात्रिकालीन नौकरी पर तुम्हें नहीं रखा जाएगा।'

रतन को मिला उचित सम्मान

जब रतन पड़ोसी राज्य के राजा के पास पहुंचा और राजा मलय सिंह का संदेश उनको दिया तो उन्होंने तुरंत ही एकअच्छे पद पर रतन को नौकरी पर रख लिया।




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अब रतन गांव जाकर अपनी मां को भी ले आया। रतन सिंह ने काफी वर्षों तक राजा इंद्र सेन की सेवा की, अपने सपनों के फल स्वरुप अनेक बार राज्य को संकट में आने से भी बचाया और अंततः वृद्ध होने पर उन्हें सम्मान सहित सेवानिवृत्त कर दिया गया।


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रतन सेवानिवृत्त जरूर हो गया था, परंतु अपने जीवन के अंत तक वह अपने सपनों से अपने आसपास के लोगों और राज्य की मदद करता रहा और उन्हें आने वाले खतरे के बारे में बताता रहा।

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