अनुभव की कमाई-एक अनोखे विवाह की कहानी

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वधु पक्ष ने वर पक्ष के सामने रक्खी एक ऐसी शर्त कि वर पक्ष के अक्ल के सभी घोड़े पस्त हो गए। लेकिन फिर ऐसा कुछ हुआ के नहले पर पड़ गया दहला और बात बन गई। आइए आनंद लें इस मज़ेदार Hindi story short चित्र कथा अनुभव की कमाई-एक अनोखे विवाह की कहानी का

Hindi story short अनुभव की कमाई - एक अनोखे विवाह की कहानी

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बात बहुत पुरानी है। भारत के राजस्थान जिले में राजपूतों का एक गांव था। गांव के मुखिया भी राजपूत ही थे और बहुत संभ्रांत और अमीर थे। उनका नाम प्रणत पाल चौहान था। 

मुखिया जी का पूरा परिचय 

कहा जाता था कि उनका संबंध राज परिवार से था। राजाओं के राज तो खत्म हो गए थे, परंतु राज परिवार से संबंधित होने के कारण यह राजपूत मुखिया का परिवार आज भी स्वयं को शाही परिवार मानता था। इनका ठाठ-बाट भी एक शाही परिवार की तरह ही था। धन-धान्य की किसी भी प्रकार की कमी नहीं थी। 


खेती के लिए बहुत ज़मीन थी। यह अलग बात है कि स्वभाव से मुखिया अपने नाम की ही तरह बहुत दयालु प्रवृत्ति के थे, और एक अच्छे इंसान थे। हां, शाही परिवार का रुआब उनके लहज़े में साफ़ नज़र आता था, और गुस्से के थोड़े तेज़ थे। गलत बात किसी की भी सहन नहीं करते थे। खानदान के मान-सम्मान का महत्व उनके लिए अपनी स्वयं की जान से भी ज्यादा था। प्रणत पाल के उच्च चरित्र के कारण उस गांव में और आसपास के गांवों में भी सब लोग उनका बहुत मान-सम्मान करते थे।


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मुखिया जी की संताने

प्रणत पाल की दो संतानें थी। एक बेटा विराज और एक बेटी मधु मालिनी। दोनों ही संताने माता-पिता की आज्ञाकारी थी। बेटा बेटी से केवल दो ही वर्ष बड़ा था, इसलिए पहले बेटी के ही विवाह का निर्णय लिया गया। वह समय ऐसा था जब छोटी ही आयु में विवाह हो जाया करते थे।


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मधु मालिनी था बहुत ही सुंदर और सुघड़ कन्या थी। घर के कामकाज में पारंगत थी। स्वभाव से भी बहुत ही अच्छी, मृदु भाषी और दयालु थी।

मुखिया जी ने अब क्या सोचा ?

अब जब बेटी के विवाह का निर्णय लिया गया तो प्रणत पाल स्वयं गांव के पंडित जी के पास पहुंचे। मुखिया जी ने उनको अपनी मंशा बताई और अपनी बेटी की कुंडली सौंप दी। उस समय गांव के पंडित जी ही कुंडली देखने के साथ-साथ रिश्ते करवाने का भी काम करते थे। पंडित जी ने ईश्वर का नाम लेकर कुंडली खोलकर पढ़नी शुरू की। परंतु यह क्या! उनके चेहरे के हाव-भाव एकदम बदल गए और चेहरे पर परेशानी साफ नजर आने लगी।

 क्या है चिंता की बात ? 

उनके चेहरे के बदलते रंग को मुखिया जी ने भी भांप लिया और पूछा कि क्या बात है? इस पर पंडित जी ने बताया कि उनकी पुत्री की कुंडली में ग्रहों का बहुत ही विचित्र योग है। ऐसी कन्या का विवाह केवल उस व्यक्ति से हो सकता है जिसकी कुंडली में यही योग हो। 


और ऐसा योग बहुत ही कम लोगों की कुंडली में होता है। इसलिए जिसकी भी कुंडली में यह योग हो, उसके विवाह के लिए जीवनसाथी ढूंढना बहुत ही मुश्किल होता है। और यदि कुंडली को नजरअंदाज करके किसी से भी विवाह कर दिया गया तो कन्या या वर, दोनों में से किसी एक की मृत्यु विवाह के एक वर्ष के अंदर निश्चित है।


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अब प्रणत पाल की भी चिंता बढ़ गई। पंडित जी के ज्ञान पर संशय का कोई कारण नहीं था। वह इस काम में बहुत ही प्रवीण थे, और उनकी बताई हुई हर बात हमेशा से ही सच होती रही थी। उस इलाके में दूर-दूर तक कोई ऐसा ज्ञानी नहीं था, जो पंडित जी की बताई हुई बात को चुनौती दे सके।


प्रणत पाल ने पंडित जी से कहा कि जो भी हो, अब आपको ही मेरी बेटी के लिए वर तलाश करना है। यदि ईश्वर ने मेरी कन्या को इस धरती पर इन ग्रहों के योग के साथ भेजा है, तो अवश्य ही उसके लिए कोई वर भी निश्चित किया ही होगा। फिर उन्होंने उचित दान दक्षिणा देखकर पंडित जी से विदा ली।

समय बीतता रहा

इस बात को एक वर्ष बीत गया। इस बीच पंडित जी के हाथ में बहुत से लोगों की कुंडलियां आईं। परंतु किसी भी युवक की ऐसी कुंडली नहीं आई, जिसकी कुंडली में वही योग हो, जो कि प्रणत पाल की पुत्री की कुंडली में था। वह जब भी इस बारे में पूछने पंडित जी के पास जाते, उन्हें निराशा ही हाथ लगती। प्रणत पाल के पूरे परिवार के सदस्य अब इस बात से बहुत चिंतित रहने लगे।

आशा की किरण 

ऐसे ही एक दिन प्रणतपाल फिर से पंडित जी के पास पहुंचे और उनसे पूछा कि क्या मेरी कन्या के लिए कोई योग्य वर मिला? इस पर पंडित जी ने हमेशा के विपरीत एक जवाब दिया, 'हां! एक कुंडली मिली तो है मुखिया जी, जिसमें कि वही योग है, जो कि आपकी पुत्री की कुंडली में है।'


प्रणत पाल बेचैनी से बोले, 'पंडित जी, विस्तार से बताइए ना, कौन है, कहां के लोग हैं?'


तब पंडित जी ने बताया, 'यहां से उत्तर दिशा की ओर पांच गांव छोड़कर जो छठा गांव है, यह कुंडली उसी गांव के मुखिया नाहर देव राठौड़ के पुत्र कुंदन राठौड़ की है। जाति से वे लोग भी राजपूत ही है। अच्छे खानदानी लोग हैं। किसी भी बात में कम नहीं, परंतु हां अगर धन की बात करें तो आपसे कुछ कम ही रहेंगे। आप कहें तो बात चलाएं ?'


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क्या तय होगा बेटी का विवाह ?

मुखिया जी पंडित जी की बात सुन कर सोच में पड़ गए। इस पर पंडित जी बोले, 'प्रणत पाल, किसी भी प्रकार की दुविधा में मत पड़ो। जिस व्यक्ति की यह कुंडली है, वह सर्वगुण संपन्न पुरुष है। खानदान भी बहुत अच्छा है। और जहां तक रही लक्ष्मी की बात, तो वह तो आनी जानी है। और फिर इतनी भी कमी नहीं है वहां कि तुम्हारी पुत्री सुख से ना रह सके। 


सबसे बड़ी बात यह कि  मुझे नाहर देव एक बहुत ही अच्छे और उसूलों वाले इंसान लगे। परिवार की बागडोर यदि सही हाथों में हो तो उस परिवार का कोई भी सदस्य अपने मार्ग से भटक नहीं सकता।'

 
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जोड़ियां बनती हैं आसमानों में 

इस पर प्रणत पाल ने हामी भर दी और थोड़े ही दिनों में दोनों पक्षों की सभी मामलों में रजामंदी के साथ मधु मालिनी और कुंदन का विवाह तय हो गया।


एक दिन जब वर और वधू, दोनों पक्षों के सदस्य कुछ बातचीत करने के लिए आमने-सामने बैठे, तो वधू पक्ष ने वर पक्ष से कहा, 'तो फिर अब आपकी कोई शर्त है तो बताइए।'

अब आया एक नया मोड़ 

दरअसल यह उस समय की बात है, जबकि विवाह में दोनों पक्षों की तरफ से विभिन्न प्रकार की शर्तें रख दी जाती थी। यह शर्तें केवल हंसी-मजाक के लिए ही होती थी। दोनों पक्ष खुशी-खुशी इन शर्तों को पूरा करते थे।


तब वर पक्ष ने कहा कि हमारी शर्त है कि बारात के समय आप हमारा सच्चा राजतिलक करें। सच्चे राजतिलक से क्या अर्थ है, यह बात वधू पक्ष वाले अच्छी तरह जानते थे। और उन्होंने हामी भर दी। अब वर पक्ष ने कहा, 'आप बताइए, आपकी कोई शर्त है तो।'


इससे पहले कि कोई कुछ बोलता, मधु मालती का भाई विराज बोल पड़ा, 'हमारी भी एक शर्त है, यदि आप माने तो। हम चाहते हैं कि बारात में कोई भी वृद्ध पुरुष या स्त्री ना आए।'


शर्त थी तो बड़ी अजीब परंतु कोई मुश्किल नहीं थी। इसलिए वर पक्ष वालों ने भी हामी भर दी।


लेकिन जब वर पक्ष वालों ने यह शर्त अपने घर के वृद्ध सदस्यों को यह बात बताई तो उन वृद्ध सदस्यों का माथा ठनका। वर के दादाजी बोले, 'तुम्हें यह साधारण शर्त लगा रही है, परंतु मुझे तो दाल में कुछ काला लगता है। बारात में यदि कोई वृद्ध व्यक्ति नहीं गया, इसका मतलब है तुम्हारे साथ कोई अनुभवी व्यक्ति नहीं जाएगा। इस प्रकार तुम अवश्य ही किसी दुविधा में फंस जाओगे।'

कौन नहीं जाएगा विवाह में ?

परंतु सभी जवान सदस्यों ने कहा, 'नहीं! ऐसी तो कोई बात नहीं है। हमें तो इसमें कुछ गड़बड़ नहीं लगती। शादी के लिए जा रहें हैं, हम कौन सा जंग लड़ने जा रहे हैं।' और इस तरह उन्होंने बिना किसी बुजुर्ग को साथ लिए बारात लेकर जाने का निश्चय किया।


विवाह का दिन आ पहुंचा। सभी तैयारियां पूर्ण हो गई। सभी बाराती शादी के दिन से ठीक एक दिन पहले वधू के घर पहुंच गए। जब बारात वधू के दरवाजे पर पहुंची तो वधू पक्ष के लोगों ने उनका सच्चा तिलक किया, अर्थात मुखिया जी ने स्वयं अपनी कटार से अपना अंगूठा काटकर अपने रक्त से वर का तिलक किया। राजपूती शान में यही सच्चा तिलक कहलाता है।


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बारात अंदर जनवासे में प्रवेश कर गई। सभी लोग अपनी-अपनी जगह बैठे बातचीत कर रहे थे, और वर अपने ममेरे चचेरे भाइयों से घिरा हुआ था। हंसी-मजाक चल रहा था। 


इतने में ही वर पक्ष की तरफ से कोई मनचला बोल पड़ा, 'तो देखा आपने। हमने भी आपकी शर्त पूरी की है। हमारी बारात में कोई भी वृद्ध महिला या पुरुष नहीं आया है। अगर कोई और शर्त भी है तो बता दीजिए।' वह थोड़े कटाक्ष से बोला।

अब ये कौन सी शर्त आई सामने ?

वधु के भाई को बस इसी क्षण का तो मानो इंतजार था। वह बोला, 'हां! एक शर्त और है। यदि आप सक्षम हो तो मान ले अन्यथा कोई बात नहीं।'


अब तो यह वर पक्ष के सम्मान का सवाल हो गया कि वह क्या ऐसी कोई बात है जिसे करने में वे सक्षम नहीं है? उन्होंने पूछा कि बताइए, क्या शर्त है? हम पीछे हटने वाले नहीं हैं। आपकी हर बात हम रक्खेंगे।'


तब कन्या का भाई बोला , 'आप सभी बारातियों के लिए हमने कल के विवाह भोज में कुछ खास खाने का प्रबंध किया है। प्रत्येक बाराती के लिए एक बकरे का इंतजाम किया गया है और प्रत्येक बाराती को एक पूरा बकरा खाना पड़ेगा।'


सभी सोच में पड़ गए कि यह कैसे हो सकता है? भला एक व्यक्ति एक पूरा बकरा कैसे खा सकता है? जब बारातियों की तरफ से कोई जवाब ना मिला तो विराज ने कहा, 'आप सब लोग सोच-विचार कर निर्णय लीजिए। हमें कोई जल्दी नहीं है। रात तक जरूर बता दीजिएगा कि आपका क्या विचार है, ताकि हम भोज की अच्छे से तैयारी कर सकें।'


यह कहकर वह विवाह के और प्रबंध देखने वहां से चला गया। अब तो बारातियों की तरफ पूरी तरह से हलचल मच गई। शर्त ऐसी थी कि पूरा करना नामुमकिन था। और अगर मना कर देते तो इज्जत पर बात आ जाती। बड़े लोग तो फिर किसी तरह से हिम्मत कर सकते थे और कोशिश कर सकते थे पूरा बकरा खाने की, हालांकि वह भी असंभव ही था, लेकिन जो बच्चे थे, वे कैसे खा सकते थे।

क्या शर्त हार जाएंगे वर पक्ष वाले ?

बहुत सोच विचार कर यह निर्णय लिया गया कि वे सभी हार मान लेंगे क्योंकि वे यह शर्त पूरी नहीं कर सकते। तभी उनको एक आवाज आई , 'क्यों! आ गई अक्ल ठिकाने ?' सब लोग हैरानी से इधर उधर देखने लगे। यह दादाजी की आवाज कहां से आई? और सब ने देखा तो सामानों से ढेर के पीछे से दादाजी अपने दोनों हाथ अपनी कमर पर टिकाए आगे निकल कर आ खड़े हुए।


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कौन आया समस्या का समाधान ले कर ?

'अरे दादा जी। आप यहां कैसे? आप कैसे आ गए?' सब ने मिलकर अनेक सवालों की झड़ी लगा दी। तब दादाजी ने कहा, 'वधू पक्ष की शर्त सुनकर मैं तो पहले ही समझ गया था कि तुम लोग किसी मुसीबत में फंसने वाले हो। ये बाल मैंने यूं ही धूप में सफेद नहीं किए हैं। ये मेरे जीवन के अनुभव की कमाई हैं। तुम मुझे साथ लेकर नहीं आए, लेकिन मैं फिर भी सामान में छिपकर आ गया।'

नहले पर दहला

इसके बाद दादा जी बोले, 'इधर लाओ अपना कान।' और फिर दादाजी ने उनके कान में कुछ फुसफुसाया। दादाजी की बात सुनकर वर पक्ष में खुशी की लहर दौड़ गई।


वधू पक्ष को संदेशा भिजवाया गया। उधर से मधु मालिनी का भाई विराज राठौर अपने कुछ भाइयों के साथ आया। इधर से ये लोग भी तैयार थे। दोनों पक्ष आमने-सामने बैठ गए। विराज मुस्कुरा कर बोला, 'कहिए जीजा जी, क्या सोचा है आपने? क्या आपको हमारी शर्त मंजूर है? वैसे यह कोई इतनी जरूरी भी नहीं है।'


तब कुंदन ने सम्मान के साथ जवाब दिया, अरे नहीं-नहीं साले साहब। ऐसा कैसे हो सकता है कि आप हमारे सामने कुछ शर्त रखे और हम ना माने। हमें आपकी शर्त मंजूर है। हर एक बाराती एक बकरा खाने को तैयार है। लेकिन हमारी भी एक शर्त है।'


'वो क्या है?' विराज ने पूछा
'हमारी शर्त यह है कि एक बार में केवल एक ही बकरा काटा जाएगा और बनाया जाएगा और बारातियों को परोसा जाएगा। जब वह खा चुके होंगे तो उसके बाद दूसरा बकरा काटा जाएगा और पकाए जाएगा फिर वह बारातियों को परोसा जाएगा। इसी तरह से एक के बाद एक बकरे काटे और पकाये जाएंगे और परोसे जाएंगे।'


यह था वधू पक्ष के नहले पर वर पक्ष का दहला। निसंदेह यह उपाय दादाजी ने ही सुझाया था।

वर पक्ष ने पूरी की वधु पक्ष की शर्त

अब अगले दिन विवाह का दिन था। इधर सुबह से ही विवाह की सभी रस्में शुरू हुई और उधर एक-एक करके बकरे कटने शुरू हुए। पहले एक बकरा काटा गया, बनाया गया और परोसा गया। जब वह खत्म हुआ तो दूसरा बकरा काटा गया, बनाया गया और परोसा गया। एक-एक बाराती के हिस्से में एक-एक बोटी भी मुश्किल से ही आई।

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देर रात तक विवाह की रस्में चलती रही और फिर विवाह संपूर्ण हुआ। लेकिन बकरे कटने तो अभी भी जारी थे। सारी रात बकरों के कटने का और पकने का सिलसिला चलता रहा। अगली सुबह हो गई। दुल्हन की विदाई का समय आ गया। लेकिन बकरों की गिनती खत्म नहीं हुई।


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विदाई का समय आ गया 

तब प्रणत पाल ने ऐलान किया, 'बंद करो यह बकरों की कटाई-पकाई। जो तरकीब वर पक्ष ने लगाई है उससे ये सौ बकरे तो क्या हजार बकरे भी खा जाएंगे। इसलिए अब यह काम यही रोक दो। कन्या की विदाई का समय आ गया है। सब मिलकर उसे विदा करो।'


तब विराज ने कुंदन से कहा, 'ठीक है जीजा जी। आप जीते हम हारे। आपने हमारी शर्त पूरी कर दी। परंतु एक बात तो सच-सच बताइए। क्या आपके साथ वाकई कोई बुजुर्ग नहीं है?'


कुंदन ने एकदम से अपने कान पकड़ लिए और बोला, 'हम तो नहीं लाए थे दादा जी को अपने साथ। लेकिन वे तो सामान में छिप कर आ गए। यह तरकीब उन्होंने हीं बताई थी।' कुंदन ने यह बात इतने भोलेपन से कहीं की सभी की हंसी निकल गई।


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इसके बाद सब ने खुशी और दुःख के माहौल में मधु मालिनी को विदा किया।


शिक्षा

अनुभव सबसे बड़ा शिक्षक है। जो ज्ञान क़िताबों से भी नहीं मिल सकता , वह ज्ञान हमें अनुभव से मिलता है। 


WRITTEN BY - PUJA NANDAA
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