जैसा कर्म , वैसा फल- एक जलपरी और उसकी गरीब दोस्त की कहानी


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वो जलपरी इंसानों से बेहतर जानती थी कि दोस्ती का क्या अर्थ होता है और दोस्ती कैसे निभाते है। जाते-जाते वह अपनी दोस्त को एक ऐसा उपहार दे कर गई जो अनमोल था। कहा से आई थी वो जलपरी और कहाँ चली गई ? आइये पढ़े story Hindi

                            Story Hindi जैसा कर्म , वैसा फल

एक जलपरी और उसकी गरीब दोस्त की कहानी


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बहुत समय पहले की बात है, यह Story Hindi कहानी जापान देश के एक छोटे से कस्बे की है जो कि समुद्र के किनारे बसा था। कस्बा शहर की आधुनिकता से दूर प्रकृति की गोद में बसा हुआ एक बहुत ही शांत वातावरण वाली जगह पर था। यहां के कुछ लोग खेती-बाड़ी करते थे तो कुछ बुनकर, नानबाई, दर्ज़ी, हलवाई आदि का काम करते थे। लोगों की आवश्यकता के अनुसार वहां पर काम धंधे विकसित हुए थे और लोग दिखावे की जिंदगी से बहुत दूर थे।



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कौन थी तारा  

इसी कस्बे में तारा नाम की एक लड़की अपनी मां के साथ रहती थी। तारा के पिता का स्वर्गवास तारा के बचपन ही हो गया था और परिवार में यही दो लोग थे। तारा की मां ने तारा को कपड़े सिल कर पैसे कमा कर पाला-पोसा था और अब यही काम तारा को भी सिखा दिया था। यानि कि तारा भी कपड़े सिलने का काम करती थी।



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अब समस्या यह थी कि तारा की मां की आंखें बहुत कमजोर हो गई थी, इसलिए वह कपड़े नहीं सिल पाती थी। लेकिन तारा अभी नया-नया सिलाई करना सीखी थी, इस लिए वह बहुत साधारण से ही कपड़े सिल पाती थी। हालांकि वह बहुत सफाई, मेहनत और मन से सिलाई करती थी। सिलाई के अलावा उनका कमाई का कोई और साधन नहीं था, इसलिए उनकी आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी। ,



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तारा क्यों थी परेशान 

इसके विपरीत कस्बे में जो दूसरे दर्जी थे, वह बहुत से अलग-अलग डिजाइनों वाले, फूल बूटों वाले,कशीदाकारी वाले और कढ़ाई वाले कपड़े सिला करते थे, जिनकी काफी ज्यादा मांग थी‌। उत्सव, शादी त्योहारों में उनके कपड़े खूब बिका करते थे। जबकि तारा के साधारण कपड़ों इतनी मांग नहीं थी। इसी बात की वजह से कभी-कभी तारा बहुत परेशान हो जाती थी तो उसकी मां उसको हमेशा यही समझाती थी कि चिंता मत करो, जब तुम भी अच्छे-अच्छे कपड़े सिलना सीख जाओगी तो तुम्हारे कपड़े भी ज्यादा से ज्यादा बिकेंगे। अभी तो तुम सीख ही रही हो, तो अभी से हिम्मत मत हारो, बस लगी रहो।


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तारा का सपना  

 जब तारा की मां उसको इस तरह से समझाती तो फिर वह निराशा त्याग कर फिर से अपने काम में जुट जाती और सोचती कि एक दिन जब मैं पूरी तरह से निपुण हो जाऊंगी तो मैं बाजार में एक छोटी सी अपनी सिलाई की दुकान खोल लूंगी। तब मैं भी बहुत अच्छे-अच्छे कपड़े सिल कर बेच पाऊंगी और मेरी भी अच्छी कमाई होगी। 

लेकिन मन तो मन है। संघर्ष करते-करते कभी-कभी डोल जाता है। जब तारा का मन बहुत उदास हो जाता, तो वह समुद्र के किनारे चली जाती। विशाल समुद्र की विशालता देख कर उसे अपना दुःख बहुत छोटा लगता। दूर क्षितिज पर जहां समुद्र और आसमान मिलते हुए दिखते, वह घंटों उस दृश्य को निहारती रहती। नीले आसमान में बादलों से बनती बिगड़ती आकृतियां देखती और पक्षियों का चहचहाना सुनकर उसकी बेचैनी कम हो जाती थी। फिर वह घर लौट आती।



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कहीं से बह रहीं थी संगीत की लहरियां 

ऐसे ही एक दिन जब तारा समुद्र के किनारे एक चट्टान पर बैठी थी, अचानक से उसको बहुत ही मीठा संगीत सुनाई दिया। तारा ने अपने आसपास आगे-पीछे देखा, परंतु उसे कोई नजर नहीं आया, जो संगीत बजा रहा हो। इस संगीत में इतनी मधुरता थी और एक तरह का जादू था जो उसको अपनी तरफ खींच रहा था। तारा अपनी जगह से उठी और उस संगीत की दिशा में चल पड़ी। समुद्र के किनारे की उबड़-खाबड़ चट्टानों के पार पेड़ों के झुरमुट के पीछे से संगीत आ रहा था। अब तारा संगीत के बिल्कुल पास पहुंच गई थी। जब तारा ने एक पेड़ के पीछे से झांक कर देखा तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। 

क्या देखा तारा ने 

उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि जो वह देख रही थी, वह सच था या कोई सपना था। उसने देखा कि एक बहुत ही सुंदर जलपरी चट्टान पर समुद्र के किनारे बैठी थी और उसके हाथ में एक वाद्य यंत्र था, जिसे वह बजा रही थी। यह मधुर संगीत की ध्वनि उसी वाद्य यंत्र से निकल रही थी। तारा अपनी जगह पर खड़ी जड़ हो गई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्या है? उसने तो किस्से और कहानियों में ही जलपरी के बारे में सुना था। लेकिन यह वास्तव में आज उसके सामने थी। जलपरी के वाद्य से निकलने वाला संगीत अब उसके दिलो-दिमाग पर छाता जा रहा था। यह बहुत ही मोहक और मधुरता से भरा था। तारा अपनी ही जगह पर एक छोटी सी चट्टान पर बैठ गई और मंत्रमुग्ध सी संगीत सुनती रही। 


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उसके बाद जो उसने देखा वह तो और भी आश्चर्यचकित करने वाला था। बहुत से विभिन्न-विभिन्न प्रकार के पक्षी भी जलपरी के संगीत से आकर्षित होकर वहां आ पहुंचे थे। कुछ पक्षी फुर्र-फुर्र करके उड़ रहे थे तो कुछ ठुमक-ठुमक कर जलपरी के चारों ओर चक्कर काट रहे थे और इधर-उधर फुदक रहे थे। वे सभी पक्षी और चिड़ियांए ऐसी थी जो कि ना तो तारा ने पहले कभी देखे थे, ना ही कभी किस्से कहानियों में सुने थे। वह इतने छोटे-छोटे सुंदर और बहुत ही प्यारे पक्षी थे, जैसे किसी जादू की दुनिया से आए हों। वे सब पक्षी भी संगीत में खोए हुए झूम रहे थे और संगीत का आनंद ले रहे थे। 


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अरे! इतने सुन्दर पंख मिले तारा को 

कुछ देर तो इसी तरह से संगीत की लहरियां हवा में गूंजती रहीं। फिर जलपरी ने संगीत बजाना बंद कर दिया। सूरज ढलने लगा था। जलपरी धीरे-धीरे खिसकते हुए पानी के पास आई, फिर छपाक से पानी में कूद गई और पानी में तैरते हुए गायब हो गई। वे सभी पक्षी भी एक अनजानी दिशा की तरफ उड़ गए। तारा फटाफट अपनी जगह से उठी और दौड़ कर उस जगह पहुंची जहां पर जलपरी बैठी हुई थी और पक्षी नाच रहे थे। उसने देखा कि जमीन पर उन पक्षियों के शरीर से उतरे हुए बहुत ही रंग-बिरंगे, अद्भुत और अत्यधिक सुंदर पंख गिरे हुए थे। कोई भी एक पंख दूसरे जैसा नहीं था। वह आम पक्षियों के पंखों जैसे नहीं थे, बल्कि वे बहुत ही सुंदर और अनमोल थे। तारा ने उन सभी पंखों को बटोर कर अपनी जेब में भर लिया और अब वह भी घर लौट आई। 


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अगले दिन तारा ने अपना सारा काम समय से पहले निपटा लिया और नियत समय पर फिर से वहीं समुंद्र के किनारे पहुंच गई। आज फिर जलपरी वहीं थी। और हवा में सुंदर मधुर संगीत की लहरियां गूंज रही थी। पक्षी भी उन्मुक्त होकर नाच रहे थे। तारा छिपकर यह सब देख रही थी। फिर अचानक से उसका मन किया कि वह थोड़ी और आगे जाए। छुपते-छुपाते वह थोड़ा और आगे चली गई। जलपरी और पक्षियों के चले जाने के बाद वह फिर से उनके पंखों को समेटकर अपने साथ घर ले आई। 

जलपरी और तारा बने दोस्त 

अब तो यह तारा का रोज का नियम बन गया था। वह संगीत सुनती और पंखों को घर ले आती। और तो और धीरे-धीरे करके वह जलपरी और पक्षियों के इतने पास जाकर बैठने लगी कि वे सब भी अब तारा को पहचानने लगे थे, और यह जान गए थे कि तारा एक सीधी सच्ची लड़की है, जिससे उनको किसी भी प्रकार का कोई खतरा नहीं है। इसलिए वे निडर होकर तारा के सामने नाचते थे और जलपरी भी अपना संगीत सुनाती थी। तारा मंत्रमुग्ध होकर जलपरी का संगीत सुनती थी और जलपरी भी तारा को देखकर मंद मंद मुस्कुराती थी। ऐसा लगता था कि जलपरी भी तारा को बहुत पसंद करने लगी थी 

क्या करेगी तारा उन पंखों का 

इतने सारे पंख इकट्ठे हो गए तो तारा की मां ने एक दिन उसको सुझाव दिया कि क्यों ना तुम इस पंखों को अपने सिले हुए कपड़ों की सुंदरता को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करो। तारा को यह सुझाव अच्छा लगा। उसने ऐसा ही किया। उसने उन पंखों से हर कपड़े पर अलग-अलग तरह के नमूने बना दिए और इस तरह से उन कपड़ों को सजावटी बना दिया। हैरानी की बात थी कि उसके वे कपड़े हाथों-हाथ बिक गए। 

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अब बदले तारा के दिन 

उन पंखों का रूप और सुंदरता ही कुछ ऐसी थी कि हर व्यक्ति उनकी तरफ आकर्षित हो रहा था। कपड़ा बार-बार धुलने पर भी वह पंख खराब नहीं हो रहे थे। इस तरह तारा की साख बाजार में जमने लगी। दूर-दूर तक पूरे कस्बे में तारा के पंखों वाले कपड़ों की कीर्ति फैल गई। लोग अब उसके पास आने लगे और उससे पंखों वाले कपड़ों की ही मांग करने लगे। देखते ही देखते तारा और उसकी मां की आर्थिक हालत काफी सुधर गई थी। अब उनको किसी भी प्रकार की तंगी नहीं थी। 


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किसी को हो रही थी ईर्ष्या 

तारा के पड़ोस में एक पति-पत्नी रहते थे। उन्होंने भी यह बात सुनी और देखी कि किस तरह से तारा और उसकी मां के दिन पलट गए थे। वे दंपत्ति स्वभाव से बहुत ईर्ष्यालु और लालची थे। उन्होंने यह पता लगाने की सोची कि आखिर तारा के एकदम से धनवान हो जाने के पीछे क्या रहस्य है। यह पंख जो कि आज तक ना किसी ने देखे ना सुने, तारा कहां से लेकर आती है? उन्होंने तारा का पीछा करने की सोची। 


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अगली सुबह वे दोनों दंपत्ति सुबह से ही तारा के क्रियाकलापों पर नजर रखने लगे। जब अपना सारा काम निपटा कर तारा समुद्र तट की तरफ चली, तो वे दोनों भी चुपके-चुपके से तारा का पीछा करने लगे। फिर उन्होंने सब कुछ अपनी आंखों से देख लिया और वे जान गए कि वह पंख तारा कहां से लाती थी। 

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ईर्ष्या बदली षड़यंत्र में 

अब उन दोनों ने एक कुटिल चाल सोची। उन्होंने धन के लालच में पड़कर यह सोचा कि वे दोनों जलपरी को पकड़ लेंगे और अपने साथ ले आएंगे। जलपरी जब गाएगी तो वे पक्षी हमारे ही आंगन में आयेंगे। फिर केवल हम ही उन पंखों के मालिक होंगे। 
"हो सकता है जलपरी हमें कोई मूल्यवान मोती रत्न या फिर समुंदर का कोई खजाना भी सौंप दे,।" उसकी पत्नी ने बड़े ही जोश से कहा। 
"हां, हो सकता है।" पति ने भी एक कुटिल और लालच भरे स्वर में जवाब दिया। 

जलपरी को पकड़ने के लिए फेंका जाल 

अगले दिन अपनी योजना के अनुसार वे दोनों तारा से पहले ही जाकर समुद्र किनारे छुप कर बैठ गए। थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा कि पानी से जलपरी निकल कर आई और संगीत बजाने लगी। फिर वे सुंदर पक्षी भी आ गये। और तारा भी आ गई थी। यही सही समय था जलपरी को पकड़ने का। वे दोनों चट्टान से बाहर निकले, उनके हाथ में एक बहुत बड़ा मछली पकड़ने का जाल था। उन दोनों ने मिलकर वह जाल जलपरी के ऊपर फेंक दिया और जलपरी उसमें फंस गई। तारा भी यह सब देखकर समझ गई कि क्या हो रहा है, लेकिन उस दंपत्ति की मोटी तगड़ी पत्नी ने तारा को अपने बस में कर लिया और जाल को अब केवल उस आदमी ने हीं पकड़ा हुआ था।


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जलपरी समझ गई कि मुझे जाल में पकड़ लिया गया है, फिर भी वह थोड़ा-थोड़ा खिसकने की कोशिश करते हुए जाल सहित समुद्र के पास तक पहुंच गई। हालांकि वह व्यक्ति पूरी शक्ति से जाल को पकड़े हुए था और जलपरी को पानी से पीछे खींचने की कोशिश कर रहा था। उसने जाल को बहुत मजबूती से पकड़ लिया। जलपरी की आंखों से आंसू निकल आए और वे आंसू टपक का समुद्र में गिर गए। 

समुन्द्र  को आया गुस्सा

जलपरी के आंसू समुद्र में गिरते ही मानो सब कुछ बदल गया। बहुत ही तेज हवा चलने लगी और यह हवा इतनी तेज चल रही थी कि लग रहा था सभी पेड़ों को उखाड़ कर फेंक देगी। काले-काले बादल घिर आए और बादलों में कड़कड़ाती बिजली चमकने लगी। तेज़ तूफानी मूसलाधार बारिश शुरू हो गई और समुद्र तो ऐसा था मानो बहुत ही क्रोध में आ गया था। ऐसा लग रहा था कि समुन्द्र ने अपनी संतान की करुण  पुकार सुन ली थी और प्रकृति ने अपनी बेटी की रक्षा के लिए रौद्र रूप धारण कर लिया था। समुद्र में जोर-जोर की लहरें उठने लगी। कोई भी कुछ समझ नहीं पाया कि क्या हो रहा है।


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वह चालाक आदमी जलपरी को अकेला खींच नहीं पा रहा था तो उसने अपनी पत्नी को पुकारा। उसकी पत्नी तारा को एक तरफ धक्का देकर अपने पति की मदद के लिए दौड़ी।अब दोनों मिलकर जाल खींचने लगे। यही सही समय था जब समुद्र ने अपना वार किया। आखिर वह कैसे यह सह सकता था कि उसकी इतनी प्यारी चीज, उसकी संतान उससे कोई छीनने जा रहा है।

जलपरी हुई आज़ाद 

 समुद्र की एक बहुत तेज लहर आई, उस दंपत्ति के हाथ से जाल एकदम से छूटा और वह विशालकाय लहर उस दंपत्ति को अपने साथ बहाकर ले गई। तारा ने देखा की मछली जाल में फंसी हुई तड़प रही थी। वह दौड़ कर उस ओर भागी और जलपरी को जाल से आजाद किया। जलपरी ने एक धन्यवाद वाली नजर से तारा को देखा और फिर वह समुद्र में कूद गई। जलपरी के समुद्र में कूदते ही सबकुछ धीरे-धीरे शांत हो गया। ऐसा लगा ही नहीं कि कोई तूफान भी आया था। हवाएं थम गई और मौसम साफ हो गया। समुद्र भी शांत हो गया। 


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लेकिन जो कुछ भी हुआ वह बहुत ही भयानक था। तारा काफी देर वहीं उस जगह पर जड़वत बैठी रही, फिर धीरे-धीरे उठकर घर की ओर चल पड़ी।

क्या फिर आई जलपरी

 उस दिन के बाद फिर वह जलपरी कभी समुद्र तट पर तारा को दिखाई नहीं दी। तारा बहुत उदास और दुःखी थी। इसलिए नहीं कि अब वे पंख तारा को नहीं मिलेंगे, बल्कि इसलिए कि उसकी प्यारी जलपरी, उसकी एकमात्र मित्र उससे बिछड़ गई थी। तारा के लिए यह बहुत बड़ा दुःख था। हालांकि उसे इस बात का संतोष भी था कि जलपरी अपने घर पहुंच गई होगी। 

वह अक्सर समुद्र तट पर बैठकर जलपरी को याद करती इस आशा के साथ कुछ समय वहां बिताती कि शायद वह कभी वापस आए। 

आज उसने अपने पास बचा हुआ एक आखिरी पंख भी एक कपड़े पर टांक दिया था। 


तारा ने फिर सुना वही संगीत

अगली सुबह जब तारा सोई हुई थी, अचानक से उसकी नींद टूटी और उसने वही मधुर संगीत की आवाज फिर से सुनी। वह दौड़ी-दौड़ी समुद्र तट पर पहुंची, लेकिन वहां पर कोई नहीं था।


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जलपरी ने निभाई अपनी दोस्ती 

निराश होकर वह फिर घर लौट आई। लेकिन जब वह घर के अंदर गई तो फर्श पर बहुत से वही पंख बिखरे हुए थे। तारा की आंखों से बरबस ही आंसू टपक पड़े। वह समझ गई कि जलपरी ने अपनी मित्रता निभा दी है। वह खुद तो कभी नहीं आई , अब लेकिन हर सुबह अब तारा को अपने ही घर में वही मधुर संगीत सुनाई देता और फिर फर्श पर पड़े हुए पंख भी मिल जाते।


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शिक्षा  

इस story hindi से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य को उसके अच्छे कर्मों का अच्छा और बुरे कर्मों का फल बुरा मिलता है इस लिए हमें हमेशा अच्छे कर्म ही करने चाहिए। साथ ही साथ हमें यह भी पता चलता है कि सच्ची मित्रता अनमोल होती है और वे लोग बहुत खुश किस्मत होते हैं जिन्हें जीवन में सच्चे मित्र मिलते हैं।


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