Stories Hindi moral सेवा का सुख
यह कहानी सेवा का सुख - एक परी के त्याग की कहानी एक परी की है जिसका नाम था कनक। जैसा कि कनक का मतलब होता है सोना। वास्तव में उस परी का रूप सोने के समान ही दमकता था। कनक परी अपने पिता की और समस्त परी लोक की चहेती थी और परीलोक की राजकुमारी परी थी, यानी कि परीलोक के राजा की बेटी।
कनक का जीवन
किसी भी प्रकार के दुःख-दर्द से अनजान वह कनक परी एक वैभवशाली जीवन जी रही थी। कभी सहेली परियों के साथ बाग में तितलियों के पीछे भागती तो कभी बादलों के बीच में छुपा-छुपी खेलने निकल जाती। ऐश्वर्यशाली भोजन करती और परीलोक के सुंदर-सुंदर स्वादिष्ट फलों का आनंद लेती। मखमल के बिछौने पर सोती। हमेशा अनेक दास-दासियां उसके हुक्म के इंतजार में रहते और उसके एक इशारे पर उसके सभी काम करते थे।
कहाँ पर गई कनक
ऐसे ही एक दिन की बात है, जब झमाझम बरसात होकर रुकी थी। पूरी धरती ने हरियाली की चादर ओढ़ ली थी। मिट्टी से सोंधी-सोंधी खुशबू उड़ रही थी। आसमान में बादल अभी भी छाए हुए थे। इंद्रधनुष अपनी सुंदरता अलग से बिखर रहा था। पक्षी बारिश के रुक जाने पर जल्दी से अपने घोंसलों से उड़ कर भोजन की तलाश में निकल रहे थे, ताकि बरसात शुरू होने से पहले कुछ खाने को बटोर लाएं। मौसम बड़ा ही सुहावना था। मंद-मंद हवा चल रही थी और सूर्य देवता को बादलों ने अपने पीछे ढका हुआ था। ऐसे सुहावने मौसम में कनक परी अपनी सहेली परियों के साथ सैर करने को निकली।

कुछ सुना कनक ने
जब वे सभीं उड़ती हुई एक घने जंगल के ऊपर से गुजर रही थीं, तो उनको एक करुण रुदन सुनाई दिया। कनक परी उत्सुकता वश उस तरफ को जाने लगी, जहां से रोने की आवाज आ रही थी तो इस पर उसकी सहेलियों ने उसको रोका और बोली, 'परी राजकुमारी, आप धरती पर ना उतरें, यह सुरक्षित नहीं है। न तो आपने अपने पिताजी से इसकी आज्ञा ली है, और ना ही हमारे साथ कोई सैनिक है। धरती पर उतरने में खतरा हो सकता है। यह कोई छल या भ्रम भी हो सकता है। या फिर किसी जादूगर की चाल भी हो सकती है। इसलिए आप वहां ना जाए।
परंतु परी राजकुमारी न मानी। फिर वें सब अदृश्य रूप में वहां नीचे उतरीं । वहां उन्होंने देखा कि एक पेड़ के नीचे एक दस-बारह साल का लड़का बैठा रो रहा है।
कौन मिला जंगल में
परी राजकुमारी ने अपनी सहेलियों को अदृश्य रहने का इशारा किया और स्वयं एक वयस्क लड़के का रूप लेकर पेड़ों के पीछे से उसे लड़के के सामने जा पहुंची और बोली, 'अरे भाई, क्या हुआ?'
उस लड़के ने उस बड़े लड़के को सिर उठा कर देखा तो एकदम रोना बंद कर दिया, मानो डूबते को तिनके का सहारा मिल गया हो, घने जंगल में मानो उसको भगवान स्वयं मिल गए। वह रुआंसी आवाज़ में बोला, 'वो...अ...मुझे ड़र लग रहा है।' उसके स्वर में घबराहट साफ महसूस हो रही थी।
'लेकिन तुम इस घने जंगल में अकेले कर क्या रहे हो?' परी ने पूछा।
वह लड़का बोला, 'मेरे पिता बीमार है, इसलिए मैं लकड़ियां बीनने आया था। मां को खाना पकाना है ना। लेकिन सब लकड़ी तो गीली हैं।'
वह लड़का भोलेपन से बोला।
परी उसकी बात समझ गई कि सूखी लकड़ियों की तलाश में वह अनायास ही घने जंगल की तरफ आ गया था।
परी ने की मदद
'अरे! वो देखो, कितनी सूखी लकड़ियां जमीन पर बिखरी पड़ी हैं।' परी ने एक ओर इशारा किया और उसके इशारा करते ही उस लड़के के उधर देखने से पहले ही वहां पर जमीन पर बहुत सारी सूखी लकड़ियां जादू से उत्पन्न हो गई।
'आओ, हम सारी लकड़ियां जल्दी से बीन लेते हैं।' परी राजकुमारी ने कहा।लड़के ने प्रसन्नता से सिर हिलाया और फिर वे दोनों उस तरफ लपके। परी ने फटाफट बहुत बड़ा लकड़ियों का गट्ठर बना लिया और अपने सिर पर उठा लिया। उसे छोटे लड़के ने भी थोड़ी सी लड़कियां अपने हाथ में पकड़ ली।
अब परी उससे बोली, 'आओ! मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ आऊं। तुम मुझे अपने घर का रास्ता बताओ।'
अब तो लड़के का डर बिल्कुल ही दूर हो गया। उसने कसकर परी राजकुमारी का हाथ पकड़ लिया और फिर वे दोनों उस लड़के के घर की तरफ चल पड़े। पीछे-पीछे परी सहेलियां भी अदृश्य रूप में आने लगी। इस प्रकार वह लड़का सुरक्षित अपने घर पहुंच गया।
परी को हुई ख़ुशी
उस दिन परी राजकुमारी के दिल की अजीब सी हालत थी। बहुत खुशी और आत्म संतुष्टि की भावनाओं से भरा हुआ मन बहुत शांत था। उस लड़के की कृतज्ञता भरी आंखें बार-बार परी राजकुमारी को याद आ रही थी।
फिर निकली परी घूमने को
अगले दिन परी राजकुमारी फिर से अपनी सहेलियों के साथ आसमान की सैर को निकली। परंतु आज वह प्रकृति की सुंदरता को नहीं निहार रही थी। न ही चिडियों का चहचहाना उसको आकर्षित कर रहा था और न ही इंद्रधनुष उसका ध्यान अपनी और खींच पा रहा था। परी राजकुमारी का सारा ध्यान धरती की ओर लगा हुआ था।
अब कौन मिला कनक को
तभी अचानक उसने देखा कि एक बूढ़ी अम्मा अपने सर पर सब्जियों से भरी टोकरी रखकर जा रही है। बूढ़ी अम्मा का एक हाथ पकड़ कर एक छोटा बच्चा चल रहा था, जिसके कंधे पर एक झोला टंगा हुआ था।
वह बूढी अम्मा धीरे-धीरे छोटे-छोटे कदमों से उस सड़क पर बढ़ रही थी कि तभी सामने से एक हष्ट-पुष्ट नौजवान एक हाथ गाड़ी के साथ चलता हुआ बूढ़ी अम्मा की तरफ आता हुआ नजर आया।
क्या माँगा बूढ़ी अम्मा से
बूढी अम्मा के पास आकर वह रुक गया और बोला, 'अम्मा, पानी मिलेगा क्या पीने को?'बूढ़ी अम्मा ने कहा, 'बेटा जरूर! यह कहकर उन्होंने अपनी सब्जी की टोकरी नीचे रखी और उसमें से एक छोटी सी पानी की सुराही निकाल कर उस युवक को पीने को दी। वह युवक पानी पीकर तृप्त हो गया और बोला, 'धन्यवाद अम्मा!'
फिर उसने अम्मा की टोकरी की तरफ इशारा करते हुए कहा, 'ये सब्जियां लेकर कहां जा रही हो अम्मा?'
तब अम्मा बोली, 'बेटा, खेत से लेकर आ रही हूं और पास ही के गांव में बेच आऊंगी ताकि रोटी-पानी का कुछ इंतजाम हो पाए।'
'मैं कुछ समझ नहीं अम्मा।' वह नवयुवक बोला।
अम्मा बोली, 'अरे बेटा, क्या बताऊं पिछले साल जो बाढ़ आई थी, उसमें मेरा बेटा और बहू दोनों काल के मुंह में चले गए। भाग्य से उनकी निशानी ये मेरा पोता बच गया। अब परिवार में हम दो ही लोग हैं। इसको पाठशाला तक छोड़ने के बाद मैं सब्जी बेचने चली जाऊंगी।'
अम्मा को कुछ मिला
'तुम बताओ बेटा, कहां जा रहे हो?' अम्मा ने उससे पूछा।
'मैं भी पास के ही गांव में रहता हूं अम्मा। पहले मैं इस हाथ गाड़ी पर अपना सामान गांव-गांव जाकर बेचा करता था। लेकिन अब मैं व्यापार के सिलसिले में दूर देश जा रहा हूं। इसी लिए मैं ये हाथ गाड़ी किसी और को दे दूंगा, जिसे वास्तव में इसकी आवश्यकता हो और जो इसकी सही से देखभाल करे। इतने प्यार से जो बनाई थी मैंने यह हाथ गाड़ी।'
'अच्छा बेटा।' अम्मा ने जैसे कोई बात अपने ही मन में दबा ली।
तब वह बोला, 'अरे अम्मा, तुम भी तो सब्जी बेचने के लिए दूसरे गांव जाती हो, और अपने सर पर टोकरी लेकर जाती हो। क्यों ना तुम यह हाथ गाड़ी मुझ से ले लो?'
तब अम्मा बोली, 'लेकिन बेटा, इसकी कीमत तो बहुत ज्यादा होगी ना?'
युवक बोला, 'कीमत तो है अम्मा। कहो तो बता दूं?' फिर वह हंसते हुए बोला, 'एक मां का प्यार भरा आशीर्वाद ही है इसकी कीमत। यह हाथ गाड़ी मैंने बहुत प्यार से बनाई थी। इसके साथ मेरा गहरा रिश्ता है। लेकिन मैं यह उसी व्यक्ति को देना चाहता था जिसको वास्तव में इसकी जरूरत हो, वहीं इसकी कदर कर सकता है। और अम्मा, तुमसे ज्यादा कदर करने वाला मुझे और कहां मिलेगा। यह लो, आज से यह हाथ गाड़ी तुम्हारी हुई।'
अम्मा की हुई मदद
यह कहकर उसने अम्मा का सारा सामान हाथ गाड़ी पर सजा दिया और उस बच्चे का झोला भी लेकर हाथ गाड़ी पर रख दिया। अब अम्मा उस नौजवान को आशीर्वाद देते हुए हाथ गाड़ी को धक्का लगाते हुए चली गई। अम्मा के पोते को तो मानो एक नया खिलौना मिल गया। वह भी अपनी दादी के साथ उस गाड़ी को ठेलते हुए वहां से खुशी-खुशी चला गया।
और वह नौजवान सड़क के अगले मोड़ पर मुड़ा और हवा में गायब हो गया। क्यों कि वह कोई और नहीं बल्कि परी राजकुमारी ही थी।
अब तो अक्सर इसी तरह से परी कनक धरती पर जाती और अलग-अलग तरह से लोगों की मदद करती। इस कारण वह काफी समय धरती पर व्यतीत करने लगी थी।
परी के पिता ने जाना सच
जब वह बहुत देर तक परी लोक से अनुपस्थित रहने लगी तो यह बात परी लोक के राजा यानी कि कनक परी के पिता के कानों तक भी पहुंच गई। उन्होंने कनक परी से इस बारे में बात की।
'मदद करना तो ठीक है, परंतु हो सकता है वे इंसान जो मुश्किल सह रहे हैं, वह उनके कर्मों का फल हो?' राजा ने कनक परी को समझाते हुए कहा।
इस पर कनक परी बोली, ' मैं मानती हूं आप सच कह रहे हैं पिताजी परंतु क्या ईश्वर ने यह नहीं कहा कि हमें मुसीबत में पड़े लोगों की मदद करनी चाहिए? और फिर मेरी मदद उनको कर्म करने से नहीं रोकती, बस उनकी मुश्किल थोड़ी सी आसान कर देती है।'
परीलोक के हैं कुछ नियम
'परंतु तुम्हारा इस तरह से धरती पर अत्यधिक समय व्यतीत करना परीलोक के नियमों के विरुद्ध है। मैं तुम्हें इसकी आज्ञा नहीं दूंगा।' राजा ने कहां।
'दूसरों की मदद करके मुझे आत्मिक शांति मिलती है। मुझे ऐसा लगता है जैसे मुझे मेरे जीवन का ध्येय मिल गया है। क्या आप यह चाहेंगे कि आपकी पुत्री एक अर्थहीन और उद्देश्य विहीन जीवन जीती रहे?' कनक परी ने अपने पिता से कहा।
क्या था अंतिम रास्ता
जब कनक परी किसी भी तरह से मानने को तैयार न हुई तो उसके पिता ने कहा, 'इसका एक ही रास्ता है। तुम्हें परी लोक सदा के लिए छोड़ कर मानव रूप में धरती पर रहना पड़ेगा। एक परी को प्राप्त जादुई शक्तियां तुम्हारे पास नहीं रहेंगी। एक साधारण मानव की तरह ही पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के सुख-दुख झेलते हुए तुम्हें दूसरों की सहायता करनी पड़ेगी। क्या तुम इसके लिए तैयार हो?'
कुछ देर सोचने के बाद परी राजकुमारी ने कहा,' ठीक है पिता जी, मुझे स्वीकार है।'
सभी परीलोक निवासियों और राजा ने भरे मन से कनक परी को विदा करने की तैयारी की।
परी हुई विदा
अब वह एक साधारण मानव का रूप ले चुकी थी। कनक परी की मां ने तोहफे के रूप में अपनी बेटी को जड़ी-बूटियों का दिव्य ज्ञान दिया, जिससे वह सबकी मदद कर सके।
कनक परी का नया रूप
कनक अब एक साधारण स्त्री थी, परंतु एक बहुत निपुण वैद्य थी। धीरे-धीरे उसकी कीर्ति पूरे गांव ही में नहीं बल्कि दूर-दूर तक फैल गई।
कनक का विवाह
ऐसे ही एक दिन एक सुंदर सजीला नौजवान अपनी माता की बीमारी की दवा लेने आया और कनक वैद्य के रूप सौन्दर्य पर मोहित हो गया। कुछ समय पश्चात उस युवक के परिवार वालों की सहमति और प्रयास से उन दोनों का विवाह हो गया।

कनक का अनमोल योगदान
कनक वैद्य ने जीवन पर्यन्त अपने वैद्यकीय ज्ञान से लोगों को रोगमुक्त ही नहीं किया अपितु अपने ज्ञान को पीढ़ी दर पीढ़ी फैलाने के लिए उसे एक हस्तलिखित पांडुलिपि का रूप भी दिया।
शिक्षा
दूसरों की मदद करना और दूसरों की सेवा करना, यही जीवन का वास्तविक अर्थ है।
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