शकुनि का नाम आते ही एक कपटी, धूर्त और चालबाज़ व्यक्ति की छवि उभर कर आती है। परन्तु उसके ऐसे चरित्र निर्माण के पीछे कौन सी परिस्थितियाँ थीं, आइये करते है विश्लेषण Hindi stories short के माध्यम से।
Hindi stories short शकुनि का सत्य
महाभारत में यूं तो कई पात्र है, परंतु एक ऐसा पात्र जिसे सबसे ज्यादा घृणा से देखा गया और इतिहास हमेशा घृणा से ही याद करता है, वह है शकुनी। शकुनि ने कुरु वंश की बर्बादी को अपने जीवन का ध्येय बनाया और ऐसा करने में सफल भी रहे। परंतु उसने ऐसा क्यों किया, इसके विषय में शायद ही कोई जानता हो।
शकुनि का बहन प्रेम
शकुनी अपनी बहन गांधारी से बहुत प्यार करते थे। परंतु जब गांधारी का विवाह अंधे धृतराष्ट्र से तय हुआ तो यह बात शकुनी को अच्छी नहीं लगी। शकुनी इस बात के लिए भीष्म पितामह को दोषी ठहराते थे, क्योंकि वही गांधारी के विवाह का प्रस्ताव लेकर गांधारी के पिता के पास आए थे।
हालांकि गांधारी ने धृतराष्ट्र को अपना पति मानकर अपनी नियति को स्वीकार किया और अपनी आंखों पर भी पट्टी बांध ली, और यह निर्णय लिया कि वह भी कभी इन आंखों से अब कुछ नहीं देखेगी और अपने पति की तरह ही अंधेरे में जिएगी।
परंतु शकुनी को यह मंजूर नहीं था। उसका दिल इस बात से तड़पता था कि धृतराष्ट्र बिल्कुल भी उसकी बहन के योग्य नहीं थे। उसकी बहन की आंखों पर बंधी पट्टी और आंखें होते हुए भी नेत्रहीन हो जाना, यह बात शकुनी से बर्दाश्त नहीं हुई।
कुरु वंश और भीष्म पितामह के प्रति घृणा
गांधारी का विवाह तो धृतराष्ट्र के साथ हो गया, परंतु शकुनि ने अपने मन में कुरु वंश और भीष्म पितामह के प्रति जहर पाल लिया। इसी बैर के चलते उन्होंने बचपन से ही दुर्योधन, दु:शासन और उसके अन्य भाइयों को हमेशा अनीति के मार्ग पर चलाया और उनके चरित्र को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया और उन सभी भाईयों और पूरे कुरु वंश के लिए महाभारत का रण तैयार कर दिया।
गांधारी का कुंडली दोष निवारण
शकुनि की टूटी हुई टांग के पीछे भी एक कथा है। बात उस समय की है जब गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र के साथ तय नहीं हुआ था। गांधारी के पिता सुबल अपनी पुत्री के लिए वर की तलाश कर रहे थे। इस संदर्भ में जब ज्योतिषियों से संपर्क किया गया तो उन्होंने गांधारी की कुंडली में कुछ दोष पाया। इस दोष के निवारण के लिए गांधारी का विवाह एक बकरे से करना आवश्यक था।
जैसा कि आजकल भी यह देखने में आता ही है कि कुंडली दोष निवारण के लिए कभी किसी का विवाह वृक्ष के साथ तो कभी किसी का विवाह किसी जानवर के साथ करवा दिया जाता है। तो इसमें कुछ आपत्तिजनक या अजीब नहीं था। यह तो केवल एक ज्योतिष का उपाय था।
शकुनि के परिवार का दुःखमय अंत
परंतु जब विवाह के पश्चात धृतराष्ट्र को यह बात पता चली तो यह उनको अपना अपमान लगा । तब उन्होंने गांधार राज्य पर हमला कर दिया और गांधारी के पिता राजा सुबल और माता सुदर्मा, शकुनि समेत सौ पुत्रों को बंदी बनाकर कारागृह में बंद कर दिया। कारागृह में उन सभी के साथ बहुत ही बुरा व्यवहार किया जाता था। रोज बहुत ही कम मात्रा में अनाज सभी को दिया जाता था, जिसका एक-एक दाना सभी के हिस्से में आता था।
धीरे-धीरे भूख से राजा सुबल के कई पुत्रों की मौत हो गई। राजा सुबल ने कुरु वंश से बदला लेने के लिए अपने पुत्रों में से बुद्धिमान और चतुर शकुनि को बचाने का फैसला किया और उसको प्रतिशोध के लिए तैयार किया। सभी लोग अपना-अपना भोजन शकुनि को देने लगे और शकुनी ने अपनी आंखों के सामने अपने परिवार का अंत होते देखा।
मृत्यु से पहले राजा सुबल ने धृतराष्ट्र से शकुनि को छोड़ने की विनती की, जिसको धृतराष्ट्र ने मान लिया। राजमहल की चकाचौंध में शकुनि अपना प्रतिशोध ना भूल जाए इसलिए सभी ने मिलकर उसका एक पैर तोड़ दिया, जिससे वह अपने परिवार के अपमान की बात याद रखे। तब से शकुनि लंगड़ाकर चलने लगा।
शकुनि के पासे
शकुनि के पासे भी शकुनि की तरह ही बहुत रहस्यमई थे। कहां जाता है कि शकुनी जो भी चाहता था, वही उसके पासे दिखा देते थे। और इस तरह से शकुनी हमेशा चौसर की चाल जीत जाता था। शकुनी चौसर खेलने में बहुत निपुण था, और यही आदत उसने कौरवों को भी लगा दी थी।
शकुनि के पासों के बारे में कहा जाता है कि वह शकुनि के पिता सुबल की हड्डियों से बने हुए थे। मरने से पहले उसके पिता सुबल ने कहा था कि मेरे मरने पर तुम मेरी हड्डियों से चौसर के पासे बनवा लेना । वह हमेशा तुम्हारी आज्ञा मानेंगे और तुम्हें कोई हरा नहीं सकेगा। यही पासे कुरु वंश का सर्वनाश करने में तुम्हारी मदद करेंगे। कहां जाता है कि उन पासों में राजा सुबल की आत्मा निवास करती थी, तभी तो वह पासे कभी शकुनी को हारने नहीं देते थे।

शकुनि की मृत्यु
शकुनी जितनी घृणा कौरवों से, धृतराष्ट्र से और भीष्म पितामह से करता था, उतनी ही घृणा वह पांडवों से भी करता था। इस कारण उसने जगह-जगह बार-बार पांडवों के रास्ते में कांटे बोये और उनको प्रताड़ित करने के नए-नए तरीके निकाले। कभी चौसर तो कभी लाक्षागृह का षड्यंत्र और कभी पांडवों को राज्य न देने की बात। कभी तेरह वर्ष का बनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास। इन सभी के पीछे शकुनि की बुद्धि ही काम कर रही थी। शकुनी ने हीं कौरवों और पांडवों के बीच में गहरी खाई बनाई थी और दुर्योधन और उसके भाइयों के मन में बचपन से ही पांडवों के प्रति जहर घोलना शुरू कर दिया था। फलत: कुरुक्षेत्र के युद्ध में पांडु पुत्र नकुल ने शकुनि और उनके पुत्र उलूक को मार दिया था।

और इस प्रकार शकुनि के मन का बैर स्वयं उसको भी मौत के मुंह में ले गया। हालांकि यह सत्य शकुनी जानता था कि यदि महाभारत का युद्ध हुआ तो कौरवों के साथ-साथ उसको भी युद्ध में उतरना पड़ेगा। परंतु कुरु वंश से अपना बदला लेने के लिए उसने अपनी सारी जिंदगी हस्तिनापुर में ही बिता दी और अंत में कौरवों की तरह ही मृत्यु को प्राप्त हुआ।
शकुनि की मृत्यु के बाद पासों का क्या हुआ?
महाभारत युद्ध के बाद श्रीकृष्ण ने भीम को बुलाकर इन पासों को नष्ट करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि ये पासे ही इतने बड़े नरसंहार का कारण बने। श्री कृष्ण जी का मंतव्य था कि इन पासों को इस प्रकार से नष्ट किया जाए ताकि ये पासे किसी के हाथ न लगें।
परन्तु अर्जुन ने उनकी आधी अधूरी बात सुनी और पासों को लेकर वहां से चले गए, और किसी नदी में फेंक दिए।
अर्जुन ने जब बताया कि उसने पासे एक नदी में फेंके हैं तो श्री कृष्ण ने उनसे कहा कि यह तुमने बहुत गलत किया है। नदी में से तो फिर से पासे किसी मनुष्य के हाथ लगा सकते हैं और जुआ फिर से शुरू हो सकता है। यदि ऐसा हुआ तो यह मनुष्य को पतन की ओर ले जाएगा। इन पासों को तो पूर्णतः नष्ट कर दिया जाना चाहिए था। और कदाचित हुआ भी यही। वे पासे किसी के हाथ अवश्य ही लग गए होंगे, तभी तो आज भी समाज में किसी ने किसी रूप में जुआ विद्यमान है।
शिक्षा
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