सत्य बड़ा या असत्य - जब एक राजा ने किया असत्य को स्वीकार

 कभी-कभी ऐसी परिस्थितियाँ आ जाती हैं जब झूठ का महत्व सच से अधिक हो जाता है। सुनने में यह बात कुछ अजीब लगती है परन्तु इससे समझने के लिए आइये पढ़ते हैं यह Hindi stories moral सत्य बड़ा या असत्य

Hindi stories moral सत्य बड़ा या असत्य

जब एक राजा ने किया असत्य को स्वीकार

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यह कहानी Hindi stories moral कहानियों की श्रृंखला की एक बहुत ही सुंदर कहानी है। बहुत पुरानी बात है, भारत के किसी राज्य में राजा कनक देव राज्य करता था। वह बहुत ही न्याय प्रिय, शांत और ईश्वर में गहरी आस्था रखने वाला राजा था।

कैसा था कनक देव का राज्य 

राजा कनक देव अपनी प्रजा की भलाई के लिए अनेक कार्य करता था। उसके राज्य में उसकी प्रजा बहुत सुख से जीवन व्यतीत करती थी। राजा कनक देव के शासनकाल में राज्य व्यवस्था का कार्य बहुत सुचारू रूप से चलता था। किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। परंतु अपराधियों के लिए भारी दंड का प्रावधान था, ताकि कोई भी व्यक्ति दंड के डर से अपराध करने का साहस न कर सके।


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राजा कनक का दरबार प्रतिदिन लगता था, जिसमें विभिन्न विषयों पर चर्चा की जाती थी, जन साधारण की समस्याएं सुनी जाती थी और राज-काज को चलाने के लिए अन्य आवश्यक गतिविधियां होती थी।

क्या हुआ दरबार में

ऐसे ही एक दिन कनक देव का दरबार लगा था, जब दो सिपाही अन्य दो सिपाहियों के साथ दरबार में आए और बोले ,' महाराज, हम कारागार में बंद उस व्यक्ति से संबंधित साक्ष्य लाए हैं, जिस पर राज्य के शाही खजाने में चोरी करने का आरोप है। ये दोनों सैनिक राजकीय खजाने के मुख्य रक्षकों में से एक हैं। इन दोनों ने उस कैदी को पहचान कर दोषी बताया है।'



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कौन सा दंड मिला कैदी को  

सभी बातें जान लेने के बाद जब यह निश्चित हो गया कि उस कैदी ने वास्तव में चोरी की है, तो राजा ने उसको प्राण दंड दे दिया। राजा ने अपने दो मुख्य कानून मंत्रियों को यह आदेश दिया कि वे कारागार तक जाएं और उस कैदी को उसकी सजा सुना कर आएं।


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कैदी हुआ असहज 

सजा सुनकर कैदी मानो अपना मानसिक संतुलन ही खो बैठा और राजा को अपशब्द और भद्दी गालियां देने लगा। उन दो कानून मंत्रियों में से एक व्यक्ति वृद्ध था और दूसरा व्यक्ति नौजवान था। वृद्ध व्यक्ति ने नौजवान व्यक्ति से कहा कि वह राजा को कुछ ना बताएं।



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वृद्ध कानून मंत्री ने बोला झूठ 

वे दोनों दरबार में लौट आए तो राजा ने उनसे पूछा कि सजा सुनकर कैदी की क्या प्रतिक्रिया रही, मुझे बताओ। इस पर वृद्ध मंत्री ने बताया, 'महाराज, कैदी कह रहा था कि ऐसे राजा कितने महान होते हैं जो अपने क्रोध पर नियंत्रण रखते हैं। जो क्षमाशील और दयावान होते हैं और दूसरों के अपराध को क्षमा कर देते हैं।'


राजा हुआ प्रभावित  

यह सुनकर राजा को यह प्रेरणा मिली कि सजा से कहीं अधिक अच्छी बात क्षमा कर देना है, और राजा को उस चोर पर दया आ गई। राजा ने कहा, 'ठीक है, मैं उसको एक और मौका देता हूं, और इस बार उसका अपराध क्षमा करता हूं। परंतु यदि भविष्य में उसने फिर से यही गलती दोहराई तो वह अवश्य ही कठोर दंड पाएगा।' इस चेतावनी के साथ राजा ने उसको छोड़ने का आदेश दिया।

अपराधी को मिली क्षमा 

और इस प्रकार उस अपराधी को क्षमा मिल गई। दरबारियों में एक व्यक्ति ऐसा बैठा था जो कि उन मंत्रियों से ईर्ष्या करता था। मौका पाकर वह राजा के पास पहुंचा और चुपचाप राजा से बोला, 'महाराज, कानून मंत्री ने आपको गलत बताया है। वह कैदी आपको गंदी-गंदी गालियां दे रहा था। मैंने स्वयं छुपकर सारी बात सुनी थी। आप उसको क्षमा मत करिए। साथ ही साथ अपने कानून मंत्रियों को भी दंड दीजिए क्योंकि उन्होंने आपसे झूठ बोला है।'



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ईर्ष्यालु दरबारी हुआ दरबार से बाहर

उसकी बात सुनकर राजा कनक देव ने उस दरबारी से कहा, ' माना कि मेरे कानून मंत्रियों ने मुझसे झूठ बोला है परंतु उनके इस झूठ से किसी का नुकसान नहीं हुआ, बल्कि भला ही हुआ है। उन्होंने यह झूठ किसी के कल्याण की भावना से बोला है। हो सकता है वह कैदी क्षमा पाकर सुधर जाए और एक संभ्रांत नागरिक की तरह शेष जीवन व्यतीत करें। बल्कि मुझे तो तुम्हारे ही वचनों में ईर्ष्या साफ नजर आ रही है। अच्छा होता यदि तुम दूसरों के सच-झूठ का निर्धारण करने से पहले अपने चरित्र का मंथन कर लेते। यदि तुम ईर्ष्या को त्याग कर जनकल्याण की भावना को नहीं अपना सकते तो इस दरबार में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है।'


यह कहकर राजा अपने दरबार से चले गए और दूसरी ओर उस कैदी को सख्त चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। वह राजा की जय-जयकार करता हुआ अपने घर को चला गया।

शिक्षा

इस Hindi stories moral से हमें यह शिक्षा मिलती है कि  हमें हमेशा अपने व्यवहार और वाणी से दूसरों की भलाई के बारे में ही सोचना चाहिए। किसी की भलाई के लिए या फिर किसी के प्राणों की रक्षा के लिए बोला हुआ एक झूठ सत्य से महान होता है।


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