धनी होने के बावज़ूद सेठानी हमेशा सस्ते के लालच में रहती थी। फिर एक बार अपनी इसी आदत के कारण उनको मुँह की खानी पड़ी। एक बहुत ही मनोरंजक Desi Kahani
Desi Kahani सस्ता रोए बार-बार
यह Desi kahani एक सेठ और सेठानी की है । किसी नगर में एक सेठ और सेठानी रहते थे। उनकी आर्थिक हालत काफी अच्छी थी और घर में किसी भी प्रकार की कमी नहीं थी। व्यापार अच्छा चलता था। फसलें भी अच्छी होती थी और सब कुछ अच्छा था। घर धन-धान्य से भरपूर था। मां लक्ष्मी की संपूर्ण कृपा उस दंपति पर थी।
क्या थी सेठानी की आदत
लेकिन सेठानी की एक आदत थी, वह जब भी कुछ खरीदने जाती तो हमेशा सस्ती चीज ही खरीद कर लाती थी। कभी उस चीज की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देती थी, बस उसको तो सस्ती चीज ही हमेशा पसंद आती थी।
अक्सर सेठ अपनी सेठानी को समझाया करते कि श्रीमती जी, चीज की गुणवत्ता को भी परख लिया करो, हमेशा पैसों पर ही ध्यान देती हो, कभी-कभी बढ़िया गुणवत्ता वाली चीज कुछ महंगी अवश्य आती है, परंतु वह काफी देर तक चल तो जाती है।
सेठानी थी मर्ज़ी की मालिक
इस पर सेठानी हमेशा अपने कुतर्कों से सेठ जी का मुंह बंद कर देती। कभी वह कहती कि इस बहाने कुछ दिनों बाद नई चीज तो आ जाती हैं। कभी वह कहती कि पैसा वसूल हो जाए तो उसके बाद चीज खराब भी हो जाए तो क्या हर्ज है और फिर हमें कौन सी कमी है, हम फिर से ले आएंगे। इस प्रकार वह हमेशा अपनी बात पर ही अडिग रहती और फिर से सस्ती चीज ही खरीद कर लाती।
सस्ते दाम में घी सुनकर सेठानी का ध्यान एकदम से उसे फेरी वाली पर गया। उसने अपने नौकर के हाथ उस फेरी वाली को अंदर बुला भेजा। और फेरी वाली आई तो उसने अपना घी सेठानी को दिखाया। वास्तव में वह घी उत्तम गुणवत्ता वाला था, कोई मिलावट नहीं थी, बिल्कुल शुद्ध देसी घी था।
परंतु उस घी की कीमत बाजार में उसी गुणवत्ता वाले घी की कीमत की अपेक्षा बहुत कम थी। इस पर सेठानी मन ही मन बहुत खुश हुई कि आज तो बिल्कुल ही खरा सौदा हाथ लगा है। इस पर भी सेठानी कुछ मोल-भाव करने लगी तो घी बेचने वाली औरत बोली- ठीक है सेठानी जी, कुछ कम भाव में ही ले लो, क्योंकि सर्दी के दिन है, दिन बहुत छोटे हैं और हमें दूर गांव जाना है। जल्दी घर पहुंचना है। तो कोई बात नहीं, हम कम कीमत में भी आपको सारा घी दे देंगे। इस तरह सेठानी ने कुछ और कीमत कम करवा ली और घी की चार बरनियां खरीद ली।
शाम को जब सेठ जी दुकान से घर लौटे तो सेठानी ने गर्व से सेठ जी को चार बरनियां घी की दिखाते हुए कहा - देखिए जी, आप हमेशा मुझसे शिकायत करते थे ना कि मैं कम गुणवत्ता वाली चीज खरीदती हूं परंतु आज तो मैंने शुद्ध देसी घी खरीदा है, वह भी बाजार से बहुत कम दाम में। घी में किसी भी तरह की कोई मीन-मेख नहीं है, बिल्कुल शुद्ध घी है। मैंने खुद खाकर देखा है।
जब सेठ ने भी घी को स्वयं देखा परखा तो उन्हें भी एहसास हुआ कि घी की गुणवत्ता में किसी भी प्रकार की कमी नहीं है। फिर वह सोच में पड़ गए तो सेठानी बोली - क्या सोच रहे हैं?
इस पर सेठ जी बोले -मैं सोच रहा हूं कि घी की गुणवत्ता में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं है, फिर वह औरत तुम्हें कम दामों में घी क्यों बेच गई? जरूर दाल में कुछ काला है।
सेठानी बोली -आपको तो मेरी हर बात में कमी ही नजर आती है। अब अच्छी चीज खरीदी है तो वह भी नाक के नीचे नहीं आ रही। अरे उसको जल्दी घर जाना था, वह भी बहुत दूर, इसलिए उसने सारा सौदा मुझे ही बेच दिया। उसको एक मुश्त कीमत मिल गई, उसको गली-गली धक्के नहीं खाने पड़े तो यह क्या कम है? अगर थोड़ी कीमत कम भी दे दी तो क्या फर्क पड़ता है, माल तो सारा मैंने खरीद लिया ना।
यदि तुम जानती थी कि यह घी उत्तम गुणवत्ता वाला है तो फिर तुम्हें उस औरत की मजबूरी का फायदा नहीं उठाना चाहिए था और उसकी पूरी कीमत देनी चाहिए थी। हमें क्या किसी बात की कमी है?
सेठ की बात सुनकर सेठानी बिना कुछ कहे मुंह बिचकाती हुई घी उठाकर रसोई घर में चली गई।
घी था शुद्ध और लाजवाब
सेठानी अपनी खरीद पर फूली नहीं समा रही थी। सेठ जी ने भी सब्जियों की बहुत तारीफ की और वे भी भोजन कर के संतुष्ट और प्रसन्नचित हो गए।
अगले दिन सेठानी फिर से सब्जी बनाने रसोई घर में गई। सारी तैयारी करके जब सब्जी छौंकने लगी तो कढ़ाई में घी डाला। एकदम से घी में से तिड़-तिड़ की आवाज आई। सेठानी अपने आप से बोली - अरे, मेरा भी दिमाग खराब ही है, गीली कढ़ाई में ही घी डाल दिया।
जब दूसरी सब्जी छौंकने लगी तो चूल्हे पर कढ़ाई चढ़ा कर पहले उसको सुखाया, फिर उसमें कडछी भरकर घी डाला। लेकिन सूखी कढ़ाई में भी घी डालने पर घी में से तिड़-तिड़ की आवाज आने लगी।
सेठानी को बहुत हैरानी हुई। वह सोचने लगी कि उसने तो सूखी कढ़ाई में घी डाला था, फिर घी में यह पानी कहां से आ गया? इसका मतलब घी में पानी है। यह सोचकर सेठानी ने जल्दी से घी वाली बरनी में गहरे तक कड़छी घुसाई और जब निकाली तो देखा कड़छी पानी से भरी हुई थी। घी और तेल हमेशा पानी के ऊपर तैरता है, विज्ञान के इस नियम का फायदा उठाकर बरनी में बड़ी सावधानी से पानी के ऊपर एक पतली परत घी की डालकर जमा दी गई थी। ठंड का मौसम होने के कारण घी आसानी से पानी पर जम गया होगा।
धरी रह गई सारी समझदारी
इस तरह की चालाकी को देखकर सेठानी का दिमाग एकदम से सन्न रह गया। वह जल्दी से बाकी की तीन बरनियों के पास पहुंची और उन सब में भी कड़छी डालकर गहरे में घुसाई। सब बरनियों का यही हाल था। सभी के ऊपर एक पतली परत घी की जमी हुई थी और बाकी नीचे पानी ही पानी भरा हुआ था। सेठानी ने अपना सर पीट लिया। वह चूल्हा बुझा कर लुटा-पिटा सा मुंह लेकर बाहर कमरे में आकर बैठ गई, जहां पर सेठ जी भी बैठे हुए थे।
सेठ जी ने सेठानी के चेहरे के हाव-भाव को देखा और पूछा - क्या हुआ?
इस पर सेठ जी बोले - इतने सालों में तुम्हारे चेहरे को पढ़ पाना अगर न सीख पाया तो फिर क्या ही जाना है मैने तुम्हें?
कुछ नहीं - सेठानी ने अनमने मन से जवाब दिया।
सेठानी यह समझ चुकी थी कि बेकार में कुछ भी सेठ जी से छुपाना असंभव है। उसने सारी बात सेठ जी को बताई।
इस पर सेठ जी हंसते हुए बोले - तो अब तुम्हें समझ आई कि मैं क्यों कह रहा था दाल में कुछ काला है? यह सब तुम्हारे सस्ते के लालच में हुआ है। वरना किसी भी आदमी का दिमाग ठनक जाएगा कि इतनी अच्छी गुणवत्ता वाली चीज कोई इतने कम पैसों में क्यों बेच रहा है?
वे आगे बोले- कुछ कहावतें हर समय में अर्थपूर्ण होती है। हम सुना करते थे कि सस्ता रोए बार-बार, महंगा रोए एक बार। आज यही कहावत मुझे तुम्हारे ऊपर चरितार्थ होती हुई दिख रही है। अब यह तुम्हें ही निर्धारित करना है कि इस वाकये को तुम अपने लिए एक सीख मानकर आगे से सुधर जाओ या फिर अपनी वही सस्ती चीज खरीदने वाली आदत को अभी भी सहेज कर रखो। फिलहाल जो हो गया, सो हो गया, अब आगे की सुध लो। जो धन का नुकसान हुआ उसके लिए इतना परेशान मत हो, धन आनी- जानी चीज है।तुम अपने स्वास्थ्य पर असर मत लो। यह बोलकर सेठ जी मुस्कुराते हुए घर से दुकान के लिए निकल गए।
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