सुबह का भूला- लालची शेख और मासूम बच्चा

लालच इंसान को अन्धा बना देता है और सही-गलत की पहचान भी भुला देता है। किस तरह एक अमीर व्यक्ति लालच के कारण एक मासूम की जान का दुश्मन बन बैठा, जानते हैं इस Hindi story of सुबह का भूला-लालची शेख और मासूम बच्चा में।

                           Hindi story of सुबह का भूला

लालची शेख और मासूम बच्चा



सुबह का भूला- एक बहुत पुरानी कहानी है बगदाद में रहने वाले एक शेख की।


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कैसा था शेख ?

शेख की आर्थिक हालत बहुत अच्छी थी। वह कालीनों का व्यापारी था। देश में ही नहीं विदेशों में भी उसके कालीनों की बहुत मांग थी। व्यापार में अच्छा मुनाफा होता था। घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। शेख व्यवहार से एक बहुत ही नेक इंसान था। ईश्वर से डरने वाला था, दान-पुण्य में विश्वास रखने वाला था। अच्छे काम के लिए दिल खोलकर दान देता था। कोई जरूरतमंद उसके दरवाजे पर आ जाए तो कभी उसको खाली हाथ वापस नहीं लौटाता था।


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शेख साहब की बीवी भी अपने पति की तरह एक नेक दिल औरत थी।


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एक और शेख 

इन्हीं शेख साहब का एक छोटा भाई भी था। वह भी विवाहित था। इन बड़े शेख साहब को लोग बड़े शेख के नाम से जानते थे और उनके छोटे भाई को लोग छोटे शेख के नाम से जाना करते थे। 


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छोटा भाई भी आर्थिक रूप से संपन्न था। वह सूखे मेवों का व्यापार करता था और विदेशों में भी उसका अच्छा व्यापार चलता था। इस प्रकार उसकी भी आर्थिक हालात अपने बड़े भाई से किसी भी प्रकार से कम नहीं थी।

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छोटे शेख का घर बड़े शेख के घर से कुछ ही दूरी पर था। दोनों भाईयों के परिवारों में अच्छा मेल-मिलाप था। वे अक्सर एक दूसरे के घर आया-जाया करते थे, एक दूसरे का हाल-चाल पूछा करते थे और आपस में कुछ समय भी बिताया करते थे।

दोनों  शेखभाई थे एक दूसरे से अलग 

जैसा कि स्पष्ट है, दोनों ही भाई आर्थिक रूप से बहुत संपन्न थे, लेकिन छोटा शेख व्यवहार में बड़े शेख के बिल्कुल विपरीत था। वह एक नंबर का कंजूस और लालची व्यक्ति था, किसी भी प्रकार का दान-पुण्य तो बिल्कुल नहीं करता था। बस उसे धन कमाने की असीम लालसा थी। 


दिन-रात इसी जोड़-तोड़ में लगा रहता कि किस तरह से और धन कमाया जाए, किस तरह से और धन इकट्ठा किया जाए। उसके इस व्यवहार से उसकी पत्नी भी बहुत चिड़ा करती थी। वह कहती थी कि ईश्वर ने हमें जितना दिया है हमें उसी में सब्र करना चाहिए और फिर क्या कम दिया है?


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छोटे शेख का एक दस साल का बेटा नबीन भी था। जबकि बड़े शेख की कोई संतान नहीं थी। 


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बड़े शेख के जीवन की कमी 

ईश्वर ने उसे सब कुछ दिया था, बस एक यही कमी थी कि उसे कोई भी संतान नहीं दी थी। बड़े शेख ने तो इसको ईश्वर की मर्जी मानकर स्वीकार कर लिया था, परंतु उसकी पत्नी को हमेशा यह कमी खलती थी। वह चाहती थी कि कम से कम उनकी कोई एक संतान तो होती।

छोटे शेख का लालच 

ऐसे ही एक दिन जब छोटा शेख अपने बड़े भाई बड़े शेख से मिलने उनके घर पहुंचा तो अचानक ही उसके कानों में बड़े शेख और उसकी पत्नी की बातें पड़ी। बड़े शेख की पत्नी अपने पति से कह रही थी कि क्यों ना हम एक बच्चा गोद ले लें? इस पर बड़े शेख ने जवाब दिया कि भविष्य में इसके बारे में सोचेंगे।


बस फिर क्या था छोटा शेख उल्टे पांव घर लौट आया। उसके दिमाग में अब एक नई ही तिकड़म चल रही थी। वह सोचने लगा कि क्यों ना मेरा बड़ा भाई मेरे ही बेटे को गोद ले ले। इस तरह से मेरे बेटे के पास मेरी जायदाद के साथ-साथ मेरे बड़े भाई की भी जायदाद हो जाएगी यानि कि वह हम दोनों की ही जायदादों का वारिस बन जाएगा।


छोटा शेख यह जानता था कि बड़ा शेख अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था, और वह उसकी कोई बात नहीं टालता था। तो यह तो निश्चित ही था कि अगर बड़े शेख की पत्नी के मन में किसी बच्चे को गोद लेने की बात आ ही गई थी, तो वह भविष्य में अवश्य ही किसी बच्चे को गोद ले लेंगे।

छोटे शेख ने लगाईं तरकीब 

अपने बेटे को गोद देने की मंशा से वह अब रोज ही अपने बड़े भाई से मिलने जाने लगा और अपने बेटे नबीन को भी साथ ले जाने लगा। वह चाहता था कि इस तरह रोज-रोज मिलने से बड़े शेख की पत्नी का उसके बेटे नबीन की तरफ झुकाव बने और वह उससे और भी ज्यादा जुड़ाव महसूस करें। इस प्रकार वह किसी और को गोद ना लेकर नबीन को ही गोद लेने की सोच ले।


छोटे शेख की पत्नी भी अपने पति की मंशा भांप नहीं पाई, क्योंकि अपने बड़े भाई के घर मिलने जाना या फिर नबीन को भी साथ ले जाना एक स्वाभाविक सी ही बात थी। और स्वयं छोटे शेख ने अपनी पत्नी को कुछ भी बताना उचित नहीं समझा।

माली और उसका पोता

बड़े शेख के घर एक बूढ़ा माली काम करता था। उसका एक पोता था बिराज। दुर्भाग्य से बिराज के माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं थे। इसलिए बिराज अक्सर अपने दादा के साथ काम पर जाया करता था। जब वह बूढ़ा माली बड़े शेख के घर काम करने आता तो बिराज को भी साथ ले आता।



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बिराज नबीन का हमउम्र ही था, इसलिए दोनों बच्चे अक्सर एक साथ खेला करते। बड़े शेख की पत्नी दोनों बच्चों को हमेशा ही कुछ ना कुछ खाने को या खेलने के लिए खिलौने देती रहती थी।


हालांकि छोटे शेख को यह बात बिल्कुल भी पसंद नहीं थी कि बड़े शेख की पत्नी बिराज को भी समान रूप से वही चीज देती थी, जो वह उसके बेटे को देती थी। परंतु अपने भाई के डर से वह कुछ कहने की हिम्मत नहीं करता था।

बड़े शेख की बीवी अक्सर कुछ लाती

एक दिन छोटा शेख अपने बेटे को लेकर जब बड़े शेख के घर पहुंचा तो बड़े शेख की पत्नी ने नबीन को खिलौने देकर कहा - यह ले नबीन बेटा, आज मैं कुछ खिलौने  लाई हूँ , तुम्हारे लिए और बिराज के लिए। तुम दोनों आपस में बाँट लो। 


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तब नबीन ने कहा - बिराज तो आज आया ही नहीं।
तो बड़े शेख की पत्नी ने कहा - कोई बात नहीं। तुम अपने खिलोने रख लो और बिराज जब कल आएगा तो उसको उसके खिलोने दे देना।


कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा। फिर एक दिन की बात है, छोटा शेख फिर से अपने भाई बड़े शेख से मिलने पहुंचा। उस दिन नबीन की तबीयत कुछ ठीक नहीं थी, इसलिए वह अपने पिता के साथ बड़े शेख के घर नहीं गया। उधर जब खेलते-खेलते बिराज बड़े शेख की पत्नी के पास पहुंचा, तो बड़े शेख की पत्नी ने उसको कुछ मिठाई देते हुए कहा कि यह लो, तुम और नबीन दोनों मिल बांट कर यह मिठाई खा लो।


तब छोटे शेख ने बताया कि नबीन आज तबीयत ठीक ना होने की वजह से साथ नहीं आया है।

इस पर बड़े शेख की पत्नी ने बिराज से कहा - तो फिर ठीक है, सारी मिठाई तू ही खा ले बेटा।


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छोटे शेख को बुरी लगी यह बात 

यह बात छोटे शेख को बुरी तरह से चुभ गई। छोटे शेख को वह दिन भी याद आया, जब उसके बेटे नबीन को बड़े शेख की पत्नी ने खिलौने दिए थे और कहा था कि बिराज के खिलौने संभाल कर रख ले, कल जब बिराज आएगा तो दे देना। लेकिन आज बड़े शेख की पत्नी ने नबीन के हिस्से की मिठाई भी बिराज को खाने को दे दी।


अब छोटे शेख के मन में यह बात आ गई कि अवश्य ही बड़े शेख की पत्नी बिराज को नबीन से ज्यादा महत्व देती है, और बिराज को ही पसंद करती है। उस पर वह अपनी ममता अधिक लुटाती है। कहीं ऐसा ना हो कि वह भविष्य में बिराज को ही गोद ले ले।


जबकि ऐसा करने के पीछे बड़े शेख की पत्नी की कुछ खास मंशा नहीं थी। उसने ऐसा बस तरस खाकर किया था, कि नबीन को तो हर चीज अपने घर में उपलब्ध हो जाती है, परंतु बिराज तंगी में ही पलता है। इस वजह से उसने ऐसा किया था।

माली नहीं आया काम पर

फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि माली काम पर नहीं आया और ना ही बिराज आया। अगले दिन भी वह नहीं आया। इसी तरह कुछ और दिन बीत गए, माली काम पर नहीं आया। जब काफी दिन तक वह काम पर नहीं आया तो बड़े शेख ने सोचा कि क्यों न जाकर माली के घर ही देख लिया जाए, कि क्या माजरा है, वह काम पर क्यों नहीं आ रहा। छोटा शेख भी बड़े शेख के साथ माली के घर गया। वहां जाकर देखा तो माली बहुत बीमार पड़ा था।


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बड़े शेख की इंसानियत 

बड़े शेख ने माली को बहुत अच्छे हकीम को दिखवाया और उसकी दवा का इंतजाम किया। खाने-पीने का बहुत सारा सामान अपने नौकरों के हाथ मंगवाया। इतना सब करने के बाद जब वह माली के पास बैठा तो माली ने उनका बहुत-बहुत धन्यवाद किया, और आंखों में आंसू भर कर बोला कि मैं तो अब बूढ़ा ही हो गया हूं। यह बीमारी तो चलती ही रहेगी लेकिन मुझे अपने पोते बिराज की बहुत चिंता है, मेरे बाद उसका क्या होगा।


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इस पर बड़ा शेख बोला- बाबा आप चिंता ना करें। आप जल्दी ही अच्छे हो जाएंगे। और आप विराज की भी चिंता ना करें। मैं हूं उसके लिए।


इतना सुनना था कि छोटा शेख कांटों पर लोट गया। अब तो उसको पूरा यकीन हो गया कि हो ना हो बड़ा शेख बिराज को ही गोद लेने वाला है।


जलन और ईर्ष्या से जलता हुआ छोटा शेख घर आ गया और सोचने लगा कि क्या किया जाए कि बिराज की जगह बड़ा शेख उसके बेटे नबीन को गोद ले ले।

छोटे शेख को खटकने लगा बिराज 

फिर एक बहुत ही घटिया विचार उसके दिमाग में आया। उसने सोचा क्यों ना मैं बिराज को रास्ते से हटा दूं। उसकी जीवन लीला ही खत्म कर दूं। ना रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। अब वह इस सोच में पड़ गया कि अब क्या किया जाए, किस तरह से बिराज को रास्ते से हटाया जाए।

छोटे शेख ने रचा एक षड़यंत्र 

बहुत उधेड़ बुन के बाद आखिरकार उसने एक योजना बना डाली। अब अपनी योजना के अनुसार एक दिन वह अपने भाई बड़े शेख के घर पहुंचा। उस दिन वह नबीन को साथ नहीं ले गया। वहां जाकर वह थोड़ी देर बैठा, इधर-उधर की बातें की। बिराज भी वही बरामदे में खेल रहा था। फिर वह बिराज से बोला - क्यों बिराज, आज अकेले ही खेल रहे हो?


इस पर विराज ने कहा - हां चाचा, नबीन तो आया ही नहीं आज आपके साथ।

तब छोटा शेख बड़ी नाटकीयता से बोला -अरे, वह तो आने ही वाला था तुम्हारे साथ खेलने के लिए। फिर अचानक से दर्ज़ी आ गया घर पर उसके कपड़ों का नाप लेने तो वह रुक गया। लेकिन उसने मुझे कहा था कि मैं तुम्हें अपने साथ लेता आऊं। क्या तुम चलोगे? मेरे घर चलो, आज गोश्त पकवाते हैं और हम सब मिलकर खाएंगे।


दावत का न्योता भला बिराज क्यों मना करता। उसने खुशी-खुशी सिर हिलाया तो छोटे शेख ने कहा- लेकिन एक मुश्किल है। घर पर गोश्त खत्म है और मदान छुट्टी पर गया है।


मदान छोटे शेख के नौकर का नाम था। चालक छोटे शेख ने ऐसा दिन चुना था जब बड़े शेख के दो नौकर भी छुट्टी पर गये थे। बस रुल्दू, जो की सबसे पुराना नौकर था, वही घर पर था और घर के जरूरी काम निबटा रहा था ।


छोटा शेख बिराज से फिर बोला - क्या तुम ले आओगे गोश्त बाजार से?


जी हां, ले आऊंगा। - बिराज ने कहा।

तो ठीक है। ले आओ फिर दो किलो गोश्त, पुराने चौक वाले बाजार में जो कल्लू कसाई है, उसकी दुकान से। -छोटे शेख ने बिराज से कहा।


फिर छोटे शेख ने कागज और कलम लेकर उस कागज पर कुछ लिखकर बिराज को देते हुए कहा- यह लो, यह मेरा रुक्का ले जाओ। कल्लू को जाकर दे देना। पैसे-वैसे देने की जरूरत नहीं है। मेरा उसके पास खाता चलता है। इस रुक्के को देखकर वह पहचान जाएगा कि तुम्हें मैंने भेजा है, और वह तुम्हें गोश्त दे देगा। मैं तुम्हारा यहीं पर इंतजार करता हूं। तुम आ जाओ, फिर इकट्ठे ही चलेंगे मेरे घर।


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बिराज की जान का दुश्मन छोटा शेख 

दरअसल यह सब छोटे शेख की कुटिल चाल थी। उसने कल्लू कसाई से पहले ही साठ-गांठ कर ली थी कि जो लड़का मेरे द्वारा लिखी हुई चिट्ठी लेकर आएगा, तुम उसको मार देना। बदले में छोटा शेख उसको पहले ही बहुत मोटी रकम दे आया था।


इधर बिराज रुक्का लेकर चला गया था। छोटा शेख मन ही मन खुश हो रहा था कि उसकी योजना काम कर रही थी। अब बस जैसे ही बिराज कसाई की दुकान पर पहुंचेगा ,कसाई उसको बहाने से अंदर ले जाकर उसका काम तमाम कर देगा।


यह सारी बात बड़े शेख और उसकी पत्नी के सामने हो रही थी, ताकि वे दोनों भी गवाह रहें कि छोटे शेख ने तो साधारण रूप से बस बच्चे को कसाई की दुकान पर ही भेजा था। पता नहीं वह रास्ते में कहां गायब हो गया।

हालांकि बड़े शेख की पत्नी छोटे शेख के इस बदले हुए रूप पर कुछ हैरान थी। क्योंकि वह छोटे शेख की नीयत को अच्छी तरह जानती थी, कि वह तो इस नीयत का मालिक है कि चमड़ी जाए पर दमड़ी ना जाए। फिर आज वह कैसे एक गरीब बच्चों को दावत दे रहा है।

कैसे पलटी बाज़ी ?

अब छोटा शेख बैठकर बिराज का इंतजार कर रहा था। जैसे-जैसे समय बीत रहा था वह अपनी योजना के प्रति और भी आश्वस्त हो रहा था।


लेकिन यह है क्या। छोटे शेख ने देखा कि दरवाजे से बिराज अंदर आ रहा है और उसके माथे पर पट्टी बंधी हुई है, कपड़ों पर खून लगा हुआ है।


छोटे शेख को मन ही मन कल्लू कसाई पर गुस्सा आया कि वह एक बच्चे को न निबटा सका। प्रत्यक्ष में वह घबराने का नाटक करता हुआ बोला - अरे यह क्या हुआ, यह चोट तुम्हें कैसे लग गई?


इस पर विराज ने बताया- क्या बताऊं, जैसे ही मैं बाजार की तरफ जा रहा था पीछे से कुछ लोगों की भीड़ आई और उनमें से एक आदमी मुझे बहुत तेज का धक्का देकर आगे निकल गया। मैं जमीन पर जा गिरा और मेरा सर पत्थर से टकरा गया। उसी से यह चोट लगी। फिर उसी भीड़ में से एक भला आदमी मुझे मरहम-पट्टी कराने के लिए ले गया। वहीं से सीधा यहां आ रहा हूं।


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छोटे शेख ने मन ही मन उस आदमी को हजार गालियां दी, जो बिराज को धक्का देकर आगे निकल गया था। उसने छोटे शेख की सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया था। खैर कोई बात नहीं, छोटे शेख ने मन में सोचा, आज नहीं तो कल मैं इस काम को जरूर अंजाम दे दूंगा। बकरे की मां आखिर कब तक खैर बनाएगी?

 अब हुई छोटे शेख की हवा गुल

नबीन गोश्त लेकर आ गया क्या? - बिराज ने पूछा।

क्या? वह कब गया था गोश्त लेने? गोश्त लेने तो तुम गए थे। - छोटा शेख सकपका कर बोला।


तब विराज ने बताया- जब मैं चोट खाकर गिरा और मैं उस आदमी के साथ मरहम पट्टी के लिए जा रहा तो मुझे आगे से नबीन आता हुआ मिला। उसने मुझे बताया कि आपने उसको यहां बुलवाया है। वही मुझसे वह रुक्का ले गया था, और कह कर गया था कि गोश्त मैं ले आऊंगा। तुम मरहम पट्टी करवा कर घर पहुंच जाओ।


बिराज का इतना कहना था कि छोटे शेख के पैरों तले से जमीन खिसक गई। इसका मतलब नबीन?????। नहीं नहीं। ये क्या कर दिया मैने।


अब छोटा शेख पागलों की तरह रोने-चिल्लाने लगा। बड़े शेख की पत्नी हैरानी से देख रही थी कि अचानक से उसे क्या हुआ है। छोटा शेख दहाड़े मार-मार कर रो रहा था और अपनी छाती पीट रहा था।

वह रो रहा था और बस बोल रहा था - ये मैंने क्या कर दिया, ये मैंने क्या कर दिया।


जब बड़े शेख ने आगे बढ़कर अपने छोटे भाई को संभालना चाहा, तो छोटा शेख विक्षिप्तों की तरह चिल्लाने लगा - मैंने अपने बेटे को मार दिया, मैंने अपने बेटे को मार दिया। मैं ही उसका कातिल हूं। यह बोलकर वह जमीन पर बैठ गया और अपना सर जमीन पर पटक- पटक कर जारों-जार रोने लगा।


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फिर नबीन आ गया 

क्या हुआ अब्बा, आप रो क्यों रहे हैं?- तभी अचानक यह आवाज़ छोटे शेख के कानों में पड़ी।

एकदम से उसका रोना धोना बंद हो गया और उसने सर उठाकर ऊपर देखा। सामने नबीन खड़ा था। छोटे शेख के मुंह से बोल नहीं फूटे, बस पागलों की तरह नबीन को देखने लगा।


नबीन ने छोटे शेख के कंधे को झकझोरा और बोला - क्या हुआ अब्बा, आप इस तरह से जमीन पर बैठकर क्यों रो रहे हैं?


छोटा शेख झट से खड़ा हो गया, नबीन को अपने गोदी में उठाया और कांपते हुए स्वर में  बोला- ठीक है तू बेटा?

हां, मैं तो ठीक हूं। अब मुझे क्या हुआ नवीन बड़ी हैरानी से बोला। अपने पिता की ऐसी हालत देखकर उसके मन में हजार सवाल उठ रहे थे। वह बहुत हैरान था।


नबीन अपनी मां के साथ वहां आया था। वह भी अपने पति की ऐसी हालत देखकर हैरान थी।

बड़े शेख ने खेला बड़ा खेल

हर कोई अपनी जगह हैरान परेशान खड़ा था। बड़े शेख की पत्नी सारा तमाशा देखकर हैरान थी कि अचानक से छोटे शेख को क्या हो गया, क्यों वह रोने-धोने लगा। छोटे शेख की पत्नी अपने पति की हालत देखकर हैरान थी। 

नबीन इसलिए हैरान था कि उसके पिता उसे यह क्यों पूछ रहे हैं कि वह ठीक-ठाक है। और विराज इसलिए हैरान था कि लाने तो मैं गोश्त गया था, लेकिन यह बीच में क्या गड़बड़ झाला हो गया। बस बड़ा शेख ही ऐसा था जो ना तो किसी बात पर हैरान था ना ही परेशान। वह बस शांत खड़ा था, मानो वह सब जानता था, और यही सच भी था।


फिर बड़े शेख ने अपने नौकर रुल्दू को इशारा किया और वह दोनों बच्चों को यह कहकर अंदर ले गया कि आओ बच्चों मैं तुम्हें मिठाई दूं। यह बड़ों का मामला है, वे अपने आप निपट लेंगे। और बाकी सब ठीक है। आ जाओ, चलो अंदर चले।


अब बड़े शेख ने छोटे शेख से कहा - मुझे समझ नहीं आता तुमने यह नीच हरकत क्यों की? जिस कसाई को तुम बच्चे को मारने का काम देकर आए थे, वह कसाई उसी दिन मेरे पास आ गया था। उसने मुझे सारी बात बता दी थी और तुम्हारे दिए हुए पैसे भी मुझे वापस कर गया था।

कसाई निकला रहमदिल और समझदार 

बड़ा शेख आगे बोला - तुम हैरान तो होंगे कि अगर कसाई ने तुम्हारा बोला हुआ काम पूरा नहीं करना था तो फिर वह राजी ही क्यों हुआ?


तो सुनो वह तुम्हारा काम इसलिए करने को तैयार हो गया क्योंकि अगर वह तुम्हें मना कर देता तो तुम किसी और से यह काम करवा लेते। एक नहीं तो दूसरा, दूसरा नहीं तो तीसरा, कोई तो यह काम करने के लिए मान ही जाता। इसलिए उसने ही कहा कि मैं बच्चे को मार दूंगा। और अगर तुम किसी और से यह काम करवा लेते तो बेचारा कोई बच्चा तो अपनी जान से जाता ही, तुम्हारी भी पोल हमारे सामने ना खुल पाती।


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वह आगे बोला - इसीलिए मैंने कसाई को कहा था कि जो भी कोई बच्चा तुम्हारे पास छोटे शेख की तरफ से आएगा, उसे सीधे मेरे पास ले आना। मैं तुम्हें रंगे हाथों पकड़ना चाहता था, और मैं यह भी जानना चाहता था कि वह बेचारा बच्चा कौन सा है जिसकी जान के दुश्मन तुम बने हो।


लेकिन जब तुमने बिराज को मेरे ही सामने कसाई की दुकान पर जाने को कहा तो मैं समझ गया कि यह बिराज ही है, जिसको तुम मारना चाहते हो।


और तभी मैंने मैंने सोचा कि तुम्हारी अक्ल ठिकाने लगाई जाए। मैंने एक योजना सोची और अपने नौकर रुल्दू को बिराज के पीछे भगा दिया। बिराज ना तो कहीं गिरा और ना ही उसे कोई चोट लगी। रुल्दू ने बिराज को जो सिखाया, उसने वहीं आकर घर पर कह दिया। वह चोट और मरहमपट्टी भी नकली थी। फिर रुल्दू ही तुम्हारी पत्नी और नबीन को लेकर यहां आ गया।


जब बिराज ने तुम्हें बताया कि उसकी जगह नबीन गोश्त लेने चला गया है, तो तुमने समझा कि कसाई ने नबीन को मार दिया होगा। यही सोचकर तुम रोने लगे


मैंने यह सबक तुम्हें इसलिए सिखाया था कि तुम्हें पता चले कि जिस तरह से तुम्हारे बच्चे की जान तुम्हारे लिए कीमती है वैसे ही किसी और के बच्चे की जान भी उसके अपने माता-पिता के लिए बहुत कीमती है।

छोटा शेख हुआ शर्मिंदा 

छोटा शेख अपने भाई के पैरों में गिर पड़ा और रो-रो कर माफी मांगने लगा। वह बोला - मुझे माफ कर दीजिए। मुझे पता चल गया है मैं कितना बड़ा पाप करने जा रहा था।


तब बड़े शेख ने कहा - वह तो ठीक है, लेकिन तुम यह तो बताओ कि बिराज से तुम्हारी क्या दुश्मनी है?


तब छोटे शेख ने अपने भाई को सारी बात बताई कि किस तरह से उसने एक दिन यह सुना था कि बड़े शेख की पत्नी किसी बच्चे को गोद लेना चाहती है। फिर किस तरह से उसके खुद के मन में लालच जागा की क्यों ना बड़े शेख की सारी जायदाद नबीन को ही मिल जाए। इस तरह उसने सारी बात बड़े शेख को बता दी। अब बड़े शेख की पत्नी और छोटे शेख की पत्नी दोनों को भी समझ आ चुका था कि माजरा क्या था।


छोटा शेख अभी भी अपने भाई से बार-बार माफी मांग रहा था।

छोटे शेख ने सुधारी अपनी गलती

कुछ दिनों बाद की बात है, अब सब कुछ सामान्य हो चुका था। हां लेकिन छोटे शेख के व्यवहार में बहुत अंतर आ चुका था। अब वह पहले जैसा कंजूस और लालची नहीं रहा था।


उसे अपने किए पर बहुत पछतावा था। हालांकि उसने क्या किया था, यह बात बड़े शेख ने ना तो नबीन को और ना हीं बिराज को पता लगने दी थी।

फिर एक दिन छोटा शेख बड़े शेख के घर आया और उसने अपने भाई से कहा -मैं अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हूं और मैं अपनी गलती सुधारना चाहता हूं। इसलिए मैं बिराज को गोद लेना चाहता हूं।


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इस पर बड़े शेख ने कहा - ठीक है, अगर तुम ऐसा करना चाहते हो तो मेरी इसमें पूरी रजामंदी है। सुबह का भूला अगर शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते।

दिन बदले बिराज के और माली के

इस प्रकार छोटे शेख ने बिराज को गोद ले लिया। उसने बिराज और नबीन दोनों को अपनी जायदाद का बराबर का हिस्सेदार घोषित कर दिया। और बिराज के दादा की चिंता भी मिट गई, कि उनके बाद उनके पोते का क्या होगा। अब बिराज को भी वो सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त थी जो कि नबीन को मिलती थीं। 


दोनों भाई प्यार से एक ही घर में पलने-बढ़ने लगे। लेकिन बिराज अपने दादा के बिना कैसे रहता छोटे शेख के घर, तो छोटे शेख ने उसके दादा के लिए भी अपने ही घर में हमेशा के लिए रहने का इंतज़ाम कर दिया।


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शिक्षा:- इस Hindi story of सुबह का भूला कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जो व्यक्ति किसी के लिए गड्ढा खोदता है, अक्सर ऐसा होता है कि वह स्वयं ही उसे गड्ढे में जा गिरता है। मतलब जो किसी और के लिए कोई मुसीबत खड़ी करता है, स्वयं उसके आगे उससे भी बड़ी मुसीबत आ खड़ी होती है।


WRITTEN BY - PUJA NANDAA
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