Fantasy story in Hindi बालू और मछली
यह fantasy story in Hindi एक दिल को छू लेने वाली कहानी है। आसमान में काले-काले बादल छा गए थे। इसका मतलब था कि बरसात बस किसी भी समय शुरू हो सकती थी। और इस बात से हरिया बहुत ही खुश हुआ क्योंकि उसकी चावल की फसल को अब पानी की बहुत आवश्यकता थी।

हरिया को है बारिश का इंतज़ार
हरिया ने आसमान की तरफ आशा और संतुष्टि भरी दृष्टि से देखा और अपने खेत के कोने पर लगे एक पेड़ के नीचे बैठ गया। दूर उसकी नजर पगडंडी पर गई तो उसे बालू आता हुआ नजर आया।
बालू हरिया के बेटे का नाम था, जो कि दस साल का था। हाथ में वह एक पोटली झुलाता हुआ कूदता फांदता हुआ उस तरफ बढ़ रहा था। वह हरिया के लिए खाना लेकर आ रहा था। बालू ने भी वहींअपने पिता के साथ बैठकर खाना खाया।
छोटे बालू को चाहिए खिलौने
तुम भी तो भीग जाओगे बापू। - बालू ने कहा
अरे ऐसी बरसात में तो मुझे दस बार भीगना मंजूर है। पानी बरसेगा तभी तो फसल अच्छी होगी बेटा। फसल अच्छी होगी तभी तो तेरे लिए हाट से खिलौने लेकर आऊंगा । क्यों, क्या कहता है? - हरिया ने कहा
हाट से खिलौने लाने की बात सुनकर बालू एकदम खुश हो गया। उसकी आंखों में एक चमक आ गई, और वह उन खिलौनों के सानिध्य के ख्यालों में खोया हुआ वापस चल पड़ा।
जिस नगर में हरिया अपनी पत्नी जमना और पुत्र बालू के साथ रहता था, वह कंचन नगर कुशीपुर राज्य की राजधानी था। नगर के दोनों ओर किसानों के खेत थे और नगर खेतों के बीचों-बीच सुशोभित था। नगर के दोनों और चौड़ी सड़क थी, जो की खेतों और नगर को अलग करने का काम करती थीं।
हरिया एक मध्यम वर्गीय किसान था। पत्नी जमना और पुत्र बालू के साथ नगर में रहता था। जिन भी किसानों की खेती-बाड़ी थी, वे सभी किसान सीधे कुशीपुर के राजा नरेंद्र प्रताप के प्रतिनिधियों को फसल बेचकर शाही खजाने में से धन प्राप्त करते थे। नरेंद्र प्रताप के मंत्री राजा की ही तरह ईमानदार और निष्पक्ष थे, इसलिए सभी किसानों को उनकी फसल का अच्छा दाम मिल जाता था और किसान लोग पूरी तरह संतुष्ट थे।
बालू अक्सर खेलता झील पर
जिस रास्ते से बालू घर लौटता था उस रास्ते में एक झील आती थी। अक्सर बालू झील के किनारे बैठ जाता और कंकड़ उठा-उठा कर झील में फेंकता रहता था। कंकड़ फेंकने पर जो पानी की गोल लहर उठती थी, उसे देखकर वह बहुत खुश होता। कभी-कभी वह अपने बल की परीक्षा लेता कि कंकड़ पानी में कितनी दूर तक फेंक सकता है।
उस दिन भी बालू झील पर रुक गया। फिर कंकड़ उठा कर पानी में फेंकने लगा। अब उसने अपने हाथ पानी में डाले और छप-छप करने लगा। तभी उसको अपने हाथ के पास कुछ हलचल महसूस हुई। उसने डर कर एकदम हाथ पानी से बाहर निकाल लिया और दो कदम पीछे हट गया और पानी में देखने की कोशिश करने लगा कि क्या है। उसने देखा कि पानी में एक सुनहरी नीले रंग की मछली तैर रही थी। थोड़ी देर पानी में इधर-उधर तैर कर फिर वह मछली पानी में गायब हो गई। अब बालू भी घर लौट आया।
अपने पिता के लिए खाना लेकर जाना बालू का रोज का नियम था। आज फिर वह लौटते वक्त झील पर रुक गया, लेकिन आज उसने झील में कोई पत्थर नहीं फेंका। बस किनारे बैठकर पानी की और देखता रहा। जब उसे पानी में कोई हलचल नजर नहीं आई तो फिर उसने पानी में हाथ डालकर छप-छप करना शुरू किया और फिर उसने हाथ पानी से बाहर निकाल लिया और बैठकर देखने लगा। पानी में कोई हलचल नहीं हुई।
आज फिर आई मछली
अब वह उठकर जाने लगा जाने के लिए मुड़ा ही था कि उसको पानी में कुछ आवाज सुनाई दी। मुड़कर देखा तो वही नीली सुनहरी मछली पानी में तैर रही थी, मानो बालू के निमंत्रण देने पर वह वहां आई थी। बालू दौड़कर वापस आया और किनारे पर बैठ गया और उस मछली को देखने लगा। मछली भी इस तरह से तैर रही थी और अपना मुंह थोड़ी-थोड़ी देर बाद पानी के ऊपर लेकर आई थी मानो वह बालू से ही मिलने आई थी। थोड़ी देर मछली वहां तैर कर फिर वापस पानी में गायब हो गई। जब बालू को मछली दिखनी बंद हो गई तो फिर वह वहां से उठा और घर लौट गया।
अब तो यह बालू का रोज़ का नियम बन गया था। खेत से लौटते वक्त वह झील पर रुकता, पानी में हाथ डालकर छप-छप करता, थोड़ी देर बाद ही वह मछली पानी की सतह पर आ जाती, थोड़ी देर तैरती रहती, फिर चली जाती और बालू भी घर लौटा आता था।
यह सब काफी दिनों तक चलता रहा। अब तो यह स्पष्ट रूप से कहां जा सकता था की मछली और बालू में मित्रता हो गई थी। जब बालू पानी में हाथ डालकर छप-छप करके मछली को बुलाता तो थोड़ी देर में ही मछली वहां पर आ जाती। थोड़ी देर वहां पानी में इधर-उधर नाचती रहती, करतब दिखाती। कभी बालू के हाथ को छूकर निकल जाती तो कभी बालू के हाथ के चारों तरफ गोल-गोल पानी में चक्कर काटती रहती। और कभी हाथ के ऊपर से पानी में इधर से उधर छलांग लगती।
लेकिन एक निश्चित समय के पश्चात मछली पानी में वापस लौट जाती मानो किसी बच्चे को उसके माता-पिता से खेलने के लिए केवल निश्चित समय मिला हो और फिर वह आज्ञाकारी बच्चे की तरह वापस अपने घर लौट जाती।
बालू अपनी दोस्त के लिए कुछ लाया
एक दिन बालू अपने साथ कुछ उबले हुए चावल ले गया। जब उसकी मित्र मछली आई तो उसने कुछ दाने पानी में डाल दिए। मछली ने वह चावल खुश होकर खाये। अब तो बालू रोज उसके लिए उबले हुए चावल लेकर जाने लगा।
और फिर एक दिन अचानक मछली ने बालू को बिल्कुल हैरान ही कर दिया। जब बालू ने पानी में छप-छप किया तो थोड़ी देर बाद मछली तैरती हुई वहां पर आ गई और उसने अपने मुंह में से कुछ उछाल कर बालू की तरफ फेंका। मछली की मुंह से कुछ निकल कर किनारे पर मिट्टी पर जा गिरा था। बालू ने जब वहां जाकर देखा तो वह एक मोती था। बालू ने वह मोती उठा लिया और हैरानी से मछली की तरफ देखने लगा और खुश होता हुआ बोला, - इतना सुंदर मोती तो मैंने पहले कभी नहीं देखा।अच्छा! आज तुम मेरे लिए यह तोहफा लेकर आई हो!
बालू के माता-पिता ने देखा मोती
बालू ने घर आकर वह मोती अपनी मां को दिखाया और सारी बात बताई। शाम को जब हरिया खेत से लौट कर आया तब उसने भी वह मोती देखा और सारी बात सुनी। अब हरिया को भी उत्सुकता हुई कि यह मोती वास्तव में बहुमूल्य है या यूं ही कोई साधारण सा मोती है।
अपनी पत्नी से इस बारे में उसने चर्चा की तो उसने भी यही कहा, - हम कैसे बता सकते हैं जी? यह तो कोई जौहरी ही देखकर बतायेगा।क्यों ना आप इसे किसी जौहरी को दिखा दें?
मोती को परखा जौहरी ने
हरिया को यह बात जंच गई। वह नगर में स्थित एक जौहरी की दुकान पर गया। उसने जौहरी को मोती दिखाया। जौहरी ने उसको बताया कि यह मोती वास्तव में बहुमूल्य है। अब जौहरी ने हरिया के सामने यह प्रस्ताव रखा कि यदि वह उस मोती को बेचना चाहता है तो जौहरी उसकी अच्छी कीमत दे सकता है।
हरिया ने उसे समझाया, -बेटा! तुम्हारी मित्र ने तुम्हें यह तोहफा इसीलिए दिया है कि तुम इससे कुछ धन प्राप्त कर सको। तभी तो यह तुम्हारे काम का होगा अन्यथा यह मोती हमारे घर में पड़ा किस काम का? और फिर फसल बिकने से पहले ही तो हाट से तुम्हारे लिए खिलौने भी तो आ जाएंगे।
बिक गया मोती
बालू ने भी हामी भर दी। अब तो हरिया यह मोती जाकर जौहरी की दुकान पर बेच आया। जौहरी ने अपनी क्षमता के अनुसार उस कीमती मोती की उचित मूल्य लगाकर हरिया को धन दे दिया। जो भी धन हरिया को मिला, वह उसकी कल्पना से बहुत अधिक ज्यादा था।
धन लेकर वह घर आया तो जमुना भी खुश होती हुई बोली, -अब इस धन से हम अपने टूटे घर की कुछ मरम्मत करवा लेंगे और कुछ धन बचत के लिए भी रख देंगे। हरिया भी उत्साहित होता हुआ बोला, -इस बार मैं उत्तम गुणवत्ता का बीज अपने खेत के लिए खरीदूंगा।बालू भी खिलोने पाकर बहुत खुश था।
मोती का क्या हुआ
अब जिस जौहरी को हरिया ने मोती बेचा था, उसके मन में भी यह उत्सुकता थी कि इस मोती की वास्तविक कीमत क्या है। उसने सोचा कि क्यों ना यह मोती मैं शाही जोहरी को बेच दूं, जो कि राजा रानी के जेवर बनाता है।
एक बार फिर बिका वह मोती
ऐसा सोच कर वह शाही जौहरी के पास उस मोती को लेकर गया। मोती को देखते ही शाही जौहरी की आंखें फटी की फटी रह गईं। उसने कहा, - इतना बहुमूल्य मोती तुम्हें कहां से मिला? इसकी कीमत तो बहुत ही अधिक है। यह तो बहुत ही बहुमूल्य और दुर्लभ है। शाही जौहरी ने उस जौहरी से वह मोती बहुत ऊंची कीमत में खरीद लिया और यह सोचकर अपने पास रखा कि यह मोती वह राजा को दिखाएगा। अगर उन्हें पसंद आया तो रानी के किसी आभूषण में उसे जड़ देगा।
इसी बीच राजा के मुख्यमंत्री कदम सिंह ने जौहरी को अपनी पत्नी रमला के लिए कुछ गहने बनवाने के लिए अपने घर आमंत्रित किया। जौहरी वहां उनके महल में पहुंचा और जब सभी गहनों के बारे में सभी बातें निश्चित हो गई तो जोहरी वहां से चलने लगा।
मुख्यमंत्री कदम सिंह ने देखा वह मोती
जौहरी अपना सभी सामान समेट रहा था कि तभी एक डिबिया सामान में से निकलकर नीचे गिर गई।
मुख्यमंत्री कदम सिंह ने कहा, -अरे भाई, यह तुम्हारा कुछ सामान गिर गया है। क्या है इस डिबिया में? यह तो तुमने हमें दिखाई ही नहीं।
तब वह जौहरी बोला, -जी यह तो राजा जी के लिए विशेष रूप से रखा हुआ है। अब मैं सीधा यहां से उनके ही महल जा रहा हूं।
ऐसा क्या विशेष है जो तुम केवल राजा जी को ही दिखाओगे। और फिर राजा जी तो पड़ोसी राज्य के राजा से संधि के विषय में बात -चीत करने राज्य से बाहर गये हैं। हमें भी तो दिखाओ, क्या है यह। - मुख्यमंत्री कदम सिंह उत्सुकता से बोले।
तब जौहरी ने झिझकते हुए मुख्यमंत्री कदम सिंह को वह बहुमूल्य मोती दिखाया। और कहां कि यदि राजा जी को यह मोती पसंद आ जाएगा तो रानी जी के किसी आभूषण में जड़वा दूंगा।
मुख्यमंत्री की पत्नी को हुई ईर्ष्या
मुख्यमंत्री की पत्नी रमला कुछ जिद्दी और ईर्ष्यालु स्वभाव की महिला थी। रानी के लिए इतना अनमोल मोती जा रहा है, यह देखकर तो वह जल-भुन कर कोयला हो गई।

जौहरी तो वहां से चला गया लेकिन वह रमला के दिल का चैन अपने साथ ले गया। अब रमला अपने पति से जिद करने लगी कि उसको भी ऐसे ही मोतियों की माला चाहिए।
अगले दिन मुख्यमंत्री ने फिर से जौहरी को बुला भेजा और उसको कहा कि जो मोती तुमने रानी जी के लिए रखा है, वैसे ही मोतियों की माला मेरी पत्नी रमला के लिए भी बना दो।
तब जौहरी ने कहा - माफ कीजिए सरकार, वह मोती तो मेरे पास केवल एक ही है। उसके साथ का कोई दूसरा मोती भी नहीं है।
मुख्यमंत्री को पता चला मोती का राज़
अब मुख्यमंत्री ने सारी बात उससे पूछी कि उसने वह मोती किस से खरीदा है। इस प्रकार पूछताछ करते-करते अंत में हरिया का नाम सामने आ गया। मुख्यमंत्री ने हरिया को बुला भेजा।
जब हरिया मंत्री के पास पहुंचा तो मुख्यमंत्री ने उससे पूछा - सच-सच बताओ, वह मोती तुम कहां से लाए? हरिया ने सारी बात बता दी।
बस फिर क्या था, अगले दिन मुख्यमंत्री अपने सैनिकों के साथ झील किनारे पहुंच गए और झील का निरीक्षण करवाया। झील आकार में तो छोटी थी लेकिन काफी गहरी थी।
झील में मोतियों और मछली की तलाश
पहले तो बालू की मदद से मछली को बुलाने का प्रयास किया गया। परंतु वहां कोई मछली नहीं आई। तो उस झील में गोताखोर उतरवाए गए। परंतु गोताखोरों ने गहरी झील का चप्पा-चप्पा छान मारा। ना तो वहां पर गोताखोरों को कोई मछली या मछलियों का झुंड मिला और न ही वहां कोई मोती मिले।
उधर रमला थी कि अपनी जिद पर अड़ी हुई थी। उसको तो वही मोतियों का हार चाहिए था। उसने मुख्यमंत्री का सांस लेना दूभर कर दिया था। मुख्यमंत्री ने भी उसको बहुत समझाया कि झील में कुछ भी नहीं मिला है, लेकिन वह थी की टस से मस नहीं हो रही थी। वह बस एक ही रट लगाए बैठी थी कि कुछ भी करो, लेकिन मेरे लिए वैसा ही मोतियों का एक हार बनवा कर दो।
इधर पूरे नगर में यह खबर फैल गई थी की झील में मोतियों का अपार भंडार छिपा है और मंत्री जी उसको निकलवाने का जतन कर रहे हैं।
हरिया हुआ परेशान
उधर हरिया आत्मग्लानि से भरा जा रहा था। उसके हिसाब से वही इस सब का जिम्मेदार था। ना वह मोती को बेचने जाता और ना ही यह सब बखेड़ा खड़ा होता। उसके विचार से यह सच था कि झील के अंदर कहीं गहराई में अवश्य ही कोई मछलियों का अलग संसार स्थित है, जहां से वह मछली आया करती थी। और हो सकता है वहां पर रत्न-मोतियों का अपार भंडार भी हो, परंतु अब उसकी वजह से उन मछलियों का भी अस्तित्व और उनका खजाना भी खतरे में पड़ गया था।
मुख्यमंत्री ने क्या निर्णय लिया
उधर अंतत मुख्यमंत्री ने यह निर्णय लिया कि झील का सारा पानी निकाल कर झील को सुखाया जाएगा। झील से थोड़ी दूर पर ही एक नदी बहती थी। झील से लेकर नदी तक एक नाला खोद दिया गया। अब झील का सारा पानी उसे नाले में पलटा जाएगा और वह पानी नाले में बहता हुआ नदी में मिल जाएगा, ऐसी योजना बनाई गई।
बड़े-बड़े पीतल के घड़े मंगवाए गए, जिनको कि मजबूत रस्सियों से बांधा गया। नगर के सभी तगड़े-तगड़े पहलवानों को वहां पर इकट्ठा कर लिया गया, जो कि घड़ों से पानी खींच-खींच के उस नाले में पलट देंगें। और इस प्रकार पानी नदी तक पहुंच जाएगा।
अब तो हरिया और भी परेशान हो गया। समझ नहीं आ रहा था मैं क्या करें, कैसे उन मछलियों की दुनिया को इंसानों से दूर रखें और उनके खजाने की रक्षा करें।
जमुना ने कहा कि क्यों ना हम अपनी फरियाद राजा जी के पास लेकर जाएं? इस पर हरिया ने जमुना को बताया कि राजा जी तो पहले ही नगर में नहीं है। वह पड़ोसी राज्य के राजा से संधि के बारे में बातचीत करने गए हैं। तभी तो वह अपने सारे अधिकार मंत्री जी को दे गए हैं, और मंत्री जी अपने उन अधिकारों का प्रयोग करते हुए इस झील को खाली करवा रहे हैं।
हरिया आगे बोला, -और फिर मैं राजा जी के ही मंत्री की शिकायत राजा जी को करने जाऊं तो पता नहीं राजा जी की भी क्या प्रतिक्रिया हो? क्या पता राजा जी की भी यही इच्छा हो कि यह खजाना उनको मिल जाए, और वह उल्टा मुझे ही नाराज हो जाए या मुझे ही कारागार में डाल दें। समझ नहीं आता क्या करूं।
बालू है अपनी दोस्त के लिए चिंतित
उधर बालू भी इन सभी क्रियाकलापों को देख रहा था। आसपास क्या चल रहा है, वह भी सब कुछ समझ रहा था। वह अपनी मित्र मछली के लिए बहुत दुखी था। फिर उसका मन उदास हुआ तो वह झील की तरफ चल पड़ा। वहां पर मंत्री के बहुत से सैनिक तैनात थे, इसलिए वह झील तक तो नहीं पहुंच पाया, बस दूर सड़क के किनारे खड़ा होकर देखने लगा।
बालू ने किया एक काम
इतने में किसी ने कहा, 'अरे, राजा जी वापस आ रहे हैं। इसी सड़क से उनका काफिला गुजरने वाला है। बस फिर क्या था, बालू ने आव देखा ना ताव, सीधा उस दिशा में भागना शुरू कर दिया, जिस दिशा से राजा जी का काफिला आ रहा था। दूर से उसको काफिला आता हुआ नजर आ गया। और जब वह काफिले की बिल्कुल पास पहुंच गया तो वह सड़क पर बीचों-बीच लेट गया।
उधर राजा ने काफिले के रुक जाने पर जब कारण पूछा तो उनको बताया गया कि एक बच्चा है, जो आपसे मिलने की बहुत जिद कर रहा है, और सड़क के बीचों-बीच लेटा हुआ है।
राजा तक पहुंची सारी बात
राजा ने कहा, -हां तो हमारी प्रजा में से अगर कोई बच्चा हमसे मिलना चाहता है, तो अवश्य हम उसे मिलेंगे। ले आओ उसे हमारे पास।
अब बालू ने राजा के पास पहुंचकर सारी बात शुरू से लेकर आखिर तक राजा के सामने रख दी और रो कर गिड़गिड़ाने लगा कि झील का पानी न निकल जाए, उसकी मछली का घर ना बर्बाद किया जाए।
राजा हुए आग बबूला
राजा को मंत्री की यह हरकत सुनकर बहुत गुस्सा आया। उन्होंने तत्क्षण अपना एक सैनिक अपने आज्ञा पत्र के साथ भेज कर तत्काल रूप से झील का पानी खाली करने का काम रुकवाने का आदेश दिया। वह सैनिक घोड़े पर सवार होकर राजा का आज्ञा पत्र लेकर तुरंत झील पर पहुंचा और वहां पर तैनात सैनिकों को दिया। और इस प्रकार उसी समय वहां पर चलने वाला सारा काम रोक दिया गया और सभी लोगों को वहां से वापस भेज दिया गया।
राजा ने किया न्याय
अब राजा का दरबार लगा। राजा ने मंत्री से प्रश्न किया कि किस कारण से आपने झील का पानी सुखाने के आदेश दिया?
राजा ने कहा, - इस राज्य में रहने वाले मनुष्य ही नहीं, सभी पेड़-पौधे, पशु-पक्षी हमारी प्रजा हैं। उनके हितों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। वह झील, जिसे तुम खाली करवाने चले थे, वह उन मछलियों का क्षेत्र है जो उसमें रहती हैं। उस झील पर केवल और केवल उन मछलियों का ही अधिकार है।
मनुष्य चाहे तो उस झील के पानी का सदुपयोग कर सकता है, परंतु उतनी ही मात्रा में जिससे उस झील में रहने वाले प्राणियों को कोई परेशानी ना हो। और रही खजाने की बात तो वह भी उन मछलियों का ही अधिकार क्षेत्र है। हमें कोई अधिकार नहीं है कि हम किसी प्राणी के अधिकार क्षेत्र में घुसकर उसकी संपत्ति पर अपना हक जमाए।
और तुमने तो बिना सोचे समझे झील खाली करवाने का अपराध किया है। तुमने यह नहीं सोचा कि पानी के अभाव में उस झील में रहने वाली मछलियों को क्या हाल होगा तुमने स्वयं को प्राप्त अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए यह कार्य किया है, इसे हम चाहते हैं तुमसे स्वेच्छा से त्यागपत्र दे दो, अन्यथा यह काम हमें करना पड़ेगा।
वे बोले, - किसी मनुष्य को कोई अधिकार नहीं है कि वह अपने स्वयं के आराम या शौक के लिए दूसरे प्राणी को कष्ट पहुंचाएं या दूसरे प्राणी की संपत्ति पर अपना हक जमाए। रही तुम्हारी पत्नी की आभूषणों की चाहत, तो तुम अपने वेतन में से अच्छे से अच्छा आभूषण बनवा कर अपनी पत्नी को दे सकते थे, परंतु तुमने अपने पद का लाभ उठाते हुए प्रकृति के काम में दखलअंदाज़ी की है, जो कि किसी भी रूप में हमारे द्वारा स्वीकार्य नहीं है।
इस प्रकार अपनी पत्नी के कारण मुख्यमंत्री कदम सिंह को अपने पद से हाथ धोना पड़ा।
राजा के इस निर्णय से बालू बहुत खुश हुआ। अब उसकी प्यारी मछली का घर कोई नहीं बिगड़ेगा।
बालू फिर पंहुचा झील पर
अगले दिन बालू नियत समय पर फिर से झील पर पहुंचा। उसने अपना हाथ पानी में हाथ डालकर छप-छप करना शुरू किया। काफी देर ऐसा करने के बाद भी मछली नहीं आई तो बालू निराश होकर थोड़ी देर बैठ रहा। फिर वहां से उठकर आ गया।
अभी वह झील से दस-बारह क़दम ही दूर गया होगा कि उसको झील से कुछ छपाक-छपाक की आवाज आई। पीछे मुड़कर देखा तो वही मछली उछल-उछलकर बालू का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रही थी। बालू खुश होकर दौड़कर मछली के पास पहुंचा। पोटली में से चावल निकले और मछली को खिलाने चाहे पर मछली ने चावल नहीं खाए, बल्कि वह बालू के हाथ से सटकर काफी देर तक पानी में स्थिर बनी रही।
बालू को उसका व्यवहार कुछ अजीब लग रहा था। आज वह कोई शरारत नहीं कर रही थी, ना ही इधर-उधर तैर रही थी बस सिर्फ पानी में खड़ी थी। थोड़ी देर ऐसे ही वह बालू के हाथ से चिपक कर खड़ी रही, फिर उसने एक नज़र बालू की तरफ देखा और पीछे मुड़कर तैरती हुई पानी में गायब हो गई।
फिर कभी नहीं आई मछली
अगले दिन फिर बालू झील पर पहुंचा और मछली को बुलाने का प्रयास किया, लेकिन वह नहीं आई। बालू हर रोज जाता रहा, लेकिन वह मछली उस दिन के बाद कभी वहां बालू से मिलने नहीं आई। मानो वह उस दिन अंतिम बार उसे अलविदा कहने आई थी। धीरे-धीरे बालू ने भी झील पर जाना बंद कर दिया।
अब बालू बड़ा होकर एक नवयुवक बन गया है। परंतु वह अपनी मछली मित्र को कभी भी भूल नहीं पाया। जब कभी बालू बहुत उदास होता है, तो वही झील के किनारे पर जा बैठता है। अपनी मछली को याद करके उसकी आंखों की कोरें आज भी गीली हो जाती है।
यादें रह जाती है निशानी बनकर,
कुछ रिश्ते हमेशा रहते हैं,
कभी होठों पर मुस्कान बनकर,
और कभी आंखों में पानी बनकर।
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