सरपंच की सूझबूझ : एक दिलचस्प कहानी With Ghibli Images

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सरपंच जी के सामने आ गई ऐसी समस्या, जिसका कोई हल नहीं सूझ रहा था। गांव में हुई चोरी, चोर था शातिर कि सरपंच जी का भी दिमाग घूम गया। क्या पकड़ा गया चोर या फिर किसी बेकसूर को मिली सजा? पढ़ें hindi short story सरपंच जी की सूझबूझ।


hindi short story सरपंच की सूझबूझ

एक दिलचस्प कहानी आखिर कैसे पकड़ा गया चोर? With Ghibli Images

कहानी बहुत पुरानी है। उत्तर भारत की सीमा पर एक छोटा सा गांव जगतपुर बसा था। गांव के सरपंच एक बुद्धिमान व्यक्ति थे। उनकी प्रखर बुद्धि से सभी प्रभावित थे और उन्हें बहुत सम्मान देते थे। गांव की खुशहाली के लिए सरपंच जी खूब मेहनत करते थे। यही नही, दूर दूर से भी लोग उनके पास न्याय मांगने और विभिन्न मामलों पर सलाह मशविरा करने आते थे।


एक बार विजय नाम का व्यक्ति सरपंच जी से मिलने आया। विजय एक सराय का मालिक था। उसने बताया कि उसने अपनी सराय में चोरी करते हुए एक चोर को पकड़ कर उसे सराय के एक कमरे में बंद कर दिया है। अब उस चोर का क्या करना है, यह फैसला आप ही कीजिए।


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सरपंच ने सारी बात विस्तार से बताने को कहा तो विजय ने बताया कि उसने एक यात्री को रात मे रहने के लिए जगह दी थी। जब विजय रात को सराय का कार्यालय बंद करके सोने चला गया तो वह व्यक्ति कार्यालय में खिड़की के रास्ते घुसा और तिजोरी में से सारा धन चुरा कर ले जाने वाला ही था कि तभी गांव के चौकीदार ने, जो कि संयोग से वहां से गुजर रहा था, उसे खिड़की से बाहर आते देखा तो झट से जाकर उसे पकड़ लिया और शोर मचा दिया। शोर सुनकर मैं भी वहां पहुंचा तो मैंने देखा कि चौकीदार ने चोर को दबोचा हुआ है और धन की पोटली जमीन पर पड़ी है। फिर हम दोनों ने मिलकर उसे एक कमरे में बंद कर दिया।


चोर ने विरोध नहीं किया या अपनी सफाई में कुछ नहीं कहा? - सरपंच जी ने पूछा।
तब विजय गुस्से और उत्तेजना के साथ बोला - अरे सरपंच जी, क्या बताऊं, वह तो उल्टा चौकीदार को ही दोषी ठहराने लगा और बोला कि चोरी उसने नहीं बल्कि चौकीदार ने की है।


तब सरपंच जी ने कहा कि उस चोर को और चौकीदार को यहां उनके सामने उपस्थित करो। थोड़ी देर बाद विजय और चौकीदार उस चोर को लेकर सरपंच जी के पास आये। चौकीदार ने उस चोर के दोनों हाथ एक रस्सी से बांध कर रस्सी का एक सिरा अपने हाथ में पकड़ा हुआ था ताकि वह चोर भाग न सके। 


सरपंच जी ने पहले यात्री अतिथि से पूछा कि क्या तुमने चोरी की है? उसने बताया कि नही, मै तो आराम से कमरे मे सो रहा था। मैने चोर की आवाज सुनी तो उसके पीछे भागा और उसे पकड़ लिया। शोर सुनकर सराय के मालिक भी आ गये, लेकिन इस चालाक चौकीदार ने एक दम पलटी मार दी और मुझे ही दोषी ठहरा दिया। मैं यहां पर नया हूं इस लिए यहां कोई मुझे नहीं जानता, तो कोई मेरे चरित्र की गवाही नहीं दे सकता। यह चौकीदार यहीं का निवासी है, सब इसे जानते हैं, तो सब इसी के हक में गवाही देंगे।


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फिर सरपंच जी ने चौकीदार से सारी बात पूछी तो उसने वहीं बात दोहराई जो विजय ने सरपंच जी को सुनाई थी। सरपंच की कुछ समझ में नही आ रहा था। दोनों ही पक्ष बड़े आत्मविश्वास के साथ अपनी बात पर अडिग थे। सरपंच जी ने उन सभी को अगले दिन आने को कहा। लेकिन दूसरे दिन भी कुछ न हुआ।


फिर अगले दिन वे सभी फिर से सरपंच जी के पास पहुंचे। पूरे गांव में यह बात फैल गई थी, इस लिए सभी गांव वाले भी चोर के बारे में जानने को उत्सुक थे, और यह भी जानना चाहते थे कि सरपंच जी क्या फैसला सुनाते हैं। इस लिए गांव के बहुत से लोग भी वहां आ गए थे। उस दिन सरपंच जी ने उन सभी से कहा - यह मामला बहुत पेचीदा है। इतने दिन बीत गए लेकिन मैं इसका निर्णय नहीं कर पा रहा हूं। इसलिए मैं यह घोषणा करता हूं कि दोनों ही व्यक्तियों को संदेह लाभ देते हुए कोई भी दंड न दिया जाए।


अब चौकीदार और वह अतिथि, दोनों ही बहुत खुश हुए। उनमें से एक, हालांकि पता नहीं कौन, इस लिए खुश था कि उसकी चोरी पकड़ी नहीं गई। और दूसरा इस लिए खुश था कि बेकसूर होते हुए भी वह दंड का भागी बनने वाला था, तो अब वह बच गया।


अब सरपंच जी उन दोनों से बोले, - दंड तो मैं नहीं दे रहा हूं लेकिन तुम दोनों को मेरा एक काम करना होगा। गांव की उत्तरी सीमा पर रघुबीर नाम का मेरा एक मित्र रहता है। तुम दोनों एक - एक करके उसके घर पहुंचो और मेरे अति आवश्यक सामान का एक बक्सा उसके घर से उठा लाओ।


वे आगे बोले, - याद रहे, तुम्हें अलग-अलग ही वहां पहुंचना है। मेरा एक सेवक तुम्हें वहां पहुंचा कर आएगा।
अब सरपंच जी का एक सेवक पहले चौकीदार को उस मित्र के घर छोड़ कर आया। फिर वह दोबारा उस अतिथि यात्री को अपने साथ लेकर उस मित्र के घर की ओर निकला।


चौकीदार और अतिथि यात्री सहित अन्य सभी गांव वालो को सरपंच जी का यह तरीका कुछ अजीब सा लगा, कि अलग-अलग जाने का क्या औचित्य है। इकट्ठे भी जा सकते हैं। लेकिन चूंकि यह सरपंच जी की इच्छा थी और इससे कोई नुक़सान भी नहीं था, तो कोई भी कुछ न बोला।


सेवक उन दोनों को उस मित्र के पास छोड़कर वापिस जा चुका था। उस मित्र ने दोनों से ही कुछ औपचारिक बातचीत करके वह बक्सा उन्हें सौंप दिया। बक्सा आकार में काफी बड़ा था और भारी भी। उस पर एक बड़ा सा ताला भी लगा था।


अब वे दोनों वह बक्सा उठाकर सरपंच जी के मित्र रघुवीर के घर से निकले। थोड़ी देर के बाद दोनों मेहनत से बक्सा उठाकर सरपंच जी के घर पहुंच गए और बक्सा सरपंच जी को सौंप दिया। सरपंच जी ने बक्से का ताला खोला और अंदर से जो निकला, उसे देख सबने अपने दांतों तले उंगलियां दबा ली।


उसमें से सरपंच जी का एक वफादार सेवक धर्मा निकला। सरपंच जी के चेहरे पर विजयी मुस्कान थी, जबकि गांव वाले हैरान परेशान थे, कि अति आवश्यक सामान के रूप में यह आदमी बक्से में बंद था। इसे बक्से में डाल कर लाने की क्या आवश्यकता थी? यह स्वयं चलकर भी तो आ सकता था।


अब सरपंच जी धर्मा से बोले, - हां तो धर्मा, बताओ रास्ते में अगर तुमने कुछ सुना हो तो।


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धर्मा ने विस्तार से बताना शुरू किया,- जब ये दोनों बक्सा लेकर रघुबीर जी के घर को बहुत पीछे छोड़ आए तो यात्री अतिथि ने चौकीदार से कहा, - बक्सा नीचे रखो। मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।


अब यात्री अतिथि चौकीदार से बोला, - तुम कैसे बेईमान आदमी हो। तुम तो अपने काम के साथ भी दगाबाजी करते हो। जब चौकीदार ही चोर बना जाएगा तो लोगों की रक्षा कौन करेगा? एक तो तुमने चोरी जैसा घिनौना पाप किया और फिर उसके इल्जाम में मुझे फंसाया।


इस पर चौकीदार बोला,- मैं क्या करूं क्या नहीं, तुम्हें यह समझाने की जरूरत नहीं है। अपना ज्ञान अपने पास रखो। रही बात तुम्हारे फंसने कि तो जो दूसरे के मामले में टांग अड़ाते हैं, उनका यही हाल होता है। मैं सराय में चोरी कर रहा था तो तुम्हारा क्या जा रहा था। खैर, अब तो तुम आजाद हो। सजा से भी बच गए। अब जितनी जल्दी हो सके, इस गांव से कूच कर जाओ, इसी में तुम्हारी भलाई है।


चौकीदार को काटो तो खून नहीं। उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। सज़ा तो हुई सो हुई, नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा। अतिथि खुश था कि उसे अपना खोया हुआ सम्मान वापिस मिल गया।


आखिर सरपंच जी की सोच ने एक सही फैसला सुनाया जिससे वह अतिथि निर्दोष साबित हुआ।

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मित्रों, इसीलिए कहा गया है कि सोच बडी होनी चाहिए उससे हर समस्या के हल निकल जाता है।

WRITTEN AND COMPILED BY - PUJA NANDA

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