सभी चींटियों में ठन गई और वे बँट गईं थी दो गुटों में। रानी चींटी का आदेश हुआ कि भोजन इक्कठा किया जाए। कौन जीता और किसको मिला सबक? आइये पढ़े एक रोचक Hindi story for kids
Hindi story for kids रहिमन देख बड़ेन को
यह Hindi Story For Kids 'रहिमन देख बड़ेन को' सुंदरबन की है जहां पर मेहनती चीटियों की ढेर सारी बांबियां थीं। उन्हीं बांबियों में से एक बांबी की यह कहानी है जो बहुत ही सुन्दर सफ़ेद रंग की बाम्बी थीं।

चींटियों की तैयारी
सर्दी का मौसम आने वाला था। रानी चींटी अपना दरबार सजा कर बैठी थी। और वह सभी मजदूर चीटियों को यह निर्देश दे रही थी कि वर्षा और सर्दी के मौसम के लिए अब अनाज इकट्ठा कर लिया जाना चाहिए। तो सभी चीटियां अपने काम पर लग जाएं।

कुछ तो मिला विचित्र सा
इतने में एक सैनिक चींटी बाहर से दौड़ी-दौड़ी आई और बोली, 'रानी चींटी, हमारी बांबी के बाहर एक बहुत ही विशालकाय फल, जो कि तरबूज जैसा दिखता है, वह गिरा हुआ है।'

कुछ सैनिक चीटियां बाहर निरीक्षण के लिए गई और अपनी बांबी से निकलने पर उन्होंने देखा कि वही उनकी बांबी के पास जमीन पर एक बहुत विशालकाय तरबूज पड़ा था।
उन्होंने यह खबर जाकर रानी को दी तो मजदूर चीटियों के नेता नीकू ने कहा, 'अरे वाह! यह तो बहुत अच्छी खबर है। एक ही बार में इतना सारा भोजन हमारे घर के बाहर आ गया है। अब तो सर्दी और बरसात की कोई चिंता ही नहीं रही। यह भोजन हम विशाल द्वार से अपनी बांबी में ले आएंगे और एक ही बार में भोजन इकट्ठा करने का झंझट खत्म हो जाएगा।'
इतने में एक दूसरी मजदूर चींटी बब्बू बोली, 'मेरे हिसाब से यह विचार अच्छा नहीं है। मैने भी देखा है वह फल। वह फल इतना भारी है और इतना विशालकाय है कि मुझे लगता है कि हम सारे मिलकर भी उसको अपनी बांबी में घसीट कर नहीं ला सकते हैं। बेहतर होगा कि हम छोटे-छोटे फलों और अनाज के दानों पर ध्यान दें, जिनको कि हम आसानी से उठा सकें और अपनी बांबी में आने वाले मौसम के लिए इकट्ठा कर लें।'
चींटियों के बने दो गुट
अब सभी चीटियों में बहस छिड़ गई। किसी को नीकू की बात ठीक लग रही थी तो किसी को बब्बू की। तब रानी चींटी के आदेश पर मजदूरों के दो गुट बना दिए गए। एक का नेता नीकू बनीऔर दूसरे गुट का नेता बब्बू बनी।
सभी चीटियां अपनी अपनी पसंद के हिसाब से बब्बू और नीकू के गुट में बंट गईं। अब दोनों ही गुट अपने-अपने काम पर जुट गए। नीकू का गुट चल पड़ा विशालकाय फल को अपनी बांबी में घसीट कर लाने के लिए और बब्बू का गुट भी चल पड़ा अपनी बांबी के चारों तरफ से और दूर-दूर से अनाज के और छोटे-छोटे फलों को घसीट कर अपनी बांबी तक लाने के लिए।

वह विशालकाय तरबूज देखने में तो बहुत बड़ा था ही परंतु कल्पना से भी अधिक भारी था। नीकू के गुट ने जोर लगाना शुरू किया और कोशिश करने लगे कि किसी तरह से इस फल को धीरे-धीरे खिसका कर अपनी बांबी तक ले जाएं। उधर बब्बू के गुट ने भी मेहनत करना शुरू कर दिया और आसपास बिखरे हुए छोटे-छोटे अनाज के दाने, फल और सब्जियां इकट्ठी करके अपनी बांबी तक ले कर जाने लगे।
दोनों गुट सारा दिन मेहनत करते और शाम ढले अपनी बांबी में लौट जाते और वहां पर जो पहले से ही राशन रखा हुआ था उससे अपना भोजन करके रात भर सो जाते। फिर सुबह उठकर काम पर लग जाते। देखते ही देखते बहुत दिन बीत गए। बारिश का मौसम सर पर आ गया लेकिन हैरानी की बात यह थी कि नीकू का गुट उस भारी विशालकाय तरबूज को एक इंच भी अपनी जगह से हिला नहीं पाया था। जबकि बब्बू के गुट ने बहुत सारा भोजन अपनी विशालकाय बांबी में ले जाकर इकट्ठा कर दिया था।

ये क्या टपका आसमान से
फिर एक दिन की बात है, अभी भी दोनों गुट अपने काम पर लगे थे कि आसमान से पानी टपका टप-टप। यानी कि बरसात का मौसम शुरू हो चुका था। यह मौसम की पहली बरसात थी। सभी चीटियां दौड़ कर अपनी बांबी में घुस गईं। थोड़ी ही देर में बाहर मूसलाधार बरसात शुरू हो गई परंतु सब चीटियां अपनी बांबी में सुरक्षित थी। उन्हें अब कोई डर नहीं था क्योंकि वह समय रहते हैं बांबी के अंदर घुस चुकी थी।
रानी चींटी का दरबार फिर से लगा। जहां एक और नीकू चींटी सर झुकाए खड़ी थी वहीं दूसरी और बब्बू चींटी के दल में बहुत खुशी और उत्साह की लहर थी। जब रानी ने दोनों से उनके काम के बारे में पूछा तो नीकू चींटी ने कहा, 'हमने अपना बहुत जोर लगाया, बहुत मेहनत की, हमने मेहनत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी परंतु हम फिर भी उस फल को अपनी बांबी तक नहीं ला पाए क्योंकि वह फल बहुत ही विशालकाय और भारी है।' अब बब्बू चींटी ने कहा, 'हमने बहुत सारा अनाज और फल आने वाले बरसात और सर्दी के मौसम के लिए इकट्ठा कर लिए हैं।'
यह सुनकर रानी बहुत खुश हुई और बब्बू चींटी को शाबाशी दी। अब नीकू चींटी भी बहुत पछता रही थी कि उसे भी बब्बू चींटी की तरह ही छोटी-छोटी चीजों का महत्व समझ कर उन्हीं को इकट्ठा करना चाहिए था। इतने बड़े फल के लालच में नहीं पड़ना चाहिए था। अब उसे यह चिंता थी कि वह आने वाले बरसात और सर्दी के मौसम में अपना पेट कैसे भरेंगे।
सब चींटियाँ फिर से हुईं एक
उसने रानी से क्षमा मांगते हुए अपनी शंका जाहिर की तो बब्बू चींटी ने कहा, 'चिंता क्यों करते हो मेरे भाई! हम सब ने इतना अनाज और फल इकट्ठे कर लिए हैं कि हमारी पूरी बांबी की चीटियां आराम से इतना समय बिना कुछ काम किए, बिना बाहर जाए अपना गुजारा कर सकते हैं। चिंता की कोई बात नहीं। हमने पर्याप्त राशन इकट्ठा कर लिया है।'
यह सब सुन कर नीकू चींटी के गुट में भी खुशी की लहर दौड़ पड़ी और नीकू चींटी ने बब्बू चींटी को धन्यवाद किया। उस दिन से बांबी की चींटियों ने छोटी से छोटी चीज के भी महत्व को समझना शुरू कर दिया। उन्होंने जीवन में छोटी-छोटी चीजों की सराहना करना सीखा और कभी भी किसी चीज को हल्के में नहीं लिया।
रहिमन देख बड़ेन को,
लघु न दीजिए डारि,
जहां काम आवे सुई,
का करे तलवारी।
इसका अर्थ यह है बच्चों कि हमें बड़ी चीज को देखकर उसके सामने किसी छोटी चीज को महत्वहीन नहीं समझना चाहिए। हर वस्तु का अपना एक महत्व और कार्य होता है। जिस जगह पर सुई काम कर सकती हैं, वहां पर तलवार किसी काम की नहीं।
शिक्षा
इस Hindi story for kids से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हर छोटी-बड़ी चीज का अपना एक स्थान और महत्व है।
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