Shree Krishna जी का नामकरण कैसे हुआ? | पौराणिक कथा |

भगवान् श्री कृष्ण के नाम की महिमा अनंत है। परन्तु उन्हें और उनके बड़े भाई बलराम जी को यह नाम कैसे मिले, जाने इस पौराणिक कथा Shree Krishna जी का नामकरण में

Shree Krishna और बलराम जी का नामकरण ऐसे हुआ


Shree Krishna जी और बलराम जी का नामकरण किसने और कैसे किया, इसके पीछे एक बहुत ही रोचक वृत्तांत है। हुआ यूं कि एक दिन ईश्वर प्रेरणा से कुल पुरोहित गर्गाचार्य गोकुल पधारे।


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यशोधा और नन्द जी का अनुरोध

नन्द जी और यशोदा जी ने उनका बहुत आदर सत्कार किया, और चूंकि वे मथुरा से आ रहे थे तो वासुदेव और देवकी का भी हाल-चाल पूछा। जब नन्द जी ने उनसे उनके आने का मंतव्य पूछा तो गर्गाचार्य ने बतलाया कि पास के गांव में एक बालक ने जन्म लिया है। वे उस बालक के नामकरण के लिए ही जा रहें हैं। बस रास्ते में तुम्हारा घर पड़ता था सो मिलने आ गये। यह सुन कर नन्द जी और यशोदा जी ने उनसे अनुरोध किया कि बाबा हमारे यहां भी दो बालकों ने जन्म लिया है। आप कृपया उनका भी नामकरण कीजिए।


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गर्गाचार्य ने किया इंकार 

इस पर गर्गाचार्य बोले कि तुम्हारे पुत्रों का नामकरण होगा तो उत्सव तो होगा ही। तुम तो जानते ही हो कि कंस के दूत छद्म वेश में इधर-उधर फैले रहते हैं। जब उत्सव होगा तो यह बात कंस तक भी पहुंच जाएगी। परंतु किसी कारणवश में यह नहीं चाहता कि कंस को यह बात पता चले कि तुम्हारे पुत्रों का नामकरण मैंने किया है। यह कहकर गर्गाचार्य ने पुत्रों का नामकरण करने से इनकार कर दिया।

नन्द बाबा की मनुहार 

इस पर नंद बाबा ने गर्गाचार्य से विनती की कि हे प्रभु, किसी व्यक्ति के जीवन पर उसके नाम पर कितना प्रभाव होता है, एक व्यक्ति के लिए उसके नाम का क्या महत्व है, यह आप से बेहतर भला कौन जान सकता है? हमारे लिए उत्सव इतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि हमारे पुत्रों को दिया गया एक अच्छा सा नाम जो कि उनके जीवन को एक आदर्श जीवन बनाने में मदद करेगा। 


हम यह बात अपने गांव के भी किसी व्यक्ति को पता नहीं चलने देंगे, ना ही कोई उत्सव होगा। आप कृपया गुप्त रूप से हमारी गौशाला में चलकर हमारे पुत्रों को अपनी गोद में लेकर केवल उनका नामकरण संस्कार कर दीजिए। जब किसी को भी पता नहीं चलेगा तो कंस तक भी यह बात नहीं पहुंच पाएगी।

अंततः मान गए गर्गाचार्य 

नंद जी और यशोदा जी का इतना आग्रह देख कर और गुप्त रूप से नामकरण की बात सुनकर गर्गाचार्य राजी हो गए और उन्होंने नामकरण का समय निश्चित कर दिया।

अब परीक्षा गर्गाचार्य की

अब यशोदा जी ने गुप्त रूप से नामकरण की बात रोहिणी को भी बताई। जब रोहिणी ने सुना कुल पुरोहित आए हैं तो वह भी उनका गुणगान बखान करने लगी। यशोदा जी ने रोहिणी से कहा, गर्गाचार्य इतने बड़े संत हैं तो वे हमारी ठिठोली पकड़ पाएंगें क्या ? हम ऐसा करतीं हैं कि हम अपने बच्चे बदल लेती हैं। तुम मेरे लाला को और मैं तुम्हारे पुत्र को लेकर जाउंगी। देखती हूं कैसे वे इस सच्चाई को जानते हैं?


माताएं परीक्षा पर उतर आईं। बच्चे बदल कर नियत समय पर वे सभी गौशाला में पहुंच गईं।


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 गर्गाचार्य ने किया बलराम जी का नामकरण

इधर गर्गाचार्य को भी यह भान हो गया कि दोनों स्त्रियां उनकी परीक्षा ले रहीं हैं । यह जान कर यशोदा के हाथ में बच्चे को देख गर्गाचार्य ने मुस्कुराते हुए कहा - ये रोहिणी का पुत्र है, इसलिए इसका एक नाम रौहणेय होगा। अपने गुणों से सबको आनंदित करेगा तो एक नाम राम होगा और बल में इसके समान कोई ना होगा तो एक नाम बल भी होगा। मगर सबसे ज्यादा लिया जाने वाला नाम बलराम होगा। यह किसी में कोई भेद ना करेगा। सबको अपनी तरफ आकर्षित करेगा तो एक नाम संकर्षण होगा।


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 गर्गाचार्य श्री कृष्ण जी को देख मोहित हुए 

अब जैसे ही रोहिणी की गोद के बालक को देखा तो गर्गाचार्य मोहिनी मूर्ती में खो गए। अपनी सारी सुधि भूल गए खुली आंखों से प्रेम समाधि लग गयी। गर्गाचार्य ना बोलते थे ना हिलते थे। ना जाने इसी तरह कितने पल निकल गए। यह देख नन्द बाबा और यशोदा घबरा गए। हिलाकर पूछने लगे - बाबा क्या हुआ ? बालक का नामकरण करना है, क्या यह भूल गए?


यह सुन गर्गाचार्य को होश आया और एकदम बोल पड़े - नन्द तुम्हारा बालक कोई साधारण इंसान नहीं। यह तो.... यह कहते हुए जैसे ही उन्होंने अंगुली उठाई, तभी कान्हा ने आंख दिखाई। गर्गाचार्य कहने वाले थे कि यह तो साक्षात् भगवान हैं। 


तभी कान्हा ने आंखों ही आंखों में गर्गाचार्य को चेताया - हे बाबा, मेरा भेद नहीं खोलना। मैं जानता हूं बाबा यहां दुनिया भगवान का क्या करती है उसे पूज कर अलमारी में बंद कर देती है और मैं अलमारी में बंद होने नहीं आया हूं, मैं तो माखन मिश्री खाने आया हूं, मां की ममता में खुद को भिगोने आया हूं। अगर आपने भेद बतला दिया तो मेरा हाल क्या होगा यह मैंने तुम्हें समझा दिया है।


मगर गर्गाचार्य मानो अपने आप को बोलने से रोक नहीं पा रहे थे। जैसे ही दोबारा बोलने लगे कि ये तो साक्षात....तभी कान्हा ने फिर चेतावनी दी - बाबा मान जाओ नहीं तो जुबान यहीं रुक जाएगी और अंगुली उठी की उठी रह जाएगी। यह सारा खेल आंखों ही आंखों में हो रहा था पास बैठे नन्द यशोदा को कुछ ना पता चला था।

 फिर मिला श्री  कृष्ण जी को नाम 

अंततः अपनी भावनाओं को नियंत्रित करते हुए गर्गाचार्य बोले - आपके इस बेटे के नाम अनेक होंगे। जैसे कर्म करता जाएगा वैसे-वैसे नए नाम होते जाएंगे। लेकिन क्योंकि इस बालक ने इस बार काला रंग पाया है, इसलिए इसका एक नाम कृष्ण होगा। इससे पहले यह कई रंगों में आया है।


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मैया बोली - बाबा यह कैसा नाम बताया है, इसे बोलने में तो मेरी जीभ चक्कर खा जायेगी। कोई आसान सा नाम बतला देना। तब गर्गाचार्य कहने लगे - मैया, तुम इसे कन्हैया, कान्हा, किशन या किसना कह लेना। यह सुन मैया मुस्कुरा उठी और सारी उम्र श्री कृष्ण को कान्हा कहकर बुलाती रही।


 COMPILED BY - PUJA NANDAA
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