
hindi motivational story - forest man of india
माजूली आईलैंड
इसी नदी का एक आइलैंड majuli island यानि कि नदी द्वीप भी इसी कारण अपना आकार और विस्तार खोता जा रहा था। यह द्वीप भारत के असम में स्थित है और जैसा कि यह ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य में बसा है, यहां की मिट्टी अनुपजाऊ और रेतीली होने के कारण वृक्षों और पौधों से विहीन थी।

क्या देखा एक बालक ने
ऐसे ही एक बार की बाढ़ के बाद एक सोलह वर्ष के लड़के ने बहुत से सांपों को रेतीली भूमि पर मृत पाया। भूमि बहुत अधिक गर्म थी वह वहां कोई पेड़ न होने के कारण सांपों को कोई शरणस्थली नहीं मिल पाई और वे अत्यधिक गर्मी सहन न कर सके और मर गए।
उस बालक ने सोचा कि आज इन सांपों के साथ ऐसा हुआ है, कि अत्यधिक गर्मी और पेड़ों की अनुपस्थिति के कारण यह सब मर गए तो मानव जाति का भी यही हाल हो सकता है। कैसी विडंबना है कि उस सोलह साल के बालक ने जो बात उस समय सोची और समझ ली, वह लोगों को आज तक भी समझ नहीं आई कि बिना पेड़ों के मानव जाति का अस्तित्व मिट जाएगा।
क्या हल निकला
उस बालक ने अपने गांव और परिवार के बड़े लोगों से इस बारे में बात की। लगभग सभी ने अफसोस करके अपने कर्तव्य की पूर्ति कर ली। उन्हीं में से किसी ने सरसरी तौर पर उसे बोल दिया कि अगर वहां पर कम से कम बांस के पौधे ही लगे होते तो बेचारे सांप बच जाते।
बस यही बात उसके दिमाग में घर कर गई। लापरवाही से बोली गई बात को उस बालक ने बहुत गंभीरता से लिया और उसे आत्मसात कर लिया। उसने यह दृढनिश्चय निश्चय किया कि वह उस रेतीली बंजर धरती पर बांस के पौधे लगाएगा।
क्या किसी ने की मदद?
हालांकि इस काम के लिए उसे कहीं से भी कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली। इनका परिवार गाय और भैंस का दूध बेचकर अपना गुजारा करता था तो उसी में से अपने लिए थोड़ा धन बचाकर इस बालक ने कुछ पौधौं की व्यवस्था की।

बहुत सी मुश्किलों का सामना करते हुए उसने कुछ बांस के पेड़ सफलतापूर्वक लगा दिए और उनकी देखभाल करने लगा। यह 1979 की बात है। लगातार प्रयास का परिणाम सकारात्मक निकला और वे बांस के पेड़ अच्छी तरह से ज़मीन में जम गए और फलने-फूलने लगे।
पेड़ लगे फलने-फूलने
अब अपनी पहली सफलता से उत्साहित होकर उस बालक ने और भी अन्य कईं पेड़ लगाने शुरू किए। किसी ने सही कहा है कि गिनती शुरू तो हमेशा एक से ही होती है, परंतु यह आप पर निर्भर करता है कि आप उसे कहां तक ले जाते हैं। दुनिया के सभी काम अपनी गति से चल रहे थे और वह बालक अपनी ही धुन में पेड़ पर पेड़ लगाता जा रहा था। धीरे -धीरे वह रेतीली बंजर ज़मीन एक हरी-भरी भूमि में बदलने लगी।
हो गया जंगल तैयार
लगातार तीस साल की कड़ी मेहनत के बाद वह रेतीली भूमि 1360 एकड़ के एक बड़े जंगल में बदल चुकी थी। साथ ही यह बहुत से जंगली जानवरों का घर भी बन चुकी थी। लेकिन दुनिया अभी तक उसके इस अविश्वसनीय काम से अनभिज्ञ थी।
फिर जाना पूरी दुनिया ने
2010 में पहली बार एक wildlife photographer ने उस जंगल के बारे में जाना और उस के बारे में एक लेख लिखा। इस तरह लगातार तीस साल की मेहनत पहली बार दुनिया के सामने आई। आम जनता और भारत सरकार ही नहीं बल्कि विदेशों में भी उनके इस काम को पहचान और अदभुत सराहना मिली।

उस समय के बालक और आज के उस प्रोढ़ व्यक्ति का नाम है जादव मोलाई पायेंग, जिन्हें आज देश -दुनिया में the forest man of india के नाम से जाना जाता है। यह उपाधि उन्हें 2012 में दी गई । इसके अलावा उन्हें 2015 में पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
जिस समय जादव अपना जंगल उगाने के काम में लगे हुए थे तो स्थानीय लोगों ने उनके जंगल का नाम उन्हीं के नाम पर molai forest रख दिया था। आज पूरी दुनिया Jadav Molai Payeng के जंगल को molai forest के नाम से ही जानती है।
अदभुत है यह जंगल
आज यह जंगल न केवल विभिन्न प्रकार के वृक्षों से भरा हुआ है बल्कि बहुत से जानवरों और पक्षियों की शरणस्थली भी बन चुका है। जादव पायेंग अभी रुके नहीं हैं बल्कि उनका वृक्षारोपण कार्य अभी भी अनवरत रूप से चल रहा है। Jadav Payeng ने पूरी दुनिया के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है कि जहां चाह वहां राह।
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