राजा सोमदेव ने अपने राज्य का उत्तराधिकारी चुनने के लिए एक बहुत ही अनोखा तरीका अपनाया। बहुत से बालक राजा के उत्तराधिकारी बनने की ईच्छा के साथ दरबार में उपस्थित हुए। राजा ने सबको दिया एक बहुत ही आसान सा काम। क्या कोई कर पाया वह आसान सा दिखने वाला काम? आइए पढ़ते हैं Short Story With Moral In Hindi ईमानदारी का पौधा
ईमानदारी का पौधा Short Story With Moral In Hindi
एक बार की बात है। कृष्णागढ़ राज्य में राजा सोमदेव नाम का एक राजा हुआ करता था। वह बहुत ईमानदार और साहसी था। उसे अपनी प्रजा से बहुत प्यार था। उसके राज्य में सभी लोग उससे खुशी से एक साथ रहते थे।
राजा को थी चिंता
राजा सोमदेव को एक बात हमेशा परेशान किया करती थी कि उसके जाने के बाद उसके राज्य को कौन संभालेगा? क्योंकि उसकी कोई औलाद नहीं थी।
एक दिन राजा ने अपने राज्य से ही किसी युवक को अपना उत्तराधिकारी चुनने का फैसला किया। वह अपनी ही तरह किसी ईमानदार लड़के को सत्ता सौंपना चाहता था, जो प्रजा का ख्याल रखे।
बुलाए गए कुछ बालक
राजा ने काफी सोच विचार करके राज्य के सभी होनहार बच्चों को दरबार में बुलाया और घोषणा करते हुए कहा - मैं आप सब में से किसी एक को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहता हूं। इसके लिए आप सबको एक परीक्षा दी जाएगी। जो इसमें उत्तीर्ण होगा , वही मेरा उत्तराधिकारी बनेगा।
क्या थी वह परीक्षा
इसके बाद राजा ने दूर रखी हुई पोटलियों की तरफ इशारा करते हुए वहां मौजूद सभी बच्चों को कहा - उन सभी पोटलियों में अलग-अलग प्रकार के पौधों के बीज हैं । मैं या अन्य कोई नहीं जानता कि किस पोटली में कौन से पौधे का बीज हैं। सभी बालक राजा की बात बड़े ध्यान से सुन रहे थे।
राजा आगे बोला - सभी बालक एक-एक पोटली उठा लो। सभी ने ऐसा ही किया। राजा फिर बोला - आप सभी ये पोटलियां अपने-अपने घर लेकर जाओ और इन बीजों को एक गमले में बो दो। गमले की अच्छी तरह से देखभाल करनी है। फिर आज से ठीक चार महीने बाद सभी अपने-अपने पौधे के साथ यहां पर फिर से एकत्रित होंगे। उस समय मैं आप में से किसी एक को अपना उत्तराधिकारी बनाऊंगा।
सभी बालक हुए खुश
सभी बच्चे बहुत ही खुश थे क्योंकि गमले में पौधा उगाना तो बहुत ही सरल काम था। और ये काम तो वे सब आसानी से कर सकते थे। हालांकि जब वें राजा के महल में आए थे तो उन्होंने सोचा था कि राजा अपना उत्तराधिकारी बनाने के लिए कोई बहुत ही कठिन परीक्षा देने वाले है। गमले में बीज बोने की बात सुनकर सभी इस परीक्षा को आसान समझकर खुशी-खुशी घर लौट गए।
सभी ने बो दिए पौधे
सभी बच्चों ने राजा से मिले हुए बीज अपने-अपने घर जाकर गमलों में बो दिए । समय बीतने लगा। सभी बच्चों के गमले से बीज की उपज दिखने लगी थी। सभी बहुत उत्साहित और खुश थे कि उन्होंने राजा द्वारा दिए काम को सफलतापूर्वक संपन्न कर लिया था।
किसका गमला था खाली
लेकिन श्याम नाम का एक बच्चा था, जिसके गमले से पौधे का नामोंनिशान तक नहीं था। श्याम के साथ के दूसरे बच्चों के पौधे बड़े होने लगे थे, यह देखकर वह बहुत परेशान रहने लगा। वह मन ही मन यह सोचता रहता था कि सब के गमले में पौधे आ गए, लेकिन उसके गमले से पौधा क्यों नहीं आ रहा है। उसने सोचा कि हो सोकता है उसका पौधा उगने में अधिक समय ले, इसलिए उसने हार नहीं मानी और वह पूरी मेहनत और लगन के साथ गमले की और ज्यादा देखभाल करता रहा।
नहीं उगा श्याम का पौधा
धीरे-धीरे चार महीने बीत गए, लेकिन श्याम के गमले में कोई पौधा नहीं उगा। वहीं, अन्य सभी बच्चों के गमलों में पौधे निकल आए। कुछ बच्चों के पौधों में तो फूल और फल भी दिखने लगे। राजा के पास जाने का समय आ गया। श्याम ने सोचा कि वह राजा के पास जाएगा, तो उसका गमला देखकर सब उसका मजाक बनाएंगे। कोई उसकी बात पर विश्वास नहीं करेगा कि वह हर दिन गमले में पानी देता था व उसकी देखभाल करता था।
मां ने बढ़ाया मनोबल
श्याम की मां ने उसे समझाया और कहा - कि नतीजा कुछ भी आया हो, लेकिन तुम्हें राजमहल उनका बीज लौटाने जाना चाहिए। जो होगा देखा जाएगा। तुमने अपना सच्चा प्रयास किया है इसलिए तुम्हें अपना आत्मविश्वास नहीं खोना चाहिए ।
मां के समझाने पर श्याम मान गया और खाली गमला लेकर राजमहल पहुंचा। वहां उसने देखा कि सभी के गमले में सुंदर-सुंदर पौधे दिखाई दे रहे थे और सभी बहुत खुश थे। उसका गमला देखकर सभी हंसने लगे और अपनी मेहनत का बखान करने लगे। वह चुपचाप आंखें नीचे किए बैठ गया।
राजा ने किया निरीक्षण
इतने में राजा आए और सभी के गमलों को ध्यान से देखने लगे। जब वह श्याम के गमले के पास पहुंचे तो उन्होंने पूछा - यह किसका गमला है? श्याम - जी मेरा…।
राजा ने पूछा - तुम्हारा गमला खाली क्यों है?
तब श्याम आत्मविश्वास के साथ सत्य बोला- मैं रोजाना इसको पानी देता था। मैंने इसकी बहुत देखभाल की, लेकिन इसमें से पौधा नहीं निकला।
राजा का निर्णय
अब राजा के चेहरे पर एक सौम्य मुस्कान आई और वे श्याम से बोले- आओ मेरे साथ।
श्याम राजा द्वारा बुलाने पर डर गया, लेकिन उसे राजा की आज्ञा माननी ही थी। वह धीरे-धीरे राजा की तरफ आगे बढ़ा। राजा उसे सिंहासन के पास ले गए और बोले - तुम ही इस राज्य के असली उत्तराधिकारी हो। राजा के इस फैसले से वहां मौजूद हर कोई हैरान रह गया।
राजा ने कहा - मैंने जो बीज तुम सबको दिये थे, वे नकली थे। उनसे पौधा आ ही नहीं सकता था। मैं अच्छी तरह से अंदाजा लगा सकता हूं कि क्या हुआ होगा। जब आप सबके पौधे कुछ समय बीतने पर भी नहीं उगे होंगे तो सभी ने अपने गमलों में स्वयं के बीज डाल दिए। क्यूं कि मैंने बीज देते समय स्वयं ही यह बात कही थी कि मैं नहीं जानता, किस पोटली में कौन से बीज हैं।
सभी बालक अब खिसियाएं से वहां खड़े चुपचाप राजा की बात सुन रहे थे। किसी के भी पास अपनी सफाई में कहने के लिए कुछ नहीं था। सबका छल सामने आ गया था।
राजा आगे बोले - आप सब ने तो बीज बदल दिए, लेकिन श्याम ने ईमानदारी के साथ चार महीने मेहनत की और अपनी असफला स्वीकार करते हुए मेरे सामने खाली गमला लाने का साहस दिखाया। जबकि आप सबने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए सच्चाई और ईमानदारी का साथ छोड़ कर छल कपट को अपना लिया। अपने लक्ष्य को पा लेना ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि यह भी महत्वपूर्ण है कि आपने अपने लक्ष्य को पाने के लिए कौन सा रास्ता अपनाया। श्याम में वह सारे गुण हैं, जो एक राजा में होने चाहिए। इसलिए इस राज्य का अगला उत्तराधिकारी मैं श्याम को बनाता हूं।
सभी अन्य बालकों के सिर शर्म से झुक गये। वे चुपचाप दरबार से बाहर निकल गये। इस तरह श्याम ने ईमानदारी के कारण राज्य का सिंहासन पा लिया। और राजा श्याम देव के नाम से प्रख्यात हुआ। जीवनपर्यंत उसने सच्चाई और ईमानदारी के साथ एक राजा के सभी कर्तव्यों को निभाया।
शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें किसी भी परिस्थिति में ईमानदारी नहीं छोड़नी चाहिए। इंसान को उसकी सच्चाई और ईमानदारी का फल जरूर मिलता है।
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