सर्वोत्तम राजा - जब एक राजा को मिली जीवन की बहुमूल्य सीख

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परम नाम के एक सेवक को राजा के द्वारा मृत्यु दण्ड दिया जा चुका था। परंतु कोई एक ऐसा व्यक्ति था जिसको राजा का यह फैसला गलत लगा था। क्या वह व्यक्ति बचा पाया परम के प्राण? आइए पढ़ते हैं short story in hindi language सर्वोत्तम राजा।

short story in hindi language सर्वोत्तम राजा

जब एक राजा को मिली जीवन की बहुमूल्य सीख

राजा माणिक राय की आयु काफी हो चली थी। अब वे राज-काज के कामों को अच्छी तरह से करने के लिए अपने आप को सक्षम नहीं पाते थे।


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इसलिए उन्होंने अपने एकमात्र पुत्र राजकुमार आदित्य राय को राजा बनाने का निर्णय लिया।

बन गया नया राजा

आदित्य राय का राज्याभिषेक हुआ और उन्हें राजा बना दिया गया। हालांकि राजा माणिक राय भी राज दरबार में एक महत्वपूर्ण पद पर बने रहे। क्यों कि वह जानते थे कि केवल राजमुकुट पहन लेने से ही कोई कुशल राजा नहीं बन जाता। उसके लिए अनुभव की आवश्यकता होती है जो कि आदित्य राय के पास नहीं था। भले ही राजा माणिक ने राजा का पद त्याग दिया था लेकिन उनके अनुभव की अभी आदित्य राय को बहुत आवश्यकता थी।

अद्भुत उपहार

एक बार राजा आदित्य राय को किसी पड़ोसी राज्य से उपहार में कांच की तीन सुन्दर मूर्तियाँ प्राप्त हुईं। आदित्य राय को वे मूर्तियां बहुत पसंद आई।


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उन्होंने उन मूर्तियों की देखभाल के लिए परम नाम का एक सेवक नियुक्त कर दिया। परम रोज उनकी सफाई करता और उन्हें चमका कर रखता।

अरे! यह क्या हुआ मूर्ती को?

राजा का स्पष्ट आदेश था कि मूर्तियों की देखभाल में कोई कमी न रह जाए। एक दिन सफाई के दौरान परम के हाथ से एक मूर्ति गिर कर टूट गई। राजा के क्रोध का ठिकाना ना रहा। उसने तत्काल परम को मृत्युदंड देने की घोषणा कर दी।

परम का बुरा समय

परम को पकड़ कर जेल में डाल दिया गया। माणिक राय को पुत्र का यह निर्णय बिल्कुल भी ठीक नहीं लगा। परंतु उन्होंने उस समय आदित्य राय को कुछ नहीं कहा । अगले दिन परम को फांसी होनी थी।

उसी रात को माणिक राय गुप्त रूप से कारागार में परम से मिलने गए। कुछ देर उसके पास बैठे, कुछ बातचीत की और फिर महल में लौट आए।


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परम की अंतिम इच्छा

अगले दिन नियमानुसार परम को फांसी देने से पहले दरबार में राजा के समक्ष प्रस्तुत किया गया। राजा आदित्य राय अभी भी परम पर बहुत क्रुद्ध थे। तब माणिक राय ने अपने पुत्र से कहा कि नियमानुसार फांसी देने से पहले कैदी की अंतिम इच्छा पूरी की जाती है।

अब परम से उसकी अंतिम इच्छा पूछी गई तो उसने कहा कि वह उन दो बचीं हुई कांच की मूर्तियों को अंतिम बार अपने हाथों से साफ करना चाहता है।

परम का दुस्साहस

दोनों मूर्तियां दरबार में लायी गईं। परम धीरे धीरे चलता हुआ उन मूर्तियों के पास पहुंचा और अप्रत्याशित रूप से उसने वह दोनों मूर्तियां जमीन कर जोर से पटक दीं। कांच की बनी सुंदर मूर्तियां पल में चूर-चूर हो गईं। 


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राजा ने जब यह देखा तो आपे से बाहर हो गया। क्रोधित राजा ने तत्काल परम को वहां से ले जाकर फांसी देने का आदेश दिया। इस पर माणिक राय ने राजा को रोकते हुए कहा कि बिना कारण जाने कैदी को दंड नहीं दिया जा सकता।

परम का स्पष्टीकरण

परम से जब मूर्तियां तोड़ने का कारण पूछा गया तो वह नम्रता पूर्वक बोला, महाराज ! इसके पीछे कोई दुर्भावना नहीं है। मैंने तो ऐसा करके दो लोगों के प्राण बचाने का काम किया है।


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आप किसी ना किसी को इनकी देखभाल के लिए रखते और देखभाल के क्रम में उससे भी मूर्ति टूट सकती थी। आप फिर उसे मृत्युदंड दे देंगे, लेकिन अब मूर्तियाँ ही नहीं रहीं इसलिए दो लोगों की जान बच गई। मैंने जीवन के अन्तिम क्षणों में एक पुण्य कार्य करने की कोशिश की है। हो सकता है उन दोनों में से कोई एक मेरी ही तरह अपने माता-पिता का अकेला सहारा हो।

माणिक राय का मूक निर्देश

इतना बोल कर परम चुप हो गया। अब माणिक राय ने अपने पुत्र की आंखों में देखा। उनके मुख पर एक सौम्य मुस्कान थी मानो उनकी आंखें कह रहीं थी कि अब तुम अपने किए गए निर्णय पर पुनर्विचार करो।

राजा को हुआ सत्य का भान

आदित्य राय अपने पिता का मंतव्य समझ गया और उसे अपनी भूल का भी अहसास हो गया। 


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वह समझ गया कि किसी भी सेवक के प्राण इतने सस्ते नहीं कि उन कांच की मूर्तियां टूटने के बदले में ले लिए जाएं।

माणिक राय की शिक्षा

अब माणिक राय ने आदित्य राय को समझाया कि एक कुशल राजा वही है जिसकी जनता उसे उसके डर के कारण नहीं बल्कि उसमें विश्वास के कारण उसको स्वीकार करती है। ऐसा राजा, जिसे जनता दिल से प्यार करती है व इस बात के लिए आश्वस्त रहती है कि उनका राजा सदैव उनके हितों की रक्षा करेगा, वहीं एक महान राजा कहलाता है। वरना एक अन्यायी राजा का तख्ता पलटने में देर नहीं लगती।

आदित्य राय ने सुधारी अपनी ग़लती

अब राजा आदित्य राय को अपनी भूल का अहसास हो गया था। उसने परम को क्षमा कर फिर से काम पर रख लिया और अपने पिता माणिक राय को यह वचन भी दिया कि भविष्य में वह कोई भी निर्णय भावावेश में आकर या फिर क्रोध के वशीभूत हो कर नहीं करेगा बल्कि ऐसा निर्णय लेगा जिससे 
सभी का कल्याण हो।

माणिक राय की गुप्त सलाह

अपने पुत्र की बात सुनकर माणिक राय के चेहरे पर एक संतुष्टि का भाव था। वें अपने पुत्र का ग़लत निर्णय बदलवाने में सफल रहे थे। आखिर कारागार में गुप्त रूप से जाकर परम को मूर्तियां तोड़ डालने की तरकीब माणिक राय ने ही तो बताई थी।


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