
मनसुख बढ़ई पर घने जंगल में एक डाकू ने तान दी बंदूक और छीन लिए उसके मेहनत के रुपये। क्या मनसुख को लौटना पड़ा खाली हाथ? पढ़ें एक रोचक कहानी best Hindi story बल और बुद्धि।
Best Hindi story बल और बुद्धि
भरतपुर गाँव में मनसुख नाम का एक बढ़ई रहता था। बढ़ईगिरी का काम उसने अपने पिता से सीखा था, और उन्होंने अपने पिता से। यानि कि यह उनका पुश्तैनी काम था। वैसे तो उसके पिता और दादा -परदादा बहुत कुशल बढ़ई थे लेकिन उसने उन सब को पीछे छोड़ दिया था।

उसके बराबर का कारीगर आस-पास के दस गांवों में कोई नहीं था। किसी भी कल्पना को साकार रूप देकर एक से बढ़कर एक लकड़ी का फर्नीचर और सामान बना देना उसके बायें हाथ का खेल था।
स्वास्थ्य के प्रति था सचेत
पेशे से तो वह बढ़ई था परन्तु उसका शौक कुछ अलग ही था। उसको कसरत और व्यायाम का बहुत शौक था। कसरत करके उसने अपने शरीर को बहुत मज़बूत और बलिष्ठ बना लिया था। चाहे कुछ भी हो, परन्तु वह रोज व्यायाम करने के अपने नियम को कभी नहीं तोड़ता था।
एक बार पास ही के गांव से वह लकड़ी का सामान बना कर लौट रहा था। रास्ते में घना जंगल पड़ता था । सूर्य भगवान भी अब विश्राम करने को आतुर थे। आसमान में काले बादल छाए हुए थे और बिजली चमक रही थी। किसी भी समय बरसात शुरू हो सकती थी। एक तो सुनसान रास्ता, ऊपर से सांय-सांय चलती हवा ने माहौल को डरावना बना दिया था। मनसुख डरपोक नहीं था परंतु जंगल में कब कौन से जंगली जानवर से सामना हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता था।

ये कौन मिल गया
मनसुख ने काम के मिले पैसों की एक पोटली बगल में दबाई हुई थी और ठंड से बचने के लिए उसने कंबल ओढ़ लिया। वह तेज़ क़दमों से चलते हुए सुनसान रास्ते से गुजरता हुए अपने गांव की ओर बढ़ा जा रहा था। कुछ दूर जाने के बाद अचानक झाड़ियों में से निकल कर एक डाकू उसके सामने आ खड़ा हुआ। डाकू शरीर से तो मनसुख से कमजोर था पर इस समय उसकी ताकत उसके हाथ में पकड़ी हुई बंदूक थी।

मनसुख समझ चुका था कि अभी बल प्रयोग करना ठीक नहीं होगा। उसने अपने शरीर को कुछ अधिक सिकोड़ लिया ताकि उस डाकू को उसके हष्ट-पुष्ट शरीर का अंदाजा न हो पाए।
ड़ाकू ने छीनी मनसुख की कमाई
अब मनसुख ने उसे सामने देखा तो डाकू बोला- 'जो कुछ भी तुम्हारे पास है सभी मुझे दे दो नहीं तो मैं तुम्हें गोली मार दूँगा।' यह सुनकर मनसुख ने पोटली उस डाकू को थमा दी और हाथ जोड़कर चापलूसी भरे स्वर में बोला - मालिक,ठीक है यह रुपये आप रख लीजिए मगर मैं घर पहुँच कर अपनी बीवी को क्या कहूंगा? वो तो यही समझेगी कि मैंने पैसे जुए में उड़ा दिए होंगे। आप कृपया करके मुझ पर एक अहसास कर दीजिए।
मनसुख की विनती
मनसुख को अपने सामने गिड़गिड़ाते देख डाकू घमंड से भर गया और दंभ भरे स्वर में बोला - कहो, क्या चाहते हो?
आप कृपया अपनी इस बंदूक की गोली से मेरी पगड़ी में एक छेद कर दीजिए, ताकि मेरी बीवी को लूट का यकीन हो जाए-मनसुख ने विनती करती।
डाकू ने बड़ी शान से बंदूक से गोली चलाकर मनसुख की पगड़ी में एक छेद कर दिया। अब डाकू जाने लगा तो मनसुख फिर से चिकने-चुपड़े स्वर में बोला - हुजूर, एक काम और कर दीजिए, जिससे मेरी बीवी को यकीन हो जाए कि डाकुओं के दल ने मिलकर मुझे लूटा हो। वरना मेरी बीवी तो मुझे कायर ही समझेगी ना। आप इस कंबल में भी चार-पाँच छेद कर दीजिए। डाकू ने खुशी-खुशी कंबल में गोलियाँ चलाकर छेद कर दिए।

इसके बाद मनसुख ने अपना कोट भी उतार दिया और बोला-इसमें भी एक दो छेद कर ही दीजिए ताकि सभी गॉंव वालों को भी यकीन हो जाए कि मैंने बहुत संघर्ष किया था।
इस पर डाकू झीख कर बोला- अब बस भी कर। इस बंदूक में गोलियां भी खत्म हो गई हैं।
उल्टा पड़ा खेल
यह सुनते ही मनसुख ने अपना कंबल उतार फेंका, आगे बढ़ा और डाकू को दबोच लिया और बोला- यही तो मैं चाहता था। तुम्हारी ताकत सिर्फ ये बंदूक थी। अब ये भी खाली है। अब तुम्हारा कोई जोर मुझ पर नहीं चल सकता है। चुपचाप मेरी पोटली मुझे वापस दे दो वरना...!

ड़ाकू भागा सिर पर रख कर पैर
अब डाकू मनसुख की मज़बूत पकड़ से छूटने के लिए छटपटा रहा था। बंदूक तो पहले ही उसके हाथ से छूट कर गिर चुकी थी और उसकी सिट्टी पिट्टी गुम थी। बाज़ी पूरी तरह से पलट चुकी थी। अब उसने फट से मनसुख की पोटली उसे वापस कर दी और अपनी जान बचाकर वहाँ से भाग गया। मनसुख अपनी मेहनत की कमाई लेकर अपने घर लौट गया।
शिक्षा
बल और बुद्धि के संगम से व्यक्ति बड़ी से बड़ी मुश्किल से बाहर निकल सकता है।
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