
the story Hindi आत्म मंथन
किसकी है यह कहानी?
एक जंगल में एक कबूतर रहता था। फिर जब वह बड़ा हुआ तो उसने एक कबूतरी के साथ मिलकर अपना जीवन शुरू करने की सोची। कबूतरी ने भी उसका प्रस्ताव खुशी से स्वीकार किया ।
क्या करना है आगे?
अब दोनों ने अपने लिए एक घोंसला बनाने का निर्णय लिया। कबूतर ने बड़ी मेहनत से तिनका-तिनका इकट्ठा किया और एक ऊंचे पेड़ की सुरक्षित डाल को घोंसला बनाने के लिए चुना। यहीं नहीं, कबूतर बहुत तरह के सुंदर-सुंदर धागे, पत्ते, टहनियां आदि इकट्ठे करके लाया।
कबूतरी ने बड़ी मेहनत, सुघड़ता और कलात्मकता से एक बहुत ही सुन्दर और आरामदायक घोंसला बनाकर तैयार किया।
घोंसला कैसा बना?
अब जब घोंसला बन कर तैयार हो गया तो दोनों ने उस घोंसले में रहना शुरू किया। परंतु कबूतरी उस घोंसले में असहज महसूस करने लगी।
कारण यह था कि उसे घोंसले में एक अजीब सी बदबू आनी शुरू हो गई थी। कबूतर ने भी यह भांप लिया कि कबूतरी इस घोंसले में आराम महसूस नहीं करती थी। उसने जब कबूतरी से पूछा कि क्या उसे वह घोंसला पसंद नहीं आया? तो उसने उस अनजानी बदबू के बारे में बताया।
कबूतर भी है हैरान
तब कबूतर ने कहा कि हां! महसूस तो मैं भी करता हूं एक तरह की बदबू। अब दोनों ही इस बदबू को महसूस कर रहे थे। इतने प्यार इतनी मेहनत से तिनका-तिनका जोड़कर बनाया हुआ घोंसला अब बहुत बेकार लगने लगा। बदबू कहां से आती है, कबूतर-कबूतरी को पता ही न चल पाया। दिनों-दिन बदबू बढ़ती जा रही थी। अंततः उन्होंने उस घोंसले को छोड़ने का निर्णय किया। और फिर वें उस घोंसले को छोड़ कर उड़ गये।
कहां गए वो दोनों?
अब उन दोनों ने पुराने घोंसले वाली जगह से बहुत दूर एक नये पेड़ का चुनाव किया। फिर से तिनका-तिनका जोड़कर मेहनत से एक नया घोंसला बनाया और उसमे रहना शुरू किया। लेकिन वहां पर भी वही समस्या आ गयी। बदबू आती कहां से है, ये पता नहीं चल रहा था, बस बदबू आ रही थी। और फिर हार कर जब कुछ समझ न आया और बदबू असहनीय हो गई तो हार कर उन्होंने उस घोंसले को भी छोड़ दिया और उड़ गये।
सब्र की परीक्षा
अब उन्होंने बुझे मन से तीसरी जगह फिर से घोंसला बनाना शुरू किया। अब उनमें न तो पहले वाला उत्साह था और न ही हिम्मत। बस रहने के लिए एक कामचलाऊ घोंसला बनाना था तो उन्होंने बनाना शुरू किया। कबूतर ने बहुत सावधानी से बिल्कुल साफ-सुथरी जगह से तिनके इकट्ठे किए। जब घोंसला बन गया तो उन्होंने उसमें रहना शुरू किया।लेकिन उस दमघोंटू बदबू ने यहां भी उनका पीछा नहीं छोड़ा।
किसकी सहायता लेने पहुंचे दोनों?
थक हार कर उन्होंने अपने एक बुजुर्ग चतुर कबूतर से सलाह लेने की सोची और उनके पास जाकर सारी बात बताई। अब चतुर कबूतर उनके घोंसले में गया, आसपास घूमा-फिरा और फिर सारी बात समझ कर हंसने लगा।
कबूतर और कबूतरी उसकी इस प्रतिक्रिया से हैरान-परेशान उसका मुंह देख रहे थे।क्या था सच?
अब उसने हंसना बंद किया और दोनों से बोला, घोंसला बदलने से यह बदबू नहीं जाएगी । बदबू घोंसले में नहीं, तुम्हारे अपने शरीर से आ रही है। जब तुम खुले आसमान में उड़ते रहते हो तो खुली हवा में तुम्हें अपनी बदबू महसूस नहीं होती, मगर घोंसले में घुसते ही तुम्हें यह महसूस होती है, और तुम समझते हो कि बदबू घोंसले से या आस-पास कहीं से आ रही है। चाहे तुम दोनों सौ घोंसले बदल लो, जब तक खुद को नहीं सुधारोगे, समस्या हल नहीं होगी। सबसे पहले खुद को देखो, अपनी खुद की साफ-सफाई करो। फिर तुम्हें यह बदबू नहीं आयेगी।
अंततः हल मिल गया
अब दोनों ने ही यह महसूस किया कि चतुर कबूतर ठीक कह रहा था। अपनी स्वयं की साफ-सफाई के अभाव में दोनों ही के शरीर बदबूदार हो गये थे। फिर उन्होंने रोज़ जंगल के तालाब पर जाकर नहाने का नियम बनाया और उसका पालन भी किया।
फलस्वरूप वे दोनों अब बिल्कुल साफ-सुथरे रहने लगे। और खुशी की बात तो यह थी कि अब उन्हें कोई बदबू भी नहीं आती थी।शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अपने आसपास के माहौल या परिवेश में कमियां निकालने और बदबू ढूंढने के बजाय हम अपने भीतर की कमियों और कमजोरियों और अपवित्रता रूपी विकारों को हटाना चाहिए ताकि यह दुनिया सचमुच खूबसूरत और खुशबूदार हो जाये।
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