
क्या हो अगर यूं ही एक दिन राह चलते आपके सामने एक चुड़ैल आ जाए? कभी-कभी अचानक से न चाहते हुए भी कुछ ऐसा हो जाता है, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। न ही इसके लिए हम किसी और को या खुद को जिम्मेवार ठहरा सकते हैं। पढ़िए एक डरावनी रोमांचक horror story चुड़ैल हमसफ़र।

शाम होने को आई थी। सूरज डूबते डूबते चारों ओर नारंगी रोशनी फैला रहा था। आसमान में काली घटाएं उमड़ घुमड़ कर मौसम को मदमस्त बना रहीं थीं। सौरव दिल्ली से अपने शहर देहरादून लौट रहा था। गाड़ी तेजी से हाईवे पर भाग रही थी। तभी गाड़ी में पीछे की तरफ बैठे सौरभ के दो दोस्तों रवि और मोहित को भूख लगी तो सौरव ने गाड़ी सड़क के किनारे एक रेस्टोरेंट पर रोक दी।

सौरभ एक सक्सेसफुल सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर था। इसके चलते उसे अक्सर दूसरे शहरों में अलग-अलग इवेंट्स के लिए जाना पड़ता था। आज भी वह दिल्ली से एक इवेंट से ही लौट रहा था।
जब तीनों खाना खाकर रेस्टोरेंट से बाहर निकले तो हल्की बूंदा-बांदी शुरू हो गई। रात के नौ बज रहे थे। तीनों गाड़ी में बैठे और हंसी मज़ाक के बीच अपने आगे के सफ़र के लिए निकल पड़े।
अब हल्का पहाड़ी रास्ता शुरू हो चुका था। अभी वे कुछ ही दूर पहुंचे थे कि देखा, सड़क पर एक के पीछे एक गाड़ियां रुकी हुई थी। सिंगल रोड पर रास्ता पूरी तरह से जाम था। पूछताछ की तो पता चला कि आगे सड़क पर कहीं ज़बरदस्त लैंड स्लाइड हुआ था। हालांकि सड़क साफ करने का काम चल रहा था लेकिन सुबह से पहले सड़क खुलने के आसार नहीं थे।

तभी रवि बोला - सौरभ भाई, इससे अच्छा तो पीछे वापिस ले ले। वही ककरोली गांव के रास्ते से चलते हैं। भाई यहां कौन खड़ा रहेगा सारी रात?
तभी मोहित हड़बड़ा कर बोला - अरे नहीं भाई । वह रास्ता तो बहुत सुनसान है। मुझे नहीं जाना उस रास्ते पर। और फिर वो तो पांच किलोमीटर ज्यादा है इस रास्ते से। वहां दिन में नहीं होता कोई बंदा ना बंदे की जात। आज वैसे भी अमावस की रात है।
रवि उसका विरोध करते हुए बोला, 'तो अमावस की रात तुझे क्या कह रही है?' फिर वह कुछ नाटकीय अंदाज में बोला, 'कईं तुझे डर तो नहीं लग रहा?' इतना कह कर वह ठहाका मारकर हंस पड़ा।
सौरभ जो अब तक चुपचाप उन दोनों की बातें सुन रहा था, अब बोला, - अरे भाई, मज़ाक़ छोडो, जल्दी से फैसला करो, क्या करना है? मेरे पीछे अगर गाड़ियां लग गई तो मैं अपनी गाड़ी पीछे मोड़ नहीं पाऊंगा।
रवि फिर से बोला, - अरे भाई, तू मोड़ ले गाड़ी पीछे। रास्ता लंबा है तो क्या, सफ़र में कट जाएगा। वह फिर से मोहित का मज़ाक उड़ाते हुए बोला, - और सुनसान सड़क पे अगर कोई भूत या भूतनी मिल गयी तो ले लेंगे उसका इंटरव्यू। सौरभ भाई को कंटेंट भी मिल जाएगा। इतना कह कर वह फिर से हंसने लगा।
मोहित ने बुरा सा मुंह बनाया और बस इतना ही बोला, 'हर चीज़ मज़ाक नहीं होती।
अब सौरभ रवि को झिड़कते हुए बोला, - अरे यार, मत तंग कर ना उसे। मैं ले रहा हूं गाड़ी पीछे ।
अब वे वापस उसी रास्ते पर जा रहे थे, जहां से आए थे। लगभग तीन चार किलोमीटर के बाद ककरोली गांव का रास्ता आ गया, जहां से होते हुए उन्हें देहरादून पहुंचना था। सौरभ ने गाड़ी उस रास्ते पर मोड़ दी।
कुछ दूर तक तो उस रास्ते पर street light थीं, लेकिन फिर गायब हो गई। सड़क भी बहुत कम चौड़ी थी। मौसम करवट ले रहा था और हल्की बूंदा-बांदी अब तेज़ बारिश में बदल चुकी थी। अब सड़क पर बस गाड़ी की हैडलाइट की रोशनी ही थी। मोहित ने सही कहा था कि वह रास्ता वाकई सुनसान था और सड़क भी काफी टूटी फूटी थी, जिस कारण सौरभ को गाड़ी बहुत धीमी और सावधानी से चलानी पड रही थी।
धीरे धीरे इन तीनों को भी माहोल का डरावनापन महसूस होने लगा। तेज़ बारिश, कड़कती बिजली, घनघोर अंधेरा और सड़क के किनारे खड़े लंबे लंबे पेड़ जो कि तेज़ हवा के कारण भयानक शोर करते हुए हिल रहे थे, सभी कुछ बहुत डरा देने वाला था।
गाड़ी में चुप्पी पसरी हुई थी। तभी गाड़ी की हैडलाइट की रोशनी में कुछ दूरी पर सड़क के किनारे एक औरत छतरी पकड़े खड़ी दिखाई थी, जो हाथ हिलाकर गाड़ी रोकने का इशारा कर रही थी।
गाड़ी कुछ पास पहुंची तो वह कुछ और साफ़ नज़र आने लगी। आखिर वह सड़क के बीच में ही आकर खड़ी हो गई तो सौरभ को ब्रेक लगानी ही पड़ी।
वो एक बेहद खूबसूरत महिला थी। उम्र लगभग छब्बिस सत्ताइस के आसपास की होगी। उसने बहुत ही सलीके और सभ्यता पूर्ण तरीके से काले रंग की साड़ी पहनी हुई थी। खुले बाल कंधे पर लहरा रहे थे।

अब वो चलती हुई गाड़ी के पास आकर खड़ी हो गई और कुछ झुककर गाड़ी की खिड़की से झांक कर बहुत ही विनम्र स्वर में बोली, - sorry, इस तरह से आपको रोकने के लिए, लेकिन मेरी गाड़ी खराब हो गई है। Please क्या आप मुझे lift दे सकते हैं?
अब ये तीनों ही एकदम चुप बैठे थे। यूं अचानक से किसी महिला का सुनसान सड़क पर इस तरह से लिफ्ट मांगना बहुत ही अप्रत्याशित था। वो फिर से तीनों की तरफ बारी-बारी देख कर बोली, - please help me.
अब सौरभ कुछ हिचकिचा कर बोला, वो... हम तो देहरादून जा रहें हैं।
आगे से वह फटाफट से बोली, 'हां! मुझे वहीं तक छोड़ दीजिए प्लीज'।
उसकी आवाज में एक अजीब सी कशिश थी और उसका व्यक्तित्व इतना आकर्षक था कि वह तीनों को अपनी ओर खींच रहा था।

तब सौरभ बोला, - अच्छा ठीक है,आ जाइए।
तब वह तत्परता से बोली, - तो ठीक है, मैं गाड़ी से अपना बैग लेकर आती हूं।
वो गई तो मोहित एकदम बोला, - यार सौरभ, ये तो वही बात हुई, न जान न पहचान, मैं तेरा मेहमान । मना कर दे भाई। ऐसा ना हो किसी मुसीबत में ना पड़ जाए हम।
अब रवि ने भी कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि वह सामने से चलती हुई आ गई और बेहिचक गाड़ी की आगे वाली सीट पर आकर बैठ गई।
यह तो साफ ही था के तीनों में से कोई भी उसके इस तरह से अचानक आ जाने से खुश नहीं था। लेकिन सब कुछ इतनी जल्दी और अप्रत्याशित ढंग से हुआ कि ना चाहते हुए भी आखिर एक अनजान औरत बन गई उन तीनों की हमसफ़र।
वो गाड़ी में जैसे ही बैठी, पूरी गाड़ी उसके लगाए हुए परफ्यूम की खुशबू से भर गई।ऐसा लग रहा था मानो वह परफ्यूम की पूरी bottle ही अपने ऊपर पलट कर आ गई थी।
अब सौरभ ने एक औपचारिक मुस्कान के साथ गाड़ी चला दी। गाड़ी अभी कुछ ही दूर गई थी कि रवि उस औरत से बोला, - मैम आप की गाड़ी......मेरा मतलब है...आप यूं ही उसे सड़क पे छोड़ आईं... कहीं चोरी वोरी हो गयी तो?
बदले में वह बहुत ही रूखे स्वर में बोली, 'तुम उसकी चिंता मत करो।'
तीनों को ही उसका इस तरह से रुखा सा जवाब देना अच्छा नहीं लगा। उसके स्वर में घुली मिठास तो गधे के सर से सींग की तरह गायब हो गई थी।
उसके बाद एक लंबी चुप्पी गाड़ी में पसर गई।
अब सौरभ को प्यास लगी तो उसने अपनी पानी की बोतल उठाई। पानी पीने से पहले उसने उस महिला से पूछा, 'क्या आप पानी पिएगीं?'
उसे महिला ने बिना सौरभ की तरफ देखे एक गुस्से भरी चिल्लाती हुई आवाज में कहां, 'नहीं!'
तीनों ही उसके इस लहज़े और जवाब से भौंचक्के रह गए।क्योंकि यह उसकी आवाज नहीं थी। यह एक बहुत ही खरखराहट भरी भारी और भयानक आवाज़ थी।
अब माहौल भारी होने लगा। जो बदलाव अब होने शुरू हुए, उसे उन तीनों ने हीं महसूस किया। उस महिला की परफ्यूम की खुशबू बिल्कुल गायब हो चुकी थी और अब पूरी गाड़ी में एक अजीब सी दुर्गंध फैलनी शुरू हो गई।
सौरभ का ध्यान वैसे तो सड़क पर था, भारी बारिश में उस टूटी फूटी सड़क पर driving करना आसान नहीं था।।लेकिन बीच-बीच में वह कनखियों से उसे भी देख रहा था। पहले तो वह सामने सड़क की ओर देख रही थी, लेकिन अब धीरे-धीरे उसने अपना सिर नीचे को झुका लिया था।
पीछे बैठे मोहित और रवि ने भी उसमें हुए बदलावों को महसूस कर लिया था। उनका भी डर के मारे बुरा हाल था। उन दोनों में से कोई बोलने की हालत में नही था। दोनों ने एक-दूसरे का हाथ कस के पकड़ लिया था।
जितनी बार भी सौरभ उस औरत की तरफ देखता, वह उसमें कुछ ना कुछ बदलाव पाता था। उसके stylish haircut वाले बाल अब बालों के गुच्छे में बदल चुके थे और उसका चेहरा उन बालों में छिपा हुआ था।

तभी सौरव ने गाड़ी की हेडलाइट की रोशनी में सड़क पर एक बोर्ड देखा जिस पर लिखा था, 'श्री बाला जी धाम सीमा प्रारंभ'।
उस सीमा में गाड़ी के घुसते ही वह औरत बहुत बेचैनी महसूस करने लगी। उसके गले से एक अजीब सी गुर्राहट निकल रही थी। तभी सौरभ को उसके पैरों के पास कुछ सरसराहट महसूस हुई तो उसने नीचे देखा। उसे औरत के पर धीरे-धीरे उल्टे हो रहे थे। अब यह पक्का हो चुका था कि वह एक चुड़ैल ही थी।
उसके प्राण हलक में अटक गए। गाड़ी धीरे धीरे चलते हुए 'श्री बाला जी धाम ' की तरफ बढ़ रही थी और अब सड़क पर बायीं तरफ कोई छोटे सा मंदिर की आकृति उभरने लगी। सौरभ ने अपनी सारी हिम्मत और इच्छा शक्ति इकट्ठी की और धीरे-धीरे अपना पैर ब्रेक पर रख दिया।
उसके ऐसा करते ही मानो वह चुड़ैल समझ गई कि सौरभ क्या करना चाह रहा है। उसने सौरभ की तरफ मुंह किया और भयानक आवाज़ में चिल्लाई, - मत रोक। गाड़ी मत रोक। इस मंदिर से पार करवा। मेरी मुक्ति की रात है आज। चली जाऊंगी। मैं चली जाऊंगी।

मोहित और रवि ने डर के मारे अपने घुटनों में अपना मुंह छिपा लिया। वो इस बात को जानकर ही मरने की हालत में पहुंच चुके थे कि वो औरत एक चुड़ैल है। उसकी शक्ल देखने की हिम्मत उनमें नहीं थी।
लेकिन सौरभ उसकी भयानक शक्ल देख कर मानो पत्थर हो गया और उसका हाथ driving wheel से हट गया और गाड़ी imbalance हो गई। अब driving wheel पर उस चुड़ैल का एक हाथ था। सौरभ का पैर accelerator पर था। उसका भयानक हाथ अब गाड़ी control कर रहा था।
मंदिर पीछे छूट गया। जैसे ही वह पीछे छूटा, वह चुड़ैल चलती गाड़ी में से अपनी सीट से गायब हो गई। सौरभ ने देख लिया कि वो अब गाड़ी में नहीं है तो उसने तेज़ी से गाड़ी संभाली और ब्रेक लगा दी। गाड़ी बीच सड़क पर रुक गई।
सौरभ अपने दोस्तों की तरफ़ मुडा और चिल्लाया, - निकलो बाहर।
अब वे तीनों बाहर निकले। रवि और मोहित ने फिर से एक दूसरे का हाथ पकड़ लिया। सौरभ ने मोहित का दूसरा हाथ पकड़ा और वह चिल्लाया, उस मंदिर में चलो।' इतना कह कर वह उन दोनों को खींचता हुआ सड़क पर गिरता पड़ता विपरीत दिशा में भागने लगा।
तीनों को ही मंदिर नज़र आ गया। वे अंधाधुंध मंदिर की तरफ भागे। यह एक छोटा सा पुराना मंदिर था। मंदिर के प्रांगण में एक धुंधली सी लाइट लगी हुई थी, जो कि किस्मत से जल रही थी। तीनों ने हड़बड़ाहट में अपने पैरों की मदद से ही बिना छुए अपने जूते उतारे और मंदिर के प्रांगण में घुसते चले गए।

यह केवल एक ही गर्भ गृह वाला छोटा सा धाम था। वे दौड़ कर मंदिर के गर्भ गृह में पहुंच गए और धड़ाम से फर्श पर लुढ़क गए। अब वे तीनों बेहोश थे।
सौरभ को होश आया तो उसने लंबी सफेद दाढ़ी वाले एक बूढ़े आदमी को अपने चेहरे के पास पाया। डर के मारे उसके मुंह से चीख निकल गई। और वह झटके से उठ कर रेंगता हुआ पीछे को हो गया।
उसकी ऐसी प्रतिक्रिया देखकर वह बूढ़ा आदमी एकदम से बोला, - अरे बेटा, डरो नहीं। मैं इस मंदिर का पुजारी हूं।
फिर रवि और मोहित को भी होश आ गया। तीनों अभी भी बेहद डरे हुए थे। जब वे कुछ सामान्य हुए तो उन्होंने पुजारी जी को पिछली रात की सारी आप बीती सुनाई।
तब पुजारी जी एक गहरी सांस लेते हुए बोले, - तुम तीनों किस्मत वाले हो कि जिंदा बैठे हो। यहां के आसपास के गांव के लोग तो इस रक्त पिपासु पिशाचिनी के बारे में जानते हैं। दोपहर के बाद कोई इस सड़क पर फटकता भी नहीं। लेकिन अगर तुम जैसे कोई भूले भटके इस सड़क पर से गुजरे, तो वो जिंदा यहां से लौट कर नहीं गए। उनके शरीर से खून का एक-एक कतरा तक उस पिशाचिनी ने चूस लिया और हमेशा उनकी लाशें ही मिली।

फिर कुछ रुक कर वे बोले,- लेकिन वो सारी घटनाएं हमारे इस मंदिर की सीमा से पहले पहले ही हुई। यह पहली बार ही हुआ है कि उसने किसी का सहारा लेकर मंदिर की सीमा को पार किया और जिंदा भी छोड़ दिया। वरना वो आज तक सीमा में प्रवेश करने की हिम्मत नहीं कर सकी। शायद सालों भटकने के बाद कल रात उसको मुक्ति मिली है। चलो, अब शायद इस सड़क पर लगा अभिशाप खत्म हो जाए।
छः महीने बाद
उस घटना का तीनों दोस्तों पर बहुत गहरा असर पड़ा। रवि और मोहित तो कुछ समय बाद सामान्य हो गए लेकिन सौरभ सामान्य न हो सका। हमेशा डरा हुआ रहता। बेवजह चीखने चिल्लाने लगता। कभी तोड़ फोड़ करने लगता। कभी बहुत दिनों तक बिल्कुल गुम सुम हो जाता तो कभी बहुत violent हो जाता।

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