एक छोटी सी लड़की। दुनिया की ऊंच- नीच से अनजान परियों की कहानियां सुनती, खुश हो जाती कि एक दिन कोई परी उससे मिलने भी आएगी। फिर वह लड़की धीरे धीरे बड़ी हुई। परी तो नहीं आई लेकिन.....वह लड़की..... खुद एक परी बन गई। Motivational Story In Hindi - Nancy Tyagi
Motivational Story In Hindi - Nancy Tyagi
वह एक साधारण सी लड़की थी। भारत के उत्तर-प्रदेश के बागपत नामक शहर के एक तहसील बरनावा में 2001में इनका जन्म हुआ। इनकी माता जी श्री मति माया एक प्राथमिक स्कूल में साधारण सी शिक्षिका थी। घर की आर्थिक हालात कुछ ज्यादा अच्छी नहीं थी। बस गुजारा चल रहा था।
नैंसी का साधारण जीवन
नैंसी अन्य साधारण लड़कियों की तरह ही स्कूल जाती थी। घर आती तो जब अपनी गुड़िया से खेलती, तो एक बार उसके मन में यह विचार आया कि क्यों न मैं अपनी गुड़िया के लिए सुंदर से कपड़े बनाऊं? बचे-खुचे कपड़ों से जब अपनी गुड़िया के कपड़े बनाएं तो वे इतने सुन्दर बने कि सबने उसकी तारीफ की। कौन कह सकता था कि गुड़िया के वो कपड़े केवल एक छोटी बच्ची का शौक नहीं था बल्कि यह तो शुरुआत थी एक सफलता भरे सफर की।
कहने को तो वह केवल अपनी गुड़िया के कपड़े बना रही थी लेकिन वह खुद भी नहीं जानती थी कि नियति आने वाले समय के लिए उसके हाथों में वो कलम पकड़ा रही थी, जिससे वो खुद अपनी तकदीर लिख लेगी।
नियति की तरफ
समय बीतता गया और नैंसी ने बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण कर ली। UPSE करने के सपने के साथ वह दिल्ली आ गई। पिता ने बहुत मुश्किल से उसकी पढ़ाई के लिए पैसे जोड़ कर उसे दिए। परंतु कोरोना महामारी के चलते और अन्य भी कुछ कारण रहें होंगे, उसका UPSE करने का सपना पूरा न हो सका।
संघर्ष
अब आगे क्या किया जाए, यह सवाल था। यह तो स्पष्ट ही है कि बहुत मुश्किल से जमा किए हुए पैसे भी खत्म हो गये और UPSE भी न हो सका तो नैंसी और उनका परिवार किस मानसिक यातना, दुःख और संताप से गुजरा होगा, उसे शब्दों में बता पाना असम्भव है। उनकी माता की नौकरी भी नहीं रही थी और अब वे कोई अन्य साधारण सी नौकरी कर रहीं थीं, जो उनके अनुकूल नहीं थी।
बदला हुआ रास्ता
फिर नैंसी ने YouTube का रुख किया और वहीं बचे-खुचे कपड़ों से सुंदर कपड़े सिल सिलकर उनकी विडियो डालीं। हालांकि यह सब इतना आसान नहीं था बल्कि यह तो एक प्रयोग था। क्योंकि वो youtube पर सफल हो ही जाएगी यह कोई निश्चित नहीं था। कुछ लोगों ने उनके इस काम को सराहा और कुछ ने अपनी आलोचनाओं से उनका मनोबल तोड़ने का भरसक प्रयास किया।
कपड़े को खरीदना, काटना, सिलना, सब काम वह खुद ही करती। हालांकि अभी भी उन्हें अपने संसाधन जुटाने के लिए संघर्ष करना पड़ता था। कपड़ा सिलने के लिए उनके पास अपनी मां की एक पुरानी सिलाई मशीन थी, जिससे उन्होंने इतिहास रच डाला।
सफलता ने चूमे कदम

आज वें अपनी एक अमिट पहचान बना चुकी हैं। आर्थिक रूप से पूरी तरह सक्षम हैं। संघर्ष की काली रात बीत गई है और आने वाली हर सुबह सफलता का एक नया अध्याय है।
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