कहानी असली सबक - बिगड़ैल अमीर लड़का बना दयालु

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एक ऐसा बिगड़ैल अमीर लड़का, जो अपने आगे किसी को भी कुछ नहीं समझता था। लेकिन फिर कुछ ऐसा घटित हुआ कि उसे मिला एक जीवन का असली सबक। देखिए hindi story असली सबक।

hindi story असली सबक

बिगड़ैल अमीर लड़का बना दयालु

यह कहानी एक ऐसे लड़के रजत की है जो अमीर पिता की बिगड़ी हुई सन्तान था। दया, मानवता जैसे गुण उससे कोसों दूर थे। रजत के घर से दूर एक ईच्छा पूर्ति फव्वारा था। लोग उसमें एक सिक्का डालकर अपनी इच्छा मांगते थे। एक दिन रजत वहां घूमने गया। वहां पहुंचकर वह अपने महंगे फोन से तस्वीरें लेने लगा।


वहां फव्वारे की मुंडेर पर एक बूढ़ा फकीर बैठा था। उसके पास जमीन पर एक कटोरा पड़ा था, जिसमें कुछ सिक्के थे। रजत को अचानक एक शरारत सूझी। उसने फकीर का वह कटोरा उठाया और उसे फव्वारे में पलट दिया। फकीर उसकी इस हरकत से एकदम हैरान और दुखी हो गया। जबकि रजत हंसते हुए फकीर की तस्वीरें लेने लगा।


जब फकीर ने रजत से पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया तो रजत ने कहा, - क्यों कि एक फकीर बेचारा कैसे दिखता है, मुझे वह तस्वीर चाहिए थी। यह कह कर वह फिर हंसने लगा। फिर रजत फकीर को चिढ़ाते हुए बोला, - अरे जाओ,पानी में से अपने सिक्के तो निकाल लो।


इस पर फकीर बोला, - कोई फायदा नहीं। मैं नहीं जानता मेरे कटोरे में कितने सिक्के थे। वहां पानी में और भी सिक्के पड़े हैं। मैं किसी और के सिक्के नहीं ले सकता।


अब फकीर फिर से फव्वारे की मुंडेर पर आकर बैठ गये। रजत की अगली शरारत यह थी कि उसने जब से एक सौ का नोट निकाला और फकीर की ओर बढ़ाया। जब फकीर ने उस नोट को लेने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया तो रजत ने वह नोट बुरी तरह मसल कर पास ही उगी कांटेदार झाड़ियों मे फेंक दिया। उसकी इस हरकत से फकीर बहुत ज्यादा दुखी और हैरान था, लेकिन रजत फकीर के परेशानी वाले हाव-भाव की तस्वीरें ले रहा था और हंस रहा था।


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इस तरह रजत उस फकीर का मजाक उड़ाता हुआ आगे बढ़ गया। तभी कोई राहगीर फकीर के कटोरे में एक सिक्का डाल गया। फकीर ने वह सिक्का उठाया और रजत के लिए एक इच्छा मांगी और बोले,- ईश्वर तुम्हें अक्ल दें और तुम्हें इस जीवन के होने का अर्थ समझाएं। इतना कहकर फकीर ने वह सिक्का फव्वारे में उछाल दिया।


उधर रजत मस्ती भरा दिन गुजार कर शाम को अपने घर लौटा‌। अपने शानदार बंगले में घुसने लगा तो गेट पर खड़े दरबान ने कहा, - ऐं! कौन हो तुम? किसने मिलना है? रजत एकदम गुस्से से भर गया कि उसका ही नौकर एक मामूली सा दरबान उससे कैसे बात कर रहा है। रजत बोला, - तुम्हें शायद अब इस नौकरी की जरूरत नहीं रही। हटो। गेट खोलो।


लेकिन दरबार ने गेट नहीं खोला और उसका हाथ पकड़ कर उसे गेट से दूर धकेल दिया और बोला , -जाओ यहां से! तुम जैसे भिखारी अंदर न घुसने पाए, इसीलिए मैं यहां खड़ा हूं।
रजत अभी कुछ और कहता, इससे पहले एक बड़ी सी गाड़ी बंगले के गेट पर आकर रुकी। उसमें से एक आदमी निकला और दरबार से बोला, - रमेश ! क्या हो रहा है यहां पर?


वह रजत के पापा थे। रजत फुर्ती से अपने पापा की ओर लपका और बोला, - पापा, यह बदतमीज दरबान मुझे अंदर नहीं जाने दे रहा है और इसने मुझे भिखारी भी कहा। आप आज ही इसे नौकरी से निकाल दीजिए।
रजत के पापा ने रजत की ओर एक नजर देखा और फिर दरबान से पूछा, - कौन है यह?


अब हैरान होने की बारी रजत की थी। वह बोला, - पापा, मज़ाक मत कीजिए। मैं थका हुआ हूं और भूख भी बहुत लगी है। चलिए अंदर चलते हैं। इतना कह कर उसने अंदर की ओर कदम बढ़ाया लेकिन तभी उसके पापा ने दरबान से कहा, रमेश रोको इसे। कुछ पैसे और खाना देकर भेजो यहां से। कोई पागल लगता है।

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रजत उन सभी के इस अनपेक्षित व्यवहार से हैरान परेशान था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि कोई उसे पहचान क्यों नहीं रहा था? तभी उसकी नज़र दरबान के केबिन के दरवाज़े पर पड़ी। उस दरवाज़े पर लगे शीशे में रजत को अपनी एक झलक मिली तो वह हैरान रह गया।


बिखरे बाल, चेहरे पर जगह-जगह धूल । वह घबरा कर पीछे हटा। क्या यह वास्तव में उसी का चेहरा था? अब उसने अपने कपड़ों पर नजर डाली। फटे मैले कुचैले कपड़े, फटे जूते और हाथ पैर भी मैले और मिट्टी से सने थे। वह एक भिखारी ही बन चुका था।


वह वहीं सड़क के किनारे बैठ गया और पगलाया सा बड़बड़ाने लगा, - ये क्या हो गया? ये मुझे क्या हो गया। फिर सोचने लगा तो उसे वह बूढ़ा फकीर याद आया। जरूर यह उसी का श्राप है। वह भाग कर फव्वारे के पास पहुंचा। लेकिन वहां कोई फकीर नहीं था। इधर-उधर ढूंढा तो भी कोई नहीं मिला। हार कर वह वहीं ज़मीन पर फव्वारे की मुंडेर का सहारा लेकर बैठ गया और रोने लगा। रात हो चुकी थी। रोते-रोते रजत वहीं ज़मीन पर सो गया।


सुबह नींद खुली तो रजत ने इधर उधर देखा। देखा तो वह फकीर फव्वारे की मुंडेर पर बैठा था। रजत दौड़ कर फकीर के पास पहुंचा और उनके पैरों में गिर पड़ा। वह बार-बार फकीर से माफी मांग रहा था और कह रहा था, - मुझे मेरा पुराना जीवन वापिस कर दो।


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तब फकीर ने कहा - केवल एक ही परिस्थिती में तुम्हें तुम्हारा पुराना जीवन वापिस मिल सकता है। अगर तुम मुझे वह नोट ला कर दो, जो तुमने कल फेंक दिया था।


रजत पागलों की तरह झाड़ियों की तरफ लपका, जहां उसने कल वह नोट फेंका था। बहुत ढूंढने पर भी उसे वह नोट नहीं मिला। नोट ढूंढते ढूंढते वह उस जगह से काफी दूर निकल आया। तभी उसे एक कंटीली झाड़ी में अटका हुआ अपना वह नोट नज़र आया। संयोग से उसी समय एक गरीब औरत को भी वह नोट दिख गया। लेकिन इससे पहले कि वह औरत वह नोट उठा पाती, रजत ने झपटकर वह नोट उठा लिया।


वह गरीब औरत रजत से मिन्नत करने लगी कि उसका बच्चा भूखा है, इसलिए वह नोट उस को दे दे। रजत ने पहले तो नोट देने से मना कर दिया। लेकिन फिर उस औरत की बेचारगी देखकर रजत को उस पर तरस आ गया और उसने वह नोट उस औरत को दे दिया। अब वह भारी कदमों से चलता हुआ वापिस उस फकीर के पास आकर बैठ गया। फकीर ने पूछा, - क्या हुआ? मिला क्या वह नोट?


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नहीं ! नहीं मिला ! लगता है मुझे अब शेष सारा जीवन इसी तरह सड़कों पर भटकते हुए बिताना पड़ेगा।- रजत निराश होकर बोला।


तब फकीर ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, - सब ठीक हो जाएगा। जाओ, फव्वारे के पानी से अपना मुंह धो लो।

रजत जैसे ही पानी की और मुड़ा, अपनी शक्ल पानी में देखकर हैरान रह गया। वह वही पुराना रजत था। उसके हाथ पैर सब साफ सुथरे थे। कपड़े जूते नए नकोर। वह फकीर के पैरों में गिर गया और बोला, -लेकिन नोट तो मैं ला नहीं पाया?
तब फकीर ने मुस्कुराते हुए कहा, - तुमने अपना नोट जिस औरत को दिया, यह उसी औरत की दुआओं का असर है।


रजत यह तो जान चुका था कि वह फकीर कोई साधारण फकीर नहीं हैं। उसने फकीर से पूछा, - आप इस तरह यहां क्या कर रहे हैं? जबकि यह चंद सिक्के, जो लोग आपको दे जाते हैं, इनकी आपको कोई आवश्यकता नहीं है। आप चलिए मेरे साथ।


इस पर फकीर हंसते हुए बोले, -भटके हुओं को राह दिखाता हूं। मैं चला गया तो यह काम रुक जाएगा। तभी दूर से रजत के पापा की आवाज आई, जो उसे ढूंढते हुए वहां आ गए थे।वह बोले, - रजत कहां हो तुम? मैं सुबह से घर पर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं। रजत अपने पिताजी की तरफ लपका और उनके गले लग गया । पापा हैरान थे। वे रजत से पूछने लगे - अरे! अरे! क्या हुआ? रजत अपनी गीली आंखें पोंछता हुआ बोला , - कुछ नहीं। आईए, आपको किसी से मिलवाता हूं। यह कहकर वह पलटा तो वहां कोई नहीं था।


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रजत किंकर्तव्यविमूढ़ सा इधर उधर देख रहा था जबकि पापा अपनी ही धुन में बोले चले जा रहे थे - अरे जल्दी चलो। तुम भूल गए, आज तुम्हारी नई गाड़ी की डिलीवरी लेने जाना है?
इस पर रजत बोला, - नहीं पापा। मैं पुरानी गाड़ियों से से भी काम चला सकता हूं । नई गाड़ी की जरूरत नहीं है। हम उस पैसे से उन इंसानों की मदद कर सकते हैं, जिन्हें उनकी जरूरत है।


सच है, इस संसार में किसी के पास इतना पैसा है कि खर्च करने के लिए जगह नहीं है और किसी के पास दो वक्त की रोटी के लिए भी पैसे नहीं है।
हमें यह समझना चाहिए कि ईश्वर ने हमें यदि पैसा दिया है तो वह केवल अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नहीं है, बल्कि हमें एक साधन भी बनाया है कि हम उस पैसे से दूसरों की मदद कर सकें।


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रजत अपने पापा के साथ घर लौट गया। रजत के पापा नहीं जानते थे कि वे जिस रजत को ले जा रहे थे, वह पहले वाला रजत नहीं था, बल्कि एक नया रजत था, जो दया सद्भावना सहानुभूति जैसे गुणों को अपना चुका था।

और वे फकीर वहां से जा चुके थे, किसी और भटके हुए को सही राह दिखाने के लिए।


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