
शीशा: रहस्य का पहला प्रतिबिंब (भाग 1)
रमोला — परंपरा और आधुनिकता के बीच
रमोला नए विचारों वाली लेकिन संस्कारों और रीति रिवाजों का आदर करने वाली और उन में विश्वास रखने वाली एक आधुनिक प्रोढा , अपने आधुनिक घर के ड्राइंगरुम मैं बैठकर अखबार पढ़ रही थी कि तभी डोर बेल बजी।

दरवाजा खुला तो रमोला की बहू रजनी और बेटा सुनील आए। रजनी बहुत खुश हैं। उसे पुरानी एंटीक चीजें इकट्ठी करने का शौक है। रजनी अपनी सास रमोला को एक आइना दिखाती है जो कि वह खरीद कर लाई है। आईना आदमकद है और पुराने समय का लगता है और एंटीक है। देखने में कुछ विचित्र भी है, आईने के आसपास पीतल का फ्रेम है, जिस पर ना समझ आने वाली कुछ विचित्र आकृतियां बनी हुई है।
रजनी बहुत खुश और उत्साहित होकर वह आइना रमोला को दिखाती है, देखिए मम्मीजी, यह कितना शानदार है! बिल्कुल राजघरानों जैसा लगता है ना?
लेकिन रमोला को को पहली ही नजर में वह आइना कुछ अजीब लगता है।
रमोला यह मानती थी कि हमें कभी भी किसी और की इस्तेमाल की हुई चीजों को प्रयोग नहीं करना चाहिए। खासकर ऐसे लोगों की चीजों को जो अब इस दुनिया में नहीं है।
वह मानती थी कि हर व्यक्ति की कुछ चीजों से खास आत्मीयता होती है। उन लोगों की चीजों को इस्तेमाल करके हम जाने अनजाने उन मृत लोगों को अपनी ओर खींच लेते हैं। वह हमेशा मानती थी कि पुरानी चीजों में सिर्फ सौंदर्य नहीं, ऊर्जा भी छुपी होती है – अच्छी भी और बुरी भी।
लेकिन प्रत्यक्ष में बहू की इच्छा के सामने रमोला ने कुछ नहीं कहा।
वह शीशा रजनी ने खुशी खुशी अपने बेडरूम में लगवा लिया।
शीशे के सामने बदलती रजनी
कुछ दिन बीते।

समारोह और गायब रजनी
एक दिन रमोला और रजनी को एक समारोह में शामिल होने जाना था, रमोला तैयार हो कर जब रजनी के कमरे में आई तो, रजनी अभी तैयार नहीं थी। वह उसी शीशे के सामने खड़ी अपने बाल बना रही थी और अपने मेकअप का मुआयना कर रही थी।
रमोला यह कह कर उसके कमरे से निकल गई कि पहले ही काफी देर हो चुकी है, तुम जल्दी से जल्दी आ जाना, मैं चलती हूं। रजनी ने भी हामी भर दी।

रमोला समारोह में पहुंची लेकिन बहुत इंतजार करने के बाद भी रजनी वहां नहीं पहुंची। रमोला ने बहुत फोन किये लेकिन रजनी ने अपना मोबाइल नहीं उठाया। संयोग से उस दिन घर का नौकर भी छुट्टी पर था।
कमरे का खौफनाक मंजर
रमोला समारोह बीच में ही छोड़ कर घर को निकल पड़ी। घर आकर लगभग दौड़ती हुई रजनी के कमरे में आई तो वहां का दृश्य देखकर हैरान रह गई।

रमोला ने रजनी को पकड़ कर झकझोरा तो मानो वह होश में आई। उसने रमोला की ओर असमंजस भरी नजरों से देखा मानो समझ न पा रही हो कि क्यों रमोला उसे इस तरह से झकझोर रही थी। फिर अचानक वह बेहोश होकर रमोला की बाहों में झूल गई।
रमोला का निर्णय
एक तो पहले से ही रमोला को वह शीशा पसंद नहीं आया था, उस पर रजनी का बदलता हुआ व्यवहार भी वह देख रही थी। और अब जब यह घटना हुई तो उसको पक्का यकीन हो गया कि इस शीशे में जरूर कोई ना कोई गड़बड़ है। उसने यह निर्णय लिया कि यह शीशा अब इस घर में नहीं रहेगा। लेकिन अगले दिन जब नौकर शीशे को लेने उस कमरे में गए तो रजनी के विरोध के कारण वह शीशा वहां से ना निकला जा सका।
शीशे की रात
रात को जब सब सो रहे थे, रमोला को रजनी की धीरे-धीरे बात करने की आवाज़ें सुनाई दीं। वह दबे पाँव रजनी के कमरे तक गई... दरवाज़ा आधा खुला था...रजनी शीशे के सामने बैठी थी... और ऐसा लग रहा था मानो वह शीशे के सामने बैठी किसी से बात कर रही हो। हालांकि वह क्या बात कर रही थी, वह तो सुनाई नहीं दे रहा था। परंतु उसके हाव-भाव ऐसे थे मानो उसके सामने वह शीशा नहीं बल्कि कोई इंसान बैठा है जिससे वह बड़ी ही आत्मीयता से बातें कर रही थी।

रमोला की सांसें थम गईं। यह बात पक्की हो चुकी थी और यह बात अब उसकी समझ में आ गई थी कि उस शीशे ने रजनी को पूरी तरह से अपने वश में कर लिया है।
कहानी अभी जारी है।
क्या वह शीशा सचमुच शापित है?
रजनी के मन और आत्मा पर किसका कब्ज़ा हो चुका है?
रमोला क्या कर पाएगी कुछ, या खुद भी फँस जाएगी इस रहस्यमय जाल में?
जानिए अगले भाग में —
"शीशा: आत्मा का दूसरा प्रतिबिंब (भाग 2)"
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