
प्राचीन काल की कथाओं में ऐसे कई रहस्य छिपे हैं, जो आज भी हमें हैरानी में डाल देते हैं। एक ऐसी ही पौराणिक हिंदी स्टोरी है भगवान श्रीकृष्ण के मोर मुकुट से जुड़ी, जो न सिर्फ उनके सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि उनके पिछले अवतार की एक मार्मिक याद भी समेटे हुए है।

क्या आप जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण सदैव सिर पर मोरपंख क्यों धारण करते हैं? यह रहस्य सिर्फ उनकी शोभा तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके पिछले जन्म की एक गूढ़ और भावुक कथा में छिपा है।
यह कृष्ण मोरपंख कथा एक ऐसी पौराणिक प्रेरणादायक हिंदी स्टोरी है, जो त्याग, भक्ति और वचन की मर्यादा को उजागर करती है।
कृष्ण मोरपंख कथा — जब भगवान राम ने दिया वचन और श्रीकृष्ण ने निभाया
वनवास का वह प्यासा दिन — भगवान राम की कहानी
यह उस समय की बात है जब भगवान राम माता सीता और लक्ष्मण के साथ वनवास पर थे। एक दोपहर माता सीता को अत्यधिक प्यास लगी। चारों ओर सूखा जंगल था, जल का कहीं नामोनिशान नहीं। भगवान राम ने नेत्र बंद कर वन देवता से जल के स्रोत की दिशा जानने की प्रार्थना की।

उसी समय एक सुंदर मयूर उनकी ओर आया और बोला, - प्रभु! थोड़ी दूरी पर एक जलाशय है, मैं आपको वहाँ तक ले चलूँगा। परंतु एक शंका है।
मयूर ने विनम्रता से कहा, - मैं उड़ता हुआ मार्ग दिखाऊँगा, परंतु आपके चलने की गति अलग होगी। मार्ग में मैं अपने पंख गिराता जाऊँगा, जिससे आप भटकें नहीं।
यह सुनकर भगवान राम मुस्कुरा दिए। लेकिन मयूर की यह भेंट साधारण नहीं थी। मयूरों के पंख विशेष ऋतु में ही गिरते हैं, और यदि वे अपनी इच्छा के विरुद्ध पंख बिखेरें तो उनके प्राण संकट में पड़ जाते हैं। परंतु वह मयूर बिना अपनी चिंता किए प्रभु को जलाशय तक ले गया।
उस मयूर ने त्याग की चरम सीमा दिखाते हुए श्री राम को जलाशय तक पहुँचाया। जब राम लौटे तो पाया कि वह मयूर अंतिम सांसें गिन रहा था। श्री राम उसके प्रेम और त्याग से अभिभूत होकर उसके पास बैठे तो वह प्रभु श्री राम से बोला - मैं कितना सौभाग्यशाली हूँ जो जगत की प्यास बुझाने वाले प्रभु की प्यास बुझाने का अवसर मुझे मिला। मेरा जीवन सफल हो गया।

यह क्षण "भक्ति की चरम सीमा" का प्रमाण था।
श्री राम की आँखें नम हो गईं। उन्होंने मयूर को वचन दिया, - वत्स! तुमने जो त्याग किया, वह अमूल्य है। मैं तुम्हारा यह ऋण अगले जन्म में अवश्य चुकाऊँगा।
श्रीकृष्ण का वादा निभाना — मोरपंख की कहानी
समय बीता... त्रेता युग से द्वापर युग आया।
भगवान राम ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया — वही जो बांसुरी बजाते थे,ग्वालों में लीला करते थे, बंसी बजाते थे, राधा संग रास रचाते थे, और सिर पर मोरपंख मुकुट धारण करते थे।

यह मोरपंख का मुकुट कोई साधारण श्रृंगार नहीं था। यह उस मयूर के त्याग और वचन की स्मृति थी। उस आत्मोत्सर्गी मयूर को सम्मानित करने का प्रतीक था। श्रीकृष्ण का मोर मुकुट आज भी हमें यह सिखाता है कि त्याग और भक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाते। यह प्रमाण था कि ईश्वर भी अपने वादों को नहीं भूलते।
कृष्ण और राधा की एक और कथा
एक अन्य सुंदर कृष्ण और राधा की कथा में वर्णन आता है कि एक बार जब राधाजी बांसुरी की धुन पर नृत्य कर रही थीं, एक मोर झूमता हुआ आया। नाचते समय उसका एक पंख गिरा, जिसे श्रीकृष्ण ने प्रेम से उठाया और अपने मुकुट में सजा लिया।

कालसर्प दोष और मोरपंख
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, बालक श्रीकृष्ण को कालसर्प योग था। माता यशोदा ने उनके सिर पर मोरपंख सजाया, ताकि उन्हें बुरे प्रभावों से रक्षा मिले। तभी से मोरपंख को रक्षा, सौभाग्य और शुभता का प्रतीक माना जाता है।
इस प्रेरणादायक हिंदी कहानी से हमें क्या सीख मिलती है?
जो व्यक्ति हमारे जीवन के कठिन समय में साथ देता है, उसका ऋण कभी नहीं भूलना चाहिए। त्याग और भक्ति की शक्ति को ईश्वर भी नमन करते हैं। कृष्ण मोरपंख कथा हमें बताती है कि वचन और प्रेम अमर होते हैं।
हर कथा कुछ कहती है... बस सुनने वाला मन चाहिए।
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COMPILED BY - PUJA NANDA
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