लाखा सिंह की हवेली - सदियों से भटकती आत्माएं


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यह horror story आपको ले जाएगी भारत के दक्षिणी छोर पर बसे रहस्यमयी गाँव सूरजपुर में — जहाँ हर सदी के साथ एक भयानक दास्तान और भी डरावनी हो गई। सूरजपुर की पहचान अब सिर्फ एक खंडहरनुमा हवेली से होती थी — लाखा सिंह की हवेली। दिन के उजाले में भले शांत लगे, लेकिन रात के अंधेरे में यह हवेली चीखती थी — किसी अधूरी आत्मा की मदद की गुहार बनकर...।



Horror Story लाखा सिंह की हवेली- जहां से कोई जिन्दा नहीं लौटा

सदियों से भटकती आत्माएं


हवेली का इतिहास

यह कहानी भारत के दक्षिण में स्थित एक छोटे से गाँव सूरजपुर की है, जो काफी पुराना और रहस्यमयी था। उस गाँव में एक हवेली थी, जिसका नाम था 'लाखा सिंह की हवेली'। लाखा सिंह कभी इस हवेली के मालिक थे, जो बहुत अमीर थे, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। उनकी पहली पत्नी से कोई संतान न होने के कारण उन्होंने वंश को आगे बढ़ाने की इच्छा से एक गरीब और जवान स्त्री से विवाह किया। सब कुछ ठीक चल रहा था कि फिर अचानक एक दिन यह सुनने में आया कि लाखा सिंह और उनकी पहली पत्नी तीर्थ यात्रा पर चले गए हैं।


काफी समय बीत गया, लेकिन वे नहीं लौटे। अब हवेली में केवल दो ही लोग रह गये। लाखा सिंह की दूसरी पत्नी और उसका भाई। बाकी कुछ नौकर-चाकर भी थे।


धीरे-धीरे करके सभी नौकर चाकर भी हवेली की नौकरी छोड़ गए। सभी का कहना था कि हवेली में शाम होने के बाद कुछ काले साये मंडराते हैं। हर नौकर ने कुछ न कुछ डरावना महसूस किया था।


हवेली में शुरू हुआ कत्ल का सिलसिला

फिर एक दिन जब सुबह हुई तो दूध देने के लिए गांव का एक ग्वाला हवेली गया। हवेली में कोई हलचल नहीं थी। वह छोटी बहू छोटी बहू पुकारते हुए रसोई घर में गया तो वहां कोई नहीं था। जबकि रोज लाखा सिंह की दूसरी पत्नी उसे रसोई घर में ही मिल जाती थी। उनका भाई भी वहीं आस-पास घूमता फिरता मिल जाता था। लेकिन आज कोई भी नहीं मिला। ग्वाला उनको ढूंढते हुए जब हवेली में इधर-उधर घूमा तो उसे एक जगह दोनों की लाशें मिली।


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उन दोनों का बेरहमी से कत्ल कर दिया गया था। ग्वाला चीखता-चिल्लाता वहां से भागा। एक तो वैसे ही हवेली की डरावनी कहानियां गांव भर में फैली हुई थी, इस घटना ने हवेली को और भी अधिक रहस्यमई और डरावनी बना दिया।


अब हवेली का कोई वारिस नहीं बचा तो हवेली को ताला लगा दिया गया। लेकिन हवेली में अभी भी बहुत धन दौलत और कीमती चीजें थीं, जिसका लालच कुछ लोगों को अपनी तरफ खींचता था।


तीन युवक और हवेली की श्रापित रात

एक बार गांव के तीन मनचले युवकों ने गुप्त रूप से हवेली में जाने की योजना बनाई। संयोग से एक बच्चे ने उनकी बातचीत सुन ली। योजनानुसार एक रात वे तीनों धन के लालच में हवेली में घुसे।


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उस रात के बाद उन में से कोई भी गांव में दिखाई न दिया तो उन्हें ढूंढने का काम शुरू हुआ। तब उस बच्चे ने जो सुना था, वह गांव वालो को बता दिया।


गांव के कुछ जिम्मेदार लोग हिम्मत करके दिन के उजाले में हवेली में घुसे। अभी वे हवेली के मुख्य द्वार पर ही पहुंचें थे कि उन्हें दूर से ही हवेली के दालान में कुछ लोगों की लाशें नजर आईं। पास जाकर देखा तो वें वहीं तीन लोग थे जो चोरी करने के इरादे से हवेली गए थे। उनको भी बहुत बेरहमी से मारा गया था। 


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वह नज़ारा बहुत वीभत्स था। तीनों की ही गर्दनें धड़ से कट कर अलग पड़ी थी। पहली नज़र में देखने पर यह काम किसी इंसान का नहीं लगता था। उनके शरीर के अंग इस तरह मुड़े हुए थे मानो वे मोम के बने हो।


भूतिया हवेली की दहशत - जब हवेली डर बन गई

उस हादसे के बाद लोगों के मन में हवेली के प्रति डर और भी पक्का हो गया। अब कोई भूल कर भी हवेली में जाने का नहीं सोचता था। कुछ लोगों ने यह भी दावा किया था कि रात को हवेली के पास से गुजरने पर उन्हें हवेली की पहली मंजिल की खिड़की पर लाखा सिंह की एक झलक नजर आई। तो किसी को लाखा सिंह की पहली पत्नी बहुत भयानक रूप लिए नज़र आई।


इन सब बातों के चलते लोगों ने अब उधर से गुजरना तक बंद कर दिया था। पहले तो दिन के समय इक्का-दुक्का लोग हवेली के सामने वाली सड़क से गुजरने का साहस कर लेते थे, लेकिन जैसे जैसे लोगों ने लाखा सिंह और उसकी पत्नी के भूत को देखने का दावा किया, अब दिन में भी वहां से कोई नहीं गुजरता था।


हवेली में मौत का आतंक था। जो भी वहां घुसा, यह बताने के लिए जिंदा नहीं बचा कि उसने वहां क्या देखा। इन घटनाओं को सालों बीत गए। गांव की पीढ़ियां बदल गईं । हवेली अब एक खंडहर में बदल चुकी थी। लेकिन अभी भी वहां भयानक और डरावनी खामोशी का बसेरा था।


कई सालों तक गाँव में इस हवेली का नाम सुनते ही लोग डर के मारे कांपने लगते थे। कहते हैं, लाखा सिंह की आत्मा आज भी उस हवेली में भटकती रहती है और जो भी वहां जाएगा, वह कभी भी वापस नहीं आ सकता। यह एक भूतिया हवेली बन गई थी, और गाँववालों ने कसम खाई थी कि उस हवेली में कदम नहीं रखेंगें।

एक नई शुरुआत

फिर एक दिन रोहित नाम का एक युवक, जो एक वास्तुविद और सरकारी कर्मचारी था, गांव में आया। गांव के मुखिया ने उसे अपने हवेली में ठहरने का प्रस्ताव दिया, और रोहित ने बिना कोई संकोच किए हां कह दी।


कुछ ही दिनों में, रोहित को गाँव में लाखा सिंह की हवेली के बारे में काले किस्से सुनने को मिलने लगे। गांववालों ने उसे साफ चेतावनी दी थी कि वह उस हवेली के पास भी न जाए, क्योंकि लाखा सिंह की आत्मा जो वहां भटकती है, वह किसी को भी माफ नहीं करती। लेकिन रोहित को इन बातों पर विश्वास नहीं था। वह विज्ञान और तर्क में विश्वास करता था, और उसे भूत-प्रेत जैसी चीजों पर यकीन नहीं था।


एक रात, जब रोहित की टीम एक पुराने मंदिर की मरम्मत कर रही थी, जो कि लाखा सिंह की हवेली के पास ही था, उसे मंदिर के दालान में से दूर खड़ी हवेली नजर आई। और वह हवेली की ओर चल पड़ा। बिना किसी डर के, वह उस हवेली में घुस गया।


हवेली में पहला कदम – आत्माओं की पुकार

जब रोहित ने हवेली के अंदर कदम रखा, तो वहाँ का माहौल एकदम ठंडा और अजीब सा था। हवेली के अंदर हर चीज कवर हो चुकी थी, और जगह-जगह पुरानी तस्वीरें दीवारों पर लटकी हुई थीं। अचानक, हवा का एक तेज झोंका आया और हवेली में एक अजीब सी खामोशी फैल गई। तभी उसे सामने एक धुंधली सी आकृति नजर आई। वह आकृति धीरे-धीरे एक इंसान के रूप में बदलने लगी।


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वह एक आत्मा थी। उसकी आँखों में गहरी तड़प और दुख था। रोहित डर से कांपने लगा, लेकिन आत्मा ने उससे कुछ कहा, - तुमने मुझे देखा, अब तुम्हें मेरी मदद करनी होगी।


रोहित की धड़कन तेज हो गई, लेकिन उसने डर को नकारते हुए पूछा, - तुम क्या चाहते हो?

सच का खुलासा – विष, विश्वासघात और वंशविनाश

तब उसने बताया कि वह लाखा सिंह है। रोहित को अपने कानों और आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। लग रहा था यह एक भ्रम है। लेकिन लाखा सिंह उसके सामने साक्षात खड़ा था।


लाखा सिंह की आत्मा ने कड़वे शब्दों में बताया कि उसकी मृत्यु एक साजिश का परिणाम थी। उसकी दूसरी पत्नी ने उसे और उसकी पहली पत्नी को मारने के लिए जहर दे दिया था, ताकि वह संपत्ति पर कब्जा कर सके। 


लाखा सिंह की आत्मा ने अपनी पहली पत्नी और उसके भाई को मार कर अपने खून का बदला तो ले लिया था लेकिन लाखा सिंह की आत्मा तब से एक हलचल में थी, उसे शांति और मुक्ति नहीं मिल रही थी।


रोहित ने हिम्मत जुटा कर फिर से पूछा, - मुझसे क्या चाहते हो?


मुक्ति। मेरी और मेरी पत्नी की मुक्ति! यह कह कर लाखा सिंह ने एक ओर इशारा किया। जब रोहित ने उधर देखा तो उसे एक प्रोढ स्त्री नजर आई।

रोहित के पूरे शरीर में डर के मारे एक झुरझुरी दौड़ गई। दिमाग कह रहा था कि जैसे भी हो, यहां से भाग जा लेकिन पांव मानो जमीन से चिपक कर रह गए थे।


लाखा सिंह की आवाज फिर सुनाई दी - मेरी मदद किए बिना अगर यहां से भागने की कोशिश करोगे तो बेमौत मारे जाओगे, जैसे और लोग मारे गए।


बड़ी मुश्किल से रोहित बोला, - तो मैं क्या करूं?


मुक्ति की राह – डर और विश्वास की परीक्षा

मेरी दूसरी पत्नी ने मुझे और मेरी पहली पत्नी को जहर दे दिया और हमारी लाशें इसी हवेली के पिछले भाग में जमीन में गाड़ दीं। तुम्हें बस इतना करना है, जहां हमें गाड़ा गया, उस जगह पवित्र गंगाजल छिडक दो।


लाखा सिंह की बताई जगह पर रोहित को हवेली की रसोई घर में एक बोतल में पड़ा गंगाजल मिल गया। फिर हवेली के पिछले हिस्से में लाखा सिंह की बताई जगह पर रोहित ने हिम्मत करके पवित्र गंगाजल छिडक दिया।


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अंत – जब डर को मिली मुक्ति

जैसे ही रोहित ने पवित्र गंगाजल छिडका, वहां की मिट्टी में से एक धुंआ निकला और उस धुएं में रोहित को दो आकृतियां नजर आई, जो धीरे-धीरे उसी धुएं में विलीन हो गईं और फिर वह धुंआ भी छंट गया।


तभी उसकी टीम के सदस्यों की आवाजें उसके कानों में पड़ी, जो उसका नाम लेकर उसे आवाज लगा रहे थे। शायद किसी ने उसे हवेली में जाते देख लिया था, और अब सब उसे ढूंढने यहां आ पहुंचे थे।


वह उनकी ओर चल पड़ा। सभी उसके लिए बहुत फिक्रमंद और घबराए हुए थे। मुखिया जी भी उनके साथ आए थे। उसको सकुशल पाकर सब की जान में जान आई और वे सब वापिस लौट गए।


उपसंहार – जब आत्माएं शांत हुईं

सुबह रोहित ने पिछली रात की सारी बात मुखिया जी और गांव वालो को बताई। किसी को उस पर विश्वास नहीं हो रहा था। तब रोहित ने कहा, - मेरा हवेली से जिंदा लौटना ही इस बात का सबूत है कि मैं सच बोल रहा हूं।


फिर उसने मुखिया जी से प्रार्थना की कि लाखा सिंह और उनकी पत्नी का विधिवत दाह संस्कार किया जाए। और उसकी बात मान कर गांव वालो की मदद से ऐसा ही किया भी गया।


उस रात के बाद, लाखा सिंह की हवेली में कभी कोई मौत नहीं हुई। गाँववाले मानने लगे कि लाखा सिंह की आत्मा को शांति मिल गई है।

आज भी सूरजपुर में हवेली का नाम लिया जाता है, लेकिन डर के साथ नहीं — श्रद्धा के साथ। लोग कहते हैं, - जब इरादे नेक हों, तो आत्माएं भी मुक्त होती हैं।


यह थी एक horror story जिसमें सिर्फ डर नहीं — एक आत्मा की अधूरी कहानी और इंसानियत की जीत भी छुपी है।

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WRITTEN BY - PUJA NANDA

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